पाताल भुवनेश्वर – भगवान भुवनेश्वर को नयी फसल अर्पित करके मनायी जाती है देव दीपावली
Focus News 4 November 2025 0
															कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव समूचे देश में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। संपूर्ण भारत भूमि की वसुंधरा इस दिन उमंग व उत्साह से श्रद्वा व भक्ति के भाव में डूबी रहती है। पिथौरागढ़ के पाताल भुवनेश्वर क्षेत्र में इस दिन खास रौनक रहती है। भगवान भुवनेश्वर की कृपा से ही आज के दिन महाबलशाली दैत्य त्रिपुर का वध हुआ था। भगवान भुवनेश्वर ने त्रिपुर दैत्य का अंत कर कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिलोक को उसकी पीड़ा से मुक्त किया था। पाताल भुवनेश्वर गुफा में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर खास तौर से मल्लागर्खा वासी नया अनाज भगवान भुवनेश्वर को समर्पित करते है। इसके अलावा आसपास के ग्रामीण जन भी इस पावन परम्परा का निर्वहन करते है,                  
             इस संदर्भ में मन्दिर कमेटी के अध्यक्ष नीलम भण्डारी बताते है, कि प्राचीन समय में मल्लागर्खा क्षेत्र में महर्षि भुगृ ने तपस्या की थी एक बार उन्होंने अपनी तपस्या के प्रभाव से इस समूचे भूभाग को अकाल की महाविपदा से मुक्त किया था। प्रसन्न क्षेत्रवासियों ने महर्षि की प्रेरणा से नये अनाज से भुवनेश की पूजा आरम्भ की जो आज भी परम्परागत रुप से जारी है। 
                सनातन धर्म के सजग प्रहरी महर्षि भृगु के बारे में पुराणों में अनेक स्थानों पर वर्णन किया गया है।                    विश्व प्रसिद्व गुफा पाताल भुवनेश्वर के निकट सौंदर्यशाली पर्वत व पर्वत की चोटी पर स्थित भृगुऋषि की तपस्थली गुफा भृगुतम्ब भृगुतीर्थ के रुप में पुराणों में सुनहरे शब्दों में वर्णित है। महार्षि वेद व्यास जी ने स्कंद पुराण के मानस खण्ड़ के एक सौ व एक सौ एक अध्याय में इस महानतम पवित्र क्षेत्र का वर्णन करते हुए लिखा है कि शैल पर्वत के उत्तरस्थ में भुवनेश्वर के निकट पर्वत के शिखर पर  शोभायमान भृगुपुण्य आश्रम है। जिसके दर्शन से महाभयंकर पापों का विनाश हो जाता है। 
*भृगुपुण्याश्रमं दृष्टवा मानवानां दुरात्मनाम्।*
*पातकानां प्रणाशाय भृगुपुण्याश्रमं बिना।।*
*यत्र पापान्यनेकानि जन्मान्तरकृतानि च।*
*विलीयन्ते न सन्देहो दृष्ट्वा पुण्याश्रमं भृगोः*
       इस स्थान पर महर्षि भृगु ऋषि ने अनेक महातपोशाली ऋषियों के साथ बारह वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या की। उनके तप के प्रभाव से यह स्थान पुण्यशील तीर्थ के रुप में पुराणों में प्रसिद्व है। व्यास जी ने तो  इस तीर्थ की महिमा को इतना प्रभावशाली बताया है कि यहां के दर्शन से जन्म जन्मान्तरों के पापों का क्षण भर में नाश हो जाता है।भृगुतम्ब (भृगुतंग) की गुफा को पुराणों में भार्गवी कहा गया है। इसी गुफा में ऋषि भृगु ने त्रिदेव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया इसलिए यहां तीनों देवताओं का साक्षात् वास माना जाता है। यहां पर की गई शिव पूजा से प्राणी के सभी मनोरथ पूरे हो जाते है।
              भृगुतम्ब क्षेत्र के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित है। जिनमें से एक पौराणिक कथा इस प्रकार है- एक बार हिमालयी क्षेत्र में भारी अकाल पड़ गया था। बारह़ वर्ष तक वर्षा न होने से पशु पक्षी व पृथ्वी पर रहने वाले प्राणियों के सम्मुख अन्न-जल,कन्दमूल फल आदि का भयंकर अभाव हो गया। हिमालयी क्षेत्र में आये अकाल से समूची धरती त्राहिमाम कर उठी थी। तब शिव प्रेरणा से भृगु ऋषि ने हिमालय की ओर प्रस्थान किया। भुवनेश्वर गुफा के समीप आकर वे  इस क्षेत्र की भव्यता को देखकर मोहित हो उठे और भगवान भुवनेश्वर के दर्शन ने तो उनकी दिशा ही बदल दी। वे पूर्ण रुप से उन्हें समर्पित हो गये। जन कल्याण की भावना से उन्होने भृगुतुंग नामक स्थान पर महादेव की घोर आराधना करके उन्हे प्रसन्न किया तथा हिमालय भूमि में व्याप्त अकाल को दूर करवाया ।
