नाथद्वारा और मेवाड़

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नाथद्वारा एक प्रसिद्ध तीर्थ है। यहां श्री नाथजी का प्रसिद्ध मंदिर है। श्री नाथजी के दर्शन के लिए यहां देशभर के यात्री आते रहते हैं। रोजाना दर्शनार्थियों की काफी भीड़ जुटती है। श्री नाथजी की यह मूर्ति पहले ब्रज (मथुरा) के गिरिराज पर्वत पर स्थित मंदिर में थी, जिसे पुष्टिïमार्ग के प्रवर्तक स्वामी वल्लभाचार्यजी ने बनवाया था। औरंगजेब के शासनकाल में इस मंदिर का विध्वंस कर दिया गया था। मंदिर के पुजारी किसी प्रकार मूर्ति को लेकर दक्षिण की ओर भागे। वे छिपते-छिपते मेवाड़ पहुंचे। उदयपुर के महाराणा राजसिंह ने सिंहाड़ नामक एक छोटे से गांव में मंदिर बनवाकर इस मूर्ति की स्थापना की। यही कालान्तर में ‘नाथद्वाराÓ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इसके मंदिर का परिसर अत्यंत विशाल और भव्य है। यह पुष्टिïमार्गीय भक्ति का प्रमुख केन्द्र है। मंदिर में कई बगीचे और गोशालाएं हैं। सारी बस्ती प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में मंदिर पर ही आश्रित है।
मंदिर परिसर के एक कक्ष में सोने और चांदी की चक्की रखी है, जिससे पहले भोग के लिए केसर पीसी जाती थी। मंदिर के अधीन ही साहित्य-मण्डल का भवन, विद्यालय, पुस्तकालय आदि है।
इस साहित्य-मण्डल ने हिन्दी साहित्य की बहुत सेवा की है। ब्रज के अष्ट छाप कवियों की परम्परा यहां जीवित है। हिन्दी-भाषा के आन्दोलन को इस साहित्य मण्डल से पर्याप्त बल प्राप्त हुआ है। वास्तव में इसे ऐसे रचनात्मक महत्व का कार्य मानना चाहिए, जो अन्य धार्मिक तीर्थों में नहीं होता।
नाथद्वारा से सोलह किलोमीटर उत्तर में काकरोली में द्वारिकाधीश का मंदिर है। यह भी वल्लभ सम्प्रदाय का केन्द्र है। इस मूर्ति की स्थापना भी महाराणा राजसिंह के समय में हुई थी। यहां के लिए हर आधे घण्टे में नाथद्वारा से बसें जाती रहती हैं।   नाथद्वारा से काकरोली के पूरे मार्ग में संगमरमर के बड़े-बड़े स्टाल हैं, जहां से संगमरमर की चट्टïानें कटकर पटियों के रूप में बाहर जाती हैं। काकरोली का मंदिर राय सागर नामक एक विशाल झील के किनारे है। उस समय झील बहुत कुछ सूखी हुई थी परन्तु उसके विस्तार का अनुमान लगाया जा सकता था। इस मंदिर में भी काफी श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुंचते हैं। इसके समीप ही एक गुफा में गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है।  
 कैलाशपुरी नाथद्वारा और उदयपुर के मार्ग के बीचोंबीच है। यह दो पहाड़ों के मध्य में है, इसलिए यहां का प्राकृतिक सौंदर्य मन को लुभाने वाला है। यहां जाने के लिए भी हर समय बस सेवा उपलब्ध रहती है। कहा जाता है कि यह मंदिर बप्पा रावल ने बनवाया था। समय-समय पर इसमें निर्माण होता रहा। यह मंदिर अत्यंत विशाल और भव्य है। इसमें पंचमुखी शिवलिंग विराजमान हैं। मंदिर परिसर में अन्य अनेक प्रतिमाएं भी हैं।
 खमनोर, नाथद्वारा से 15 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां वर्णासा नदी के किनारे श्री हरिरायजी की बैठक है। श्री हरिरायजी श्री बि_ïलनाथ की शिष्य परम्परा में पुष्टिमार्गीय भक्त कवि थे। वर्णासा नदी को यहां यमुना के रूप में माना जाता है। खमनोर के पास ही ऐतिहासिक हल्दीघाटी है। महाराणा प्रताप और मुगलों के भीषण युद्ध के कारण हल्दीघाटी का ऐतिहासिक महत्व है।
हल्दीघाटी नाथद्वारा से 20 कि.मी. की दूरी पर खमनोर और बलीचा के मध्य बड़ी-बड़ी बीहड़ पहाडिय़ों से घिरी हुई है। यहां चेतक की समाधि और छतरी बना दी गई है। यहां कोई यात्री रुकता नहीं। आने-जाने वालों की भीड़ अवश्य रहती है। हल्दीघाटी के पास ही घसियार है। घसियार वह स्थल है, जहां श्रीनाथ जी की मूर्ति को सिंहाड़ (नाथद्वारा) से हटाकर रखा गया था। संकटकाल में सात-आठ वर्ष यहीं पहाडिय़ों के मध्य बने मंदिर में यह मूर्ति रही, इसलिए घसियार भी पुष्टिïमार्गीय भक्तों का पावन स्थल बन गया। बाद में संकट समाप्त होने पर नाथद्वारा में ही मूर्ति की स्थापना की गई। मेवाड़ के चार तीर्थ प्रसिद्ध हैं- 1. नाथद्वारा, 2. काकरोली, 3. एक लिंग और 4. चारभुजा। चारभुजा में विष्णु का मंदिर है।
मेवाड़ का क्षेत्र ऐतिहासिक महत्व तो रखता ही है, वह प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी विख्यात है। उदयपुर को तो झीलों का शहर कहा जाता है। यह अरावली पर्वत की गोद में स्थित है, जिसे महाराणा उदय प्रताप सिंह ने बसाया था और लगातार होने वाले युद्धों से बचने के लिए चित्तौडग़ढ़ छोड़कर वे इसी को राजधानी बनाकर रहने लगे थे।
राजस्थान सरकार ने उदयपुर और उसके आसपास के इलाके का पर्यटन की दृष्टि से विकास किया है। यहां देशी और विदेशी अनेक पर्यटक आते रहते हैं, इसलिए यहां लूट-खसोट भी बहुत होती है। आटो रिक्शेवालों से लेकर दुकानदार तक यहां यात्रियों को गुमराह करके उनसे पैसा लूटते हैं। सरकार ने भी इन स्थलों में प्रवेश के लिए टिकट के बहुत ऊंचे दाम रखे हैं।
 फतह सागर झील के सामने की पहाड़ी की ओर मोती मगरी है, यहां पहाड़ी के ऊपर एक दो कमरे हैं, जिनमें शुरुआत में महाराणा उदयप्रताप सिंह ठहरे थे, दूसरी ओर झील के बीच में नेहरू गार्डन है। गर्मी में पानी सूख जाने के कारण उसमें दल-दल हो जाता है, इसलिए नाव नहीं चलती। सहेलियों की बाड़ी एक बगीचा है। इसमें बीचोंबीच एक हौज है और उसके चारों ओर चार छतरियां। इसमें फव्वारे से सभी तरफ पानी गिरता है। उसके अगल-बगल भी फव्वाारे हैं। इस उद्यान में राजकुमारियां और उनकी सहेलियां आमोद-प्रमोद के लिए आती थीं, इसलिए इसे ‘सहेलियों की बाड़ीÓ कहते हैं। इसका निर्माण महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय और पुनर्निर्माण महाराणा फतहसिंह ने कराया था।
उदयपुर का राजमहल काफी भव्य और विशाल है। इसकी लम्बाई पंद्रह सौ फीट, चौड़ाई आठ सौ फीट और ऊंचाई सौ फीट है। महाराणा उदयसिंह से लेकर उनके कई उत्तराधिकारियों का इसके निर्माण में योगदान रहा।  
इस राजमहल के पीछे ‘पीछोला झीलÓ है, जो चारों ओर से पर्वत श्रेणियों, महलों और मंदिरों से घिरी हुई है। इस झील का निर्माण पंद्रहवीं शताब्दी में एक बंजारे ने किया था। इसी झील से जुड़ी हुईं तीन अन्य झीलें- स्वरूप सागर, रंग सागर और दूध तलाई हैं। पीछोला झील में ही जलमहल (लेक पैलेस) है, जिसे महाराणा जगत सिंह ने सन् 1746 ई. में बनवाया था। अब यह लेक पैलेस, होटल के रूप में परिवर्तित हो गया है।
जगदीश, उदयपुर नगर का सबसे भव्य मंदिर है, इसमें काले पत्थर से निर्मित विष्णु की भव्य प्रतिमा है। उदयपुर में एक श्रीनाथ मंदिर भी है। इसमें भी कुछ समय श्रीनाथ जी की मूर्ति रही थी, इसलिए यह पुष्टिïमार्गीय भक्तों का श्रद्धा केन्द्र है। उदयपुर का गुलाब बाग बड़े आकार के गुलाब के फूलों के लिए प्रसिद्ध है। यह उद्यान सौ एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें म्यूजियम, अजायबघर, पुस्तकालय और वाचनालय है। 

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