प्रतिस्पर्धा आयोग के पास पेटेंट विवादों की जांच का अधिकार नहीं : एनसीएलएटी

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नयी दिल्ली, दो नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने कहा है कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) के पास पेटेंट मामलों से संबंधित विवादों की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है।

सीसीआई के उस आदेश के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए, जिसमें नियामक ने स्विस फार्मा कंपनी विफोर इंटरनेशनल (एजी) के खिलाफ एक शिकायत बंद कर दी थी, एनसीएलएटी की दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि पेटेंट अधिनियम प्रतिस्पर्धा अधिनियम पर ऊपर होगा।

पहले के फैसलों का हवाला देते हुए, एनसीएलएटी ने कहा: ‘‘टेलीफोनैक्टीबोलागेट एलएम एरिक्सन (पीयूबीएल) मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले और विशेष अनुमति याचिका संख्या 25026/2023 में उच्चतम न्यायालय के फैसले को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि सीसीआई के पास विफोर इंटरनेशनल (एजी) के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करने का अधिकार नहीं है।’’ एनसीएलएटी, जो सीसीआई द्वारा पारित आदेशों पर अपीलीय प्राधिकरण है, ने कहा कि विफोर इंटरनेशनल के पास फेरिक कार्बोक्सिमाल्टोज (एफसीएम) इंजेक्शन का पेटेंट है, जो आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया (आईडीए) के उपचार के लिए आवश्यक है।

राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा, ‘‘इस मामले के तथ्यों के आधार पर पेटेंट अधिनियम, प्रतिस्पर्धा अधिनियम से ‘प्रबल’ होगा, क्योंकि विवाद का विषय एफसीएम है, जिसे प्रतिवादी संख्या दो (विफोर इंटरनेशनल) द्वारा विकसित और पेटेंट कराया गया था। इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि प्रतिवादी संख्या दो के पास संबंधित समय पर उक्त पेटेंट था।’’

एनसीएलएटी ने 14 पृष्ठ के अपने आदेश में कहा कि प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 3(5) पेटेंट धारक व्यक्ति को किसी भी उल्लंघन को रोकने या उसके अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक उचित शर्तें लगाने के लिए संरक्षण प्रदान करती है।

एनसीएलएटी ने कहा, ‘‘प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 3(5) में यह प्रावधान है कि प्रतिस्पर्धा अधिनियम किसी भी व्यक्ति के पेटेंट अधिनियम के तहत अपने अधिकारों की रक्षा करने के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं करेगा।’’

एनसीएलएटी का आदेश स्वप्न डे नामक व्यक्ति द्वारा दायर एक अपील पर आया, जो प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम (पीएमएनडीपी) के तहत एक निजी सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से सरकार की ओर से मरीजों को मुफ्त डायलिसिस सेवाएं प्रदान करने वाले एक अस्पताल के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) हैं।

उन्होंने दलील दी कि डायलिसिस पर चल रहे मरीजों में आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया (आईडीए) होना आम बात है, जिसके इलाज के लिए फेरिक कार्बोक्सिमाल्टोज (एफसीएम) इंजेक्शन की आवश्यकता होती है।

डे ने आरोप लगाया कि स्विट्जरलैंड स्थित विफोर इंटरनेशनल (एजी) के प्रतिस्पर्धा-रोधी आचरण के कारण, एफसीएम इंजेक्शन आम मरीजों के लिए न तो सुलभ हैं और न ही वहनीय।

उन्होंने सीसीआई के पास जानकारी दाखिल की थी, जिसने 25 अक्टूबर, 2022 को एक आदेश पारित करते हुए जांच बंद कर दी क्योंकि प्रथम दृष्टया उसे अधिनियम की धारा 4 या धारा 3(4) के तहत विफोर की ओर से कोई उल्लंघन नहीं मिला।

याचिकाकर्ता ने सीसीआई के इस आदेश को एनसीएलएटी के समक्ष चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि सीसीआई ‘प्रासंगिक बाजार’ के मुद्दे और विफोर इंटरनेशनल की दबदबे की स्थिति का आकलन करने में विफल रहा है।

इसके अलावा, उन्होंने दलील दी कि सीसीआई ने प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 3(4) के उल्लंघन की जांच के लिए पूर्व-विश्लेषण करने में त्रुटि की है।

उन्होंने दलील दी कि विफोर ने एफसीएम इंजेक्शन बनाने के लिए एमक्योर फार्मास्युटिकल को लाइसेंस दिया है। इसने विफोर द्वारा निर्मित एफसीएम के आयात और वितरण के लिए दवा कंपनी ल्यूपिन के साथ एक दूसरा समझौता भी किया है।

हालांकि, इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, विफोर इंटरनेशनल ने सीसीआई के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी है और कहा है कि चूंकि यह अणु पेटेंट अधिनियम द्वारा शासित है, इसलिए सीसीआई के पास यहां उठाए गए मुद्दे पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अपीलकर्ता ने सीसीआई से बिना किसी पूर्व-प्रश्न के संपर्क किया था और इसी तरह के मुद्दे दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष भी उठाए गए थे।

इसके अलावा, अपने प्रस्तुतीकरण नोट में, विफोर इंटरनेशनल ने न्यायमूर्ति योगेश खन्ना और न्यायमूर्ति अजय दास मेहरोत्रा ​​की दो सदस्यीय एनसीएलएटी पीठ को सूचित किया कि एफसीएम के लिए पेटेंट, जो 25 जून, 2008 को प्रदान किया गया था, 21 अक्टूबर, 2023 को समाप्त हो गया है। यह अब सार्वजनिक डोमेन में है और पूरे भारत में इच्छुक पक्षों और उपभोक्ताओं द्वारा मुफ्त उपयोग के लिए उपलब्ध है।

इस पर, एनसीएलएटी ने कहा कि यद्यपि अब दवा एफसीएम पर पेटेंट समाप्त हो गया है और यह अब विनिर्माण के लिए सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है, वह इस बात की जांच करेगा कि क्या सीसीआई को इस मामले की जांच करने का अधिकार है, जहां विषय वस्तु, दवा एफसीएम होने के नाते, पेटेंट अधिनियम द्वारा संरक्षित थी।

एनसीएलