मृत्यु पंजीयन को आधार,पैन और वोटर आईडी से जोडऩा आवश्यक

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विवेक रंजन श्रीवास्तव
 मृत्यु पंजीयन को आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी और ड्राइविंग लाइसेंस से जोडऩे का विचार सुनने में सहज लगता है, यह दूरगामी परिणामों वाला है। यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु होते ही यह सूचना स्वत: सभी सरकारी पहचान पत्रों तक पहुँच जाए और वे तुरंत निष्क्रिय हो जाएँ, तो न केवल पहचान के दुरुपयोग पर रोक लगाई जा सकती है बल्कि पेंशन, बैंक खाते, सब्सिडी और वोटर सूची जैसी प्रणालियों में भी पारदर्शिता आ सकती है। हाल के दिनों में आधार के संबंध में ऐसी पहल की शुरुआत हुई है जिसमें पंजीकृत मृत्यु रिकॉर्ड के आधार पर मृत व्यक्तियों के आधार नंबर निष्क्रिय किए जा रहे हैं, ताकि किसी भी तरह की धोखाधड़ी को रोका जा सके।
मगर इस सहज दिखने वाले विचार के क्रियान्वयन में कई चुनौतियां हैं। पहली चुनौती है मृत्यु पंजीयन की विश्वसनीयता और उसकी डिजिटल उपलब्धता। देश के कुछ हिस्सों में नगरपालिकाएँ और राज्य सरकारें जन्म-मृत्यु पंजीकरण को पूरी तरह ऑनलाइन कर चुकी हैं, जहाँ सूचना अपेक्षाकृत तेज़ और सही पहुँचती है। परंतु अनेक जिलों में अब भी देरी, त्रुटियाँ और अपूर्णता सामान्य हैं। अनेक बार पोर्टल ही नहीं चलता यह शिकायत मिलती है। ऐसे में यदि आधार, पैन, वोटर आईडी और ड्राइविंग लाइसेंस को सीधे मृत्यु रिकॉर्ड से जोड़ दिया जाए तो गलत निष्क्रियकरण या विलंब दोनों ही स्थितियाँ सामने आ सकती हैं, जिससे जीवित व्यक्ति को मृत घोषित करने या मृत व्यक्ति के दस्तावेज़ लंबे समय तक सक्रिय बने रहने जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
 दूसरी बाधा प्रशासनिक  है। आधार, पैन, वोटर आईडी और ड्राइविंग लाइसेंस अलग-अलग विभागों और संस्थाओं के अधीन हैं, जिनके अपने-अपने नियम और प्रक्रियाएँ हैं। पैन कार्ड रद्द करने के लिए वारिस को आयकर विभाग के पास आवेदन करना होता है, वोटर सूची से नाम हटाने के लिए स्थानीय चुनाव कार्यालय की प्रक्रिया अलग है, और ड्राइविंग लाइसेंस के मामले में आरटीओ की भूमिका होती है। इन सभी के बीच एक साझा और केंद्रीकृत व्यवस्था का अभाव है। जब तक इन विभागों के बीच तकनीकी और प्रशासनिक तालमेल नहीं बैठता, तब तक स्वचालित प्रणाली अधूरी ही रहेगी। इसके लिए कानूनी रूप से भी सरकारी कदम वांछित हैं।
तीसरा पहलू निजता और कानूनी अधिकारों का है। मृत्यु का डेटा अत्यंत संवेदनशील होता है और इसका गलत या अनधिकृत उपयोग नागरिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है। यदि किसी का दस्तावेज़ गलत तरीके से निष्क्रिय हो जाए, तो उसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं । पेंशन बंद होना, बीमा दावे अटकना, संपत्ति हस्तांतरण में रुकावट, यहाँ तक कि बैंक लेनदेन ठप होना। इसलिए इस तरह की प्रणाली में सत्यापन के कई चरण, परिवार को सूचना देने की बाध्यता और त्रुटि सुधारने का सरल व त्वरित तरीका होना चाहिए।
चौथी चुनौती तकनीकी है। विभिन्न राज्यों और विभागों के डेटा फॉर्मेट, अपडेट के समयांतराल और सत्यापन के तरीके अलग-अलग हैं। कुछ स्थानों पर सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम में यूनिक इवेंट आईडी और क्यूआर कोड जैसे आधुनिक उपाय लागू हो चुके हैं, लेकिन यह व्यवस्था अभी पूरे देश में समान रूप से लागू नहीं हुई है। जब तक मृत्यु पंजीकरण के लिए एक राष्ट्रीय मानक और सुरक्षित डिजिटल चैनल नहीं बनता, तब तक पूरी प्रक्रिया में जटिलता बनी रहेंगी।
फिर भी, यदि इन चुनौतियों को दूर किया जाए तो इसके लाभ व्यापक हैं। मृतकों के नाम से मिलने वाली पेंशन और सब्सिडी जैसी योजनाओं में फर्जीवाड़ा रोका जा सकता है, वोटर सूची शुद्ध हो सकती है, बैंक खातों और सरकारी लाभ का दुरुपयोग कम होगा और उत्तराधिकार से जुड़ी कानूनी प्रक्रियाएँ सुगम बनेंगी।
 इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए सबसे पहले हर जिले में मृत्यु पंजीयन को समयबद्ध और डिजिटल रूप में उपलब्ध कराना आवश्यक है। उसके बाद आधार, पैन, वोटर आईडी और ड्राइविंग लाइसेंस जैसे दस्तावेज़ों को एक सुरक्षित तकनीकी इंटरफेस के माध्यम से इस रिकॉर्ड से जोड़ा जाए, जो केवल सत्यापित सूचना मिलने पर ही निष्क्रियता की प्रक्रिया शुरू करे। हर निष्क्रियकरण के साथ परिवार को तत्काल सूचना और अपील का अधिकार मिलना चाहिए। साथ ही, निजता और डेटा सुरक्षा के लिए स्वतंत्र ऑडिट और सार्वजनिक रिपोर्टिंग अनिवार्य होनी चाहिए, ताकि किसी भी गलती का समय पर पता लगाया और सुधारा जा सके।
 मृत्यु पंजीयन को सरकारी पहचान प्रणालियों से जोडऩा एक तकनीकी सुधार भर नहीं है, यह नागरिक अधिकारों, पारदर्शिता और सुशासन से सीधे जुड़ा कदम है। यदि इसे सोच-समझकर, चरणबद्ध और पारदर्शी तरीके से लागू किया जाए तो यह न केवल भ्रष्टाचार और दुरुपयोग को कम करेगा, बल्कि नागरिकों का भरोसा भी बढ़ाएगा। मौत भले ही एक अंत हो, पर उसके पंजीकरण का सही उपयोग एक नई प्रशासनिक शुरुआत की नींव रख सकता है।

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