पुष्कर ऊंट मेले’ में घट गई ऊंटों की संख्या?

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पुष्कर ऊंट महोत्सव संपन्न हो गया लेकिन इस बार संसार के सबसे विशालतम ‘ऊँट मेले’ की तस्वीर बदली-बदली सी दिखी। मेले में ऊंट कम, घोड़े ज्यादा दिखे? जबकि मेला ऊँटों के लिए ही विश्व प्रसिद्ध है। ‘पुष्कर ऊँट मेला’ जिसे राजस्थान की जीवंत परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा कहा जाता है। मेले को विश्व के सबसे बड़े ऊँट मेले की उपाधि प्राप्त है। मेला पांच नवंबर तक चला। मेले की परंपरा वैसे तो ब्रिटिश शासनकाल से औपचारिक रूप से हुई थी। लेकिन मेले की रौनक जैसे कभी पहले हुआ करती थी, वैसी अब नहीं दिखती? क्योंकि उसमें ऊँट के अलावा दूसरे पशु ज्यादा दिखने लगे हैं। मेले का प्रतीक सर्वाधिक रूप से ऊँट होते थे। पर, अब घोड़ों की टापे सुनाई देती हैं। मेला लोकगीतों की धुनों और पर्यटकों की भीड़ से भी गूंजा करता था। सूर्यास्त के वक्त रेत पर ऊंटों की लंबी-लंबी परछाइयों को देखकर पर्यटक मनमोहित होते थे। तब ऐसा एहसास होता था कि जैसे राजस्थान की आत्मा भी रेत के जहाजों संग साथ-साथ चल रही हैं। पर लगातार घटते ऊँटों की संख्या ने सभी परंपराओं पर अंकुश सा लगा दिया है।


ऊँटों का ये पांच दिवसीय मेला, सांस्कृतिक आकर्षण और उत्सवी उल्लास देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। मेले को देखने के लिए इस बार करीब 46 देशों के पर्यटक पहुंचे। प्रत्येक वर्ष करीब पांच लाख विदेशी दर्शक आते हैं। राजा-महाराजाओं की धरती कहे जाने वाले राजस्थान में ऊंटों को केवल पशु ही नहीं, बल्कि रेगिस्तान का जहाज और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। पुष्कर मेला सालाना वार्षिक सरकारी आयोजन है जो ऊँटों एवं अन्य पशु धन के लिए समर्पित है। यह दुनिया के ‘विशाल व्यापार पशु मेले’ में से एक है जिसमें विभिन्न आर्कषण वाले पशुओं की खरीद-फरोख्त के अलावा, महत्वपूर्ण पर्यटन आकर्षण का नजारा देखने को मिलता है। मेले में व्यापार, मेलजोल और धार्मिक आस्था-तीनों का संगम एक साथ समाहित होता है।

 
पर्यटकों को भी ‘पुष्कर ऊंट मेला-2025’ का स्वरूप बदला हुआ दिखा। क्योंकि मेले में ऊँटों से ज्यादा घोटे थे।.जबकि, परंपरागत ऊँट ज्यादा और अन्य पशु की आमदगी कम होनी चाहिए। मेले में इस साल करीब 4,000 विभिन्न प्रजातियों के घोड़े पहुंचे । जबकि, ऊंटों के पहुंचने की संख्या मात्र 1,400 के आसपास बताई गई। इस घटौती को क्या समझा जाए? क्या ऊँटों की घटती आबादी ये दुखद तस्वीर पेश कर रही है। वैसे, तल्ख हकीकत से मुंह भी नहीं फेर सकते? क्योंकि देशभर से लगभग ऊँटों की संख्या खत्म हो ही गई है। सिर्फ राजस्थान ही ऐसा राज्य है जहां ऊँटों की संख्या बीते कुछ दशकों से सर्वाधिक रही है। एकाध दशकों से वहां से भी ऊँटों की आबादी तेजी से घटी है।


