नयी दिल्ली, 23 नवंबर (भाषा) भारतीय बायोगैस एसोसिएशन (आईबीए) ने रविवार को कहा कि किसानों द्वारा अभी जलायी जा रही 73 लाख टन धान की पराली का यदि बायोगैस संयंत्रों में इस्तेमाल किया जाए तो इससे हर साल करीब 270 करोड़ रुपये मूल्य की नवीकरणीय गैस पैदा की जा सकती है।
आईबीए के बयान के अनुसार, नवीनतम एनएरोबिक डाइजेशन प्रक्रिया इस कृषि अवशेष को बहुत प्रभावी ढंग से कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) में बदल सकती है, जो आयातित प्राकृतिक गैस की सीधी जगह ले सकती है।
बयान में यह भी कहा गया कि ऊर्जा उत्पादन के अलावा धान की पराली 40 प्रतिशत सेल्युलोज़ सामग्री होने के कारण बायोएथनॉल बनाने के लिए भी बहुत अच्छी है।
आईबीए ने दावा किया कि इससे लगभग 1,600 करोड़ रुपये के आयात प्रतिस्थापन की संभावना है। साथ ही, शेष 20 प्रतिशत लिग्निन घटक से उच्च-मूल्य वाले उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं।
आईबीए चेयरमैन गौरव केडिया ने कहा, ”यह नीति 2028-29 तक 37,500 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित कर सकती है और देश में 750 सीबीजी संयंत्र स्थापित करने में मदद करेगी। इससे एलएनजी आयात में कमी आएगी, विदेशी मुद्रा की बचत होगी तथा 2027 तक अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में एक प्रतिशत टिकाऊ विमान ईंधन मिलाने का लक्ष्य भी हासिल किया जा सकेगा।”