शीत ऋतु में घर-बाहर, शीतल, स्वच्छ वायु शरीर में मधुर सिहरन उत्पन्न करती है। भोजन का शीघ्र पाचन होता है और अधिक भोजन की इच्छा होती है। इस ऋतु में अधिक स्वादिष्ट और पौष्टिक खाद्यों का इस्तेमाल भी किया जाता है। पौष्टिक खाद्यों से शरीर में अधिक शक्ति का विकास होता है। यही कारण है कि आयुर्वेद के सभी ग्रंथ-पुराणों में शीत ऋतु को स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम बताया गया है।
आचार्य महर्षि सुश्रुत ने ‘स्वभावत एव‘ शब्द का उल्लेख करते हुए इस तथ्य पर भार दिया है कि यदि शीतऋतु का पालन दिल खोलकर व निडरतापूर्वक सेवन किया जाए तो पित्तदोष से उत्पन्न व्याधियां अपने आप ठीक हो जाएंगी। यूरोप तथा अमेरिका के लोग रहन-सहन के नियमों का अनुकरण करने के कारण उससे दूर रहने या बचने का प्रयत्न करते हैं। फलस्वरूप शीतऋतु उनके लिए दुःखदायी हो जाती है।
शरीर की हिफाजत के लिए शीत ऋतु के आने के साथ ही मोटे-मोटे ऊनी कपड़ों से स्वयं को तथा अपने बच्चों को ढक दिया जाता है। इसके पीछे उद्देश्य होता है शीतऋतु की ठण्ड के प्रकोप से अपना बचाव करना। जब किसी ऋतु के प्रकोप से बचने के लिए उपाय करना प्रारंभ किया जाता है तो वह उतने ही वेग से उन उपायों को नष्ट कर स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने लगती है। शीतऋतु के आनंद को तभी उठाया जा सकता है, जबकि उस ऋतु के अनुकूल दिनचर्या व खान-पान किया जाये।
एक प्रचलित धारणा है कि सर्दियों में जितना भी खाया जाये या जो भी खाया जाये, वह सभी पुष्टिकारक व स्वास्थ्यवर्द्धक ही होता है। रजाई के अंदर बैठकर गर्म-गर्म चाय के साथ पकौड़े या समोसे या गाजर का हलुवा और कभी कुनकुनी धूप में बैठकर मूंगफली टूंगने का आनंद सर्दियों में ही मिलता है परन्तु इसका परिणाम तब जाकर मिलता है, जब सर्दी का मौसम खत्म हो जाता है। शरीर पर चर्बी की कई परतें चढ़ जाती हैं। फलस्वरूप हाईब्लड प्रेशर तथा मधुमेह (शक्कर) की बीमारी हो जाती है। वजन कम करने की समस्या आकर खड़ी हो जाती है और मन तनावग्रस्त हो जाता है।
पाचक और रंजक पित्त की कमी होने के कारण यकृत की विकृतियां उत्पन्न हो जाया करती है तथा मन घबराने लगता है। पेट की अनेक व्याधियां तंग करने लगती हैं और स्वस्थ चंचल चित्त बीमारियों के पिंजरे में कैद होकर रह जाता है। यह सभी इसलिए होता है कि आम जिंदगी में भोजन को लेकर अनेक मिथक भ्रांतियां व्याप्त हैं। यह मत खाओ, ऐसे मत खाओ, यह गर्म है, यह ठण्डा है, के चक्कर में अक्सर हम पौष्टिक चीजें भी नहीं खा पाते।
खांसी होने पर मूंगफली नहीं खानी चाहिए, सीने में बलगम होने पर दूध, केला और चावल वगैरह नहीं खाने चाहिए, जुकाम होने पर फल, फलों के जूस और दही नहीं लेना चाहिए, आदि भ्रांतियों के कारण जीवन दूभर हो जाया करता है जबकि इनमें से किसी का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। विटामिन ‘सी‘ से भरपूर आंवला, अमरूद, संतरा, मौसम्मी, नींबू जैसे फल जुकाम के लिए रामबाण होते हैं जबकि भ्रांतियों के कारण थोड़ा सा जुकाम होने पर इनका प्रयोग बंद करा दिया जाता है।
एक स्वस्थ औरत को दिन भर में कुल मिलाकर 2000 कैलोरी लेने की आवश्यकता होती है। जीवन शैली और कार्यक्षेत्र के मुताबिक कैलोरी की मात्रा में परिवर्तन हो सकता है। एक कामकाजी महिला को घर में रहनेवाली महिला से अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है। गर्भवती या दूध पिलाने वाली माताएं लगभग 2400 कैलोरी ले सकती हैं। उसी हिसाब से वह अपने नाश्ते और दोपहर तथा रात के खाने को बांट सकती हैं। उनके भोजन में प्रोटीनयुक्त भोजन व हरी सब्जियों की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए।
शीतऋतु में संयमित आहार का लेना भी स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है। सुबह की शुरूआत चाय, कॉफी या नींबू पानी के साथ की जा सकती है। नाश्ते में जूस, फल, उपमा, पोहे, साबूदाने की खिचड़ी, दलिया या सैंडविच के साथ दूध, दूध के साथ कार्नफ्लेक्स या म्यूसिली में से किसी एक को लिया जा सकता है।
