‘ स्व ‘ की भावना मानवता, राष्ट्रीयता, एवं राष्ट्र चेतना के विकास के लिए आवश्यक है। मनुष्य में यह अव्यय इतिहास, संस्कृति, एवं राष्ट्र के प्रति आत्मीय लगाव बढ़ाती है। ‘ स्व’ का भाव समृद्ध सभ्यता एवं उच्च संस्कृति पर गर्व का उन्नयन करता है। सांस्कृतिक विरासत के उन्नयन में ‘ स्व’ का प्रत्यय ह्रदय भाव उत्पन्न करता है जिससे मन एवं आत्मा में सांस्कृतिक विरासतों के प्रति अपनत्व व आत्मीयता का भाव उत्पन्न होता है। ‘ स्व’ का प्रत्यय विविधता में एकता, राष्ट्र के भीतर सद्भाव और आत्म केंद्रित संकल्पना के उन्नयन में सहयोग से है।
भारत की प्राचीन सभ्यता “सिंधु घाटी सभ्यता” मानवीय सभ्यता के विकास में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। ‘ स्व’ से प्रेरित सभ्यताओं ने आंतरिक विकास के साथ-साथ वैश्विक विचारधाराओं एवं आध्यात्मिकता पर गंभीर प्रभाव डाला है। कर्म, धर्म, एवं योग की अवधारणाएं भारत के सभी वर्गों , पंथों ,एवं संप्रदायों व वैश्विक व्यवस्था में सकारात्मक प्रभाव डाला है। योग की उपादेयता गंभीर बीमारियों में भी असरदार एवं स्वास्थ्यवर्धक सिद्ध हुई है। योग शारीरिक, मानसिक, एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए औषधि सिद्ध हुआ है। यह सभी संप्रत्यय ‘ स्व ‘ के विकास के कारण संभव हुआ है ।
भारत की सांस्कृतिक विरासत इतिहास ,आध्यात्मिकता, कला, एवं विविध परंपराओं का खजाना है जो शताब्दियों से पल्लवित पुष्पित हुई है। विविधता में एकता जो भारत के विरासत का आभूषण है ,जो भारत के शक्ति का स्रोत है, एकता का प्रतिबिंब है, जो भारत के भू – भागीय एकता को बढ़ाता है। भारत के आध्यात्मिक व सांस्कृतिक परंपराएं भारत के भू- भाग में आकर्षक प्रभाव डाला है बल्कि वैश्विक स्तर पर मूल्यवान एवं गंभीर प्रभाव डाला है। यह अवधारणाएं व्यक्तिगत कल्याण एवं सामाजिक सौहार्द के प्रकाश को समाज, राज्य ,एवं व्यवस्था में संचरित करते हैं। सभ्यता के लिए भारतीय मूल्य में ‘ संस्कृति ‘ शब्द प्रयुक्त होता है, जो वास्तविक आशय में ‘ स्व’ का विकास है। विविधता में एकता का सिद्धांत प्रकृति, ब्रह्मांड और जीवन का अंतर्निहित नियम है। विभिन्न समुदायों से संबंधित लोग विभिन्न भाषाओं को बोलते हैं, अलग-अलग भोजन करते हैं एवं विभिन्न रीति – रिवाजों का पालन करते हैं एवं भारत में सामंजस्य पूर्ण सामाजिक, राजनीतिक, एवं सांस्कृतिक संबंधों में रहते हैं। भारत की सांस्कृतिक विरासत की आत्मा इस अवधारणा में निहित है कि यह सभी धर्मों ,परंपराओं, रीति – रिवाजों और मान्यताओं का सर्वश्रेष्ठ संगम है जो ‘ स्व’ की अवधारणा को प्रबोधित कर रहा है।
वाराणसी में ‘ काशी कॉरिडोर’ एवं अन्य परियोजनाओं ने शहर की गलियों ,नदियों के घाटों और मंदिरों के परिसर का कायाकल्प किया है। 900 किलोमीटर लंबे ‘ चार धाम सड़क परियोजना’ से हर मौसम से सड़क से जुड़ाव प्राप्त होगा, जिससे दर्शनार्थियों को सर्व सुलभ सुविधा प्राप्त होगी। केदारनाथ परिसर में ‘ आदि शंकराचार्य जी’ की नई प्रतिमा का अनावरण हुआ है जो भारत की संस्कृति में ‘ स्व ‘ का विकास है। यह सभ्यता में संस्कृति की एकता की शाश्वत अभिव्यक्ति है। अयोध्या में’ श्री राम मंदिर ‘ का निर्माण होना ‘ स्व’ की राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है। यह आधुनिक भारत के इतिहास में नया यादगार पल होगा जो विरासतों की समृद्धि का परिचायक है। भारत ‘ स्व’ के प्रतीकों के लिए आंदोलन स्तर पर काम कर रहा है। सरकार ने ‘ देवताओं को वापस लाने’ के मुहिम के अंतर्गत विदेश से दुर्लभ कलाकृतियां, सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण देवताओं को वापस लाने का कार्य एक जनांदोलन का रूप ले लिया है।
‘ स्व’ दिशा में व्यापक प्रयास आंदोलन का रूप ले लिया है। गुजरात में संसार का सबसे बड़ी प्रतिमा ‘ एकता की मूर्ति ‘ (स्टैचू ऑफ यूनिटी) केवरिया को वैश्विक पहचान दिया है, बल्कि राष्ट्रीय एकता के पहचान को उन्नयन करने वाले महान विभूति सरदार वल्लभभाई पटेल को राष्ट्रीय आंदोलन के राष्ट्रीय चरित्र को उजागर किया है। ‘ जलियांवाला बाग’ का जीर्णोद्धार एवं डॉ भीमराव आंबेडकर के ‘ पंच तीर्थ’ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करना’ स्व’ के विकास और विरासतों के महत्व पर प्रकाश डालने का भगीरथ प्रयास है।
भारत एक समृद्ध एवं विविध सांस्कृतिक विरासत वाला देश है, जिसे सदियों के इतिहास, अभिसमयों ,परंपराओं एवं आदर्शों द्वारा सिंचित किया गया है। प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलनों ,सुधार आंदोलन, पुनर्जागरण एवं सांस्कृतिक आंदोलनों का घर रहा है, जिन्होंने देश के सामाजिक एवं सांस्कृतिक ढांचे पर व्यापक प्रभाव डाला है। भारत का सांस्कृतिक विरासत भारतीयों के साथ वैश्विक स्तर के लिए प्रेरणा स्रोत है। भारत के मंदिरों की सुंदरता एवं आकर्षक नक्काशी, वस्त्रों की भव्यता, कलाकृतियों की सौंदर्यता, दीपक जलने की भव्यता एवं भारतीय दर्शन की उपादेयता ‘ स्व’ के विकास में प्रेरक हैं।
भारत का सांस्कृतिक विरासत संसार के लिए प्रेरणा स्रोत है। यह हमारे नागरिक समाज को स्वीकृति, सह – अस्तित्व और मतभेदों के निवारण का उचित तरीका बताता है। विविधता विकास और संवर्धन का उत्सवी अवसर है। भारत विश्व के सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं में से एक है, जो 4000 वर्ष पहले सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित है। यह पुरातात्विक स्थलों, ऐतिहासिक स्थलों, ऐतिहासिक स्मारकों और प्राचीन ग्रंथो का खजाना है, जो भारतीय संस्कृति के विकास में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। हड़प्पा सभ्यता ने उन्नत जल निकासी व्यवस्था, मानवीकृत वजन एवं माप और लेखन की एक परिष्कृत प्रणाली के साथ नियोजित शहर का भी मापांकन किया था। भारत के विरासत में एक महत्वपूर्ण प्राचीन सभ्यता सभ्यता’ वैदिक सभ्यता ‘ है जो 1500 ईसा के पूर्व उदित हुआ था। ‘ वेद’ इस अवधि के दौरान रचे गए पवित्र ग्रंथों का एक संग्रह एवं हिंदू धर्म का सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। वैदिक सभ्यता ने हिंदू दर्शन, अनुष्ठानों एवं सामाजिक संरचनाओं के नींव रखी जो वर्तमान में भारतीय विरासत एवं ‘ स्व ‘ के विकास में नूतन आकर दे रहा है।
‘ योग ‘ भारत के आध्यात्मिक विरासत का अभिन्न एवं आवश्यक भाग है जिसका उद्देश्य शरीर, मन, एवं आत्मा को शुद्ध एवं सात्विक बनाना है। यह भौतिक संसार में शरीर ,मन, एवं आत्मा को संतुलित करके आत्म – तत्व, अंतःकरण की शांति ,एवं आत्म- प्राप्ति की दिशा में प्रासंगिक है। भारत की सांस्कृतिक विरासत में भगवद्गीता ,रामचरितमानस, महाभारत ,राजतरंगिणी, 1857 का महासमर इत्यादि का महत्वपूर्ण स्थान है जो मानवीय स्थिति और आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। भारत की सांस्कृतिक विरासत का आध्यात्मिक एवं दार्शनिक सार वैश्विक स्तर पर साधकों, चिंतकों, विद्वानों, लेखकों, एवं अन्य वर्गों को प्रभावित कर रहा है जो मानवीय समुदाय एवं नागरिक समाज के निर्माण, उद्देश्य, उपादेयता , एवं प्रासंगिकता पर गंभीर समझ एवं गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
हजारों सालों के समृद्ध इतिहास में भारतीय कारीगरों एवं हस्तशिल्पियों ने अपने परंपरागत कौशल का उन्नयन किया है। इन्होंने उत्तम वस्त्र एवं हस्तशिल्प का उत्पादन किया है, जो देश के कलात्मक कौशल एवं सांस्कृतिक विविधता को प्रोत्साहित किया है। बनारसी रेशमी कपड़े, भदोही का कालीन एवं चंदेरी के हस्तशिल्प व हस्तनिर्मित वस्त्र असाधारण हस्तशिल्प कौशल का प्रतीक है। आगरा से संगमरमर के बर्तन बनाने का काम एवं मध्य प्रदेश के नर्मदा से पत्थर नकाशी अपनी बानगी के लिए प्रसिद्ध है।
भारतीय फ़िल्म उद्योग जिसे ‘ बॉलीवुड’ के नाम से जाना जाता है।’ बॉलीवुड’ अपने कलात्मक उपादेयता ,डायलॉग के तरीकों, सुखांतक से दुखांतक तक की घटनाओं, जीवंत कहानी, भावनात्मक पात्रता ,एवं मनोरम
संगीत की उपादेयता से वैश्विक समुदाय को प्रभावित कर रहा है।
‘ स्व’ के विकास और सांस्कृतिक विरासत के लिए निम्न सुझाव है:-
1′.स्व ‘ की दिशा से राष्ट्रीयता की भावना मजबूत होती है; 2. ‘ स्व ‘ का प्रत्यय ज्ञानात्मक अधिगम का उन्नयन करता है; 3. यह व्यक्तिगत विकास का निरंतर प्रक्रिया है, जिसमें अपने कौशल और ज्ञान को बढ़ाना है; 4. सांस्कृतिक विरासत देश की आत्मा है, जो हमारे पीढ़ियों को प्राचीनतम गौरव से परिचित कराती है; 5. सांस्कृतिक विरासत के प्रति गंभीर अंतर्दृष्टि विकसित करके” विकसित भारत 2047″ की प्राप्ति के लिए आवश्यक है; एवं 6. भारत को ‘ विश्व गुरु ‘ एवं ‘ अग्रणी देश’ होना है तो ‘ स्व’ का सांस्कृतिक क्षेत्र में विकास करना होगा एवं सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करना होगा।
डॉ. बालमुकुंद पांडे
राष्ट्रीय संगठन सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, झंडेवालान, नई दिल्ली।