घटते ऊँटों को लेकर राजस्थान सरकार भी परेशान है। 19 सितंबर 2014 से ऊँट को राजस्थान का राज्य पशु भी घोषित किया गया। ऊँटों का संरक्षण कैसे हो, को ध्यान में रखकर प्रदेश सरकार ने अक्टूबर-2016 को ‘ऊंट संरक्षण योजना’ भी बनाई। 4-5 चलने के बाद योजना से कोई खास परिणाम नहीं निकला, तो वर्ष 2022-23 से ‘ऊंट पालक योजना’ शुरू की गई, जिसमें प्रत्येक ऊँट पालक व्यक्ति को 10,000 रूपए की सालाना प्रोत्साहन राशि देना आरंभ हुआ। पिछले वर्ष यानी 2024-25 में इस राशि में डबल बढ़ोतरी कर 20,000 प्रति ऊँट देना सरकार ने शुरू किया है। पर, अफसोस हालात अब भी चिंताजनक बने हुए हैं। चिंता इसलिए कि किसानों का ऊँट पालने से मोह लगातार भंग हो रहा है। हालांकि, सरकार फिर भी ऊँटों के संरक्षण को लेकर कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही। कुछ वर्षों से प्रदेश में सालाना ‘ऊंट महोत्सव’ का आयोजन भी शुरू कर दिया गया है। इस साल 11-12 जनवरी को ये जलसा मनाया गया।

गौरतलब है ऊँटों के नहीं रहने से पुष्कर मेले का अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है। वर्ष-1961 में केंद्र सरकार द्वारा कराई गई ऊँट जनगणना में 10 लाख ऊंटों की संख्या बाहर निकली थी। जो अब मात्र 1,85000 तक सिमट गई है। ऊंट पालन वाले प्रमुख प्रदेश राजस्थान की खराब स्थिति बताती है कि 2047 तक ऊँट देश से तकरीबन-तकरीबन विलुप्त के कगार पर पहुंच जाएंगे। अगर ऐसा हुआ तो पुष्कर में ऊँट वास्तविक नहीं, पोस्टरों में ही दिखेंगे। भविष्य की जीव पीढ़ी ऊँटों के किस्से किताबों से ही जान पाएगी। इसलिए भारत के इस विश्वस्तरीय ऊँट मेले की पंरपरा को किसी भी सूरत में सहजना होगा। ये एक मात्र मेला नहीं, बल्कि भारतीय और स्थानीय साक्षा संस्कृति, लोककला और परंपरा का बेजोड़ उत्सव भी है।

संसार में राजस्थान ऊँटों के मामले में अभी भी अव्वल पायदान पर है। जहां आज भी विभिन्न किस्मों की प्रजातियां पाई जाती हैं। मात्र ऊंटों की सवारी करने को विदेशी पर्यटक छुट्टियों में राजस्थान पहुंचते हैं। बहरहाल सदियों पुराने ऊँट मेले की साख को बचाने के लिए हुकूमती प्रयासों के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर कोशिशें जारी हैं। साक्षा कोशिशों के बावजूद भी मेले की तस्वीर साल-दर-साल बदलती जा रही है। मेले की पहचान पारंपरिक और स्थानीय लोक संगीत, नृत्य, हस्तशिल्प से भी जुड़ी है। यही कारण है कि ऊँट मेले के बहाने पर्यटक रेतीले राजस्थान की रंगीन संस्कृतियों को निहारने जाते हैं। मेले में जहां ऊंटों के बड़े-बड़े काफिले दिखाई पड़ते थे, वहां इस बार सुंदर और चमकीले बड़े-बड़े घोड़े मुख्य आकर्षण का केंद्र बने हैं। मौजूदा मेले की बदरंग रौनक को देखकर आयोजक से लेकर पर्यटक, स्थानीय लोग भी भौचक्के हैं। मेले में घोड़ों की सजावट, प्रदर्शन और सौदेबाजी चारों ओर दिख रही है। खरीदार ऊँटों को छोड़कर अलग-अलग नस्लों के घोड़ों को लेकर उत्साही हैं। पुष्कर मेले को पुरानी रंगत में फिर से लौटाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने की दरकार है।

डॉ. रमेश ठाकुर