शीतऋतु में अपने स्वास्थ्य की सम्पूर्ण हिफाजत करने के पश्चात् ही स्वस्थ रहा जा सकता है। अगर स्वास्थ्य ठीक है तो शीतऋतु का आनंद उठाने में किसी तरह की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसलिए संयम से संतुलित आहार लेते हुए शीतऋतु के बाणों से अपने स्वास्थ्य की रक्षा करें।
आचार्य महर्षि सुश्रुत ने ‘स्वभावत एव‘ शब्द का उल्लेख करते हुए इस तथ्य पर भार दिया है कि यदि शीतऋतु का पालन दिल खोलकर व निडरतापूर्वक सेवन किया जाए तो पित्तदोष से उत्पन्न व्याधियां अपने आप ठीक हो जाएंगी। यूरोप तथा अमेरिका के लोग रहन-सहन के नियमों का अनुकरण करने के कारण उससे दूर रहने या बचने का प्रयत्न करते हैं। फलस्वरूप शीतऋतु उनके लिए दुःखदायी हो जाती है।
शरीर की हिफाजत के लिए शीत ऋतु के आने के साथ ही मोटे-मोटे ऊनी कपड़ों से स्वयं को तथा अपने बच्चों को ढक दिया जाता है। इसके पीछे उद्देश्य होता है शीतऋतु की ठण्ड के प्रकोप से अपना बचाव करना। जब किसी ऋतु के प्रकोप से बचने के लिए उपाय करना प्रारंभ किया जाता है तो वह उतने ही वेग से उन उपायों को नष्ट कर स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने लगती है। शीतऋतु के आनंद को तभी उठाया जा सकता है, जबकि उस ऋतु के अनुकूल दिनचर्या व खान-पान किया जाये।
एक प्रचलित धारणा है कि सर्दियों में जितना भी खाया जाये या जो भी खाया जाये, वह सभी पुष्टिकारक व स्वास्थ्यवर्द्धक ही होता है। रजाई के अंदर बैठकर गर्म-गर्म चाय के साथ पकौड़े या समोसे या गाजर का हलुवा और कभी कुनकुनी धूप में बैठकर मूंगफली टूंगने का आनंद सर्दियों में ही मिलता है परन्तु इसका परिणाम तब जाकर मिलता है, जब सर्दी का मौसम खत्म हो जाता है। शरीर पर चर्बी की कई परतें चढ़ जाती हैं। फलस्वरूप हाईब्लड प्रेशर तथा मधुमेह (शक्कर) की बीमारी हो जाती है। वजन कम करने की समस्या आकर खड़ी हो जाती है और मन तनावग्रस्त हो जाता है।
पाचक और रंजक पित्त की कमी होने के कारण यकृत की विकृतियां उत्पन्न हो जाया करती है तथा मन घबराने लगता है। पेट की अनेक व्याधियां तंग करने लगती हैं और स्वस्थ चंचल चित्त बीमारियों के पिंजरे में कैद होकर रह जाता है। यह सभी इसलिए होता है कि आम जिंदगी में भोजन को लेकर अनेक मिथक भ्रांतियां व्याप्त हैं। यह मत खाओ, ऐसे मत खाओ, यह गर्म है, यह ठण्डा है, के चक्कर में अक्सर हम पौष्टिक चीजें भी नहीं खा पाते।
खांसी होने पर मूंगफली नहीं खानी चाहिए, सीने में बलगम होने पर दूध, केला और चावल वगैरह नहीं खाने चाहिए, जुकाम होने पर फल, फलों के जूस और दही नहीं लेना चाहिए, आदि भ्रांतियों के कारण जीवन दूभर हो जाया करता है जबकि इनमें से किसी का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। विटामिन ‘सी‘ से भरपूर आंवला, अमरूद, संतरा, मौसम्मी, नींबू जैसे फल जुकाम के लिए रामबाण होते हैं जबकि भ्रांतियों के कारण थोड़ा सा जुकाम होने पर इनका प्रयोग बंद करा दिया जाता है।
एक स्वस्थ औरत को दिन भर में कुल मिलाकर 2000 कैलोरी लेने की आवश्यकता होती है। जीवन शैली और कार्यक्षेत्र के मुताबिक कैलोरी की मात्रा में परिवर्तन हो सकता है। एक कामकाजी महिला को घर में रहनेवाली महिला से अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है। गर्भवती या दूध पिलाने वाली माताएं लगभग 2400 कैलोरी ले सकती हैं। उसी हिसाब से वह अपने नाश्ते और दोपहर तथा रात के खाने को बांट सकती हैं। उनके भोजन में प्रोटीनयुक्त भोजन व हरी सब्जियों की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए।
शीतऋतु में संयमित आहार का लेना भी स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है। सुबह की शुरूआत चाय, कॉफी या नींबू पानी के साथ की जा सकती है। नाश्ते में जूस, फल, उपमा, पोहे, साबूदाने की खिचड़ी, दलिया या सैंडविच के साथ दूध, दूध के साथ कार्नफ्लेक्स या म्यूसिली में से किसी एक को लिया जा सकता है।
शीतऋतु में अपने स्वास्थ्य की सम्पूर्ण हिफाजत करने के पश्चात् ही स्वस्थ रहा जा सकता है। अगर स्वास्थ्य ठीक है तो शीतऋतु का आनंद उठाने में किसी तरह की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसलिए संयम से संतुलित आहार लेते हुए शीतऋतु के बाणों से अपने स्वास्थ्य की रक्षा करें।