               भारतवर्ष के पवित्रतम तीर्थों में एक पाताल भुवनेश्वर भगवान श्री भुवनेश्वर की महिमा एवं अलौकिक गाथा का साकार स्वरूप है। देवभूमि उत्तराखण्ड के गंगोलीहाट स्थित श्री महाकाली दरबार से लगभग 11 किमी. दूर भगवान भुवनेश्वर की यह गुफा वास्तव में अद्भुत, चमत्कारी एवं अलौकिक है। यह पवित्र गुफा जहां अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए है, वहीं अनेकानेक रहस्यों से भरपूर है। इस गुफा को पाताल लोक का मार्ग भी कहा जाता है। सच्ची श्रद्धा व प्रेम से इसके दर्शन करने मात्र से ही हजारों हजार यज्ञों तथा अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त हो जाता है और विधिवत पूजन करने से अश्वमेघ यज्ञ से दस हजार गुना अधिक फल प्राप्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त पाताल भुवनेश्वर का स्मरण और स्पर्श करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि तैंतीस कोटि देवता भगवन भुवनेश्वर की अखण्ड उपासना हेतु यहां निवास करते हैं तथा यक्ष, गंधर्व, ऋषि-मुनि, अप्सराएं, दानव व नाग आदि सभी सतत पूजा में तत्पर रहते हैं तथा भगवान भुवनेश्वर की कृपा प्राप्त करते हैं। 
            स्कन्द पुराण के मानस खण्ड में भगवान श्री वेदव्यास ने इस पवित्र स्थल की अलौकिक महिमा का बखान करते हुए कहा है- भुवनेश्वर का नामोच्चार करते ही मनुष्य सभी पापों के अपराध से मुक्त हो जाता है तथा अनजाने में ही अपने इक्कीस कुलों का उद्वार कर लेता है। इतना ही नहीं अपने तीन कुलों सहित शिवलोक को प्राप्त करता है। इसे सृष्टि की अद्भुत कृति बताते हुए श्री वेदव्यास आगे कहते हैं कि इस पवित्र गुफा की महिमा और रहस्य का वर्णन करने में ऋषि-मुनि तपस्वी तो क्या देवता भी स्वयं को असमर्थ पाते हैं। ब्रह्माण्ड के समान ही यह गुफा भी अनन्त रहस्यों से सम्पूर्ण है।                             
                कार्तिक पूर्णिमा को यहां विशेष रौनक रहती है, मल्लागर्खा क्षेत्र के लोगों की अगुवाई में यहां श्रद्वा पूर्वक नए अनाज के साथ भगवान भुवनेश्वर की पूजन की जाती है। देव दीपावली के रुप में प्रचलित कार्तिक पूर्णिमा पर पाताल लोक की आभा देखने लायक होती है।
            इस दिन व्रत रखना बेहद शुभ और पुण्य का काम माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा  के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन भगवान भुवनेश्वर ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का अंत किया था। 
                इस दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि का विशेष महत्व होता है। कार्तिक पूर्णिमा का दिन सिख धर्म के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। देव दीपावली भी कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। देव दिवाली का महत्व विशेषकर भारत की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी से जुड़ा है। इस दिन काशी के रविदास घाट से लेकर राजघाट तक अंसख्य दिए जलाए जाते हैं और माँ गंगा का पूजन होता है। इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था इसलिए इस दिन माई पीताम्बरी के पूजन,हवन व यज्ञ का अलौकिक महत्व है।
           कार्तिक पूर्णिमा को गोलोक के रासमण्डल में श्री कृष्ण ने श्री राधा का पूजन किया था। कहा जाता है,कि सभी ब्रह्मांडों से परे जो सर्वोच्च गोलोक है वहां इस दिन राधा उत्सव मनाया जाता है तथा रासमण्डल का आयोजन होता है। 
								