बीते सप्ताह सरसों तेल-तिलहन, सोयाबीन तेल, पाम-पामोलीन तेल में गिरावट
Focus News 2 November 2025 0
नयी दिल्ली, दो नवंबर (भाषा) बीते सप्ताह देश के तेल-तिलहन बाजारों में महंगे दाम पर लिवाली प्रभावित होने से सरसों तेल-तिलहन, लागत से कम दाम पर बिकवाली से सोयाबीन तेल, मलेशिया में बाजार टूटने से पाम एवं पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट देखी गई। दूसरी ओर, कम हाजिर दाम पर किसानों की बिकवाली घटने से सोयाबीन तिलहन, उत्पादक राज्यों में बरसात के मौसम के कारण आवक प्रभावित होने से मूंगफली तेल-तिलहन एवं बिनौला तेल कीमतों में सुधार आया।
बाजार सूत्रों ने कहा कि बीते सप्ताह भी महंगे सरसों की लिवाली प्रभावित रहने के कारण सरसों तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट रही। वहीं महाराष्ट्र, गुजरात और कुछ अन्य राज्यों में बरसात जैसे मौसम की वजह से मंडियों में कमजोर आवक के कारण सोयाबीन तिलहन, मूंगफली तेल-तिलहन और बिनौला तेल कीमतों में सुधार आया। आर्थिक तंगी से जूझ रहे आयातकों द्वारा बैंकों में अपना ऋण साख पत्र (एलसी) को प्रचलन में बनाये रखने की कोशिश के तहत लागत से कम दाम पर बिकवाली करने से सोयाबीन तेल कीमतों में गिरावट रही। मलेशिया में दाम टूटने के बीच सीपीओ एवं पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट दर्ज हुई।
सूत्रों ने कहा कि सरकार को यह देखना होगा कि 80-90 के दशक में देश किन कारणों से तेल-तिलहन के मामले में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा था। संभवत: उस समय देश में तिलहन का बाजार था और विदेशी कंपनियों और उनके प्रवक्ताओं का हस्तक्षेप कम था जो मलेशिया इंडोनेशिया जैसे खाद्य तेल निर्यातक देशों के हितों को साधने की कोशिश में मनमाना आकलन करते नजर आते हैं। हाल के दिनों में ऐसे ही प्रवक्ता मलेशिया में लगभग 10 प्रतिशत और तेजी आने का अनुमान जता रहे थे लेकिन दरअसल पिछले कुछ दिनों में मलेशिया में 8-9 प्रतिशत तक बाजार टूटा है।
उन्होंने कहा कि 80-90 के दशक में एक तो तिलहनों का बाजार होने से उनकी उपज बाजार में खप जाती थी। उस समय विदेशी तेल कंपनियों के प्रवक्ताओं का भी देश के बाजार में हस्तक्षेप कम होता था। खाद्य तेल की महंगाई बढ़ने पर सरकार खाद्य तेलों का आयात कर उसे राशन दुकानों के माध्यम से सस्ते में आम उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराती थी। लेकिन विदेशी कंपनियों के प्रवक्ताओं का देश के बाजारों में हस्तक्षेप विभिन्न स्तर पर बढ़ने के बाद से देश के तेल-तिलहन मामले में विदेशों पर निर्भरता घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। इस विषय पर गौर किया जाना चाहिये।
सूत्रों ने कहा कि वर्ष 2000 के बाद से देखने को मिला कि खाद्य तेलों की महंगाई को लेकर एक हौव्वा खड़ा किया गया कि इससे घरों का बजट बिगड़ता है यह लोगों के दिमाग में स्थापित किया गया। जबकि सच्चाई यह थी कि हर घर में खाद्य तेल की खपत दूध, मांस, अंडे जैसे वस्तुओं की तुलना में बहुत कम ही होती है। प्रवक्ताओं को दूध, अंडे और चिकेन के दाम बढ़ने पर विशेष चिंता जताते की जरूरत महसूस नहीं होती लेकिन तेल-तिलहन का दाम बढ़ने पर वे परेशान रहते रहते हैं। सच्चाई तो यह है कि जब तक किसानों की उपज खपने के लिए बाजार नहीं होगी और उन्हें उसकी अच्छी कीमत नहीं मिलेगी, वे उत्पादन बढ़ाने को प्रेरित नहीं होंगे। इसके उलट उन्हें अक्सर लागत से कम दाम पर अपनी उपज बेचना जारी रखना पड़ा तो देश इस मामले में कभी भी आत्मनिर्भरता नहीं हासिल कर पायेगा।
सूत्रों ने कहा कि किसानों की उपज खरीद की गारंटी करना महज एक औपचारिकता और फौरी कार्रवाई साबित हो सकती है। सरकार सारी फसल खरीद भी ले तो, जब तक बाजार नहीं होगा तो वह खपेगा कहां? असल मसला देशी तेल-तिलहन का अपना बाजार विकसित करना होना चाहिये और उसी के अनुरूप सारी आयात निर्यात और शुल्क निर्धारण नीति तय होनी चाहिये।
उन्होंने कहा कि सोयाबीन तिलहन का नया न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,328 रुपये क्विंटल है जबकि हाजिर बाजार का दाम 4,000-4,200 रुपये क्विंटल के बीच है। ऐसे में किस मुंह से किसान तिलहन उत्पादन बढ़ायेगा? बढ़ा भी ले तो जब फसल बिकेगी ही नहीं तो अगली फसल के समय वह बुवाई करने से पहले कई बार विचार करेगा।
बीते सप्ताह सरसों दाना 50 रुपये की गिरावट के साथ 6,950-7,000 रुपये प्रति क्विंटल, सरसों दादरी तेल 50 रुपये की गिरावट के साथ 14,600 रुपये प्रति क्विंटल, सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 20-20 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 2,440-2,540 रुपये और 2,440-2,575 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और सोयाबीन लूज के थोक भाव क्रमश: 50-50 रुपये के सुधार के साथ क्रमश: 4,475-4,525 रुपये और 4,175-4,275 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।
दूसरी ओर, सोयाबीन दिल्ली तेल का दाम 200 रुपये की गिरावट के साथ 13,200 रुपये प्रति क्विंटल, सोयाबीन इंदौर तेल का दाम 200 रुपये की गिरावट के साथ 12,900 रुपये और सोयाबीन डीगम तेल का दाम 150 रुपये की गिरावट के साथ 10,075 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल-तिलहन की कीमतें भी सुधार दर्शाती बंद हुई। मूंगफली तिलहन 100 रुपये के सुधार के साथ 5,850-6,225 रुपये क्विंटल, मूंगफली तेल गुजरात का थोक दाम 200 रुपये के सुधार के साथ 14,000 रुपये क्विंटल और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल का थोक दाम 20 रुपये के सुधार के साथ 2,285-2,585 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताह में सीपीओ तेल का दाम 175 रुपये की गिरावट के साथ 11,650 रुपये प्रति क्विंटल, पामोलीन दिल्ली का भाव 250 रुपये की गिरावट के साथ 13,300 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला तेल का भाव 175 रुपये की गिरावट के साथ 12,275 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
बरसात के कारण मंडियों में आवक कम रहने के बीच, समीक्षाधीन सप्ताह में बिनौला तेल के दाम भी 150 रुपये के सुधार के साथ 12,450 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।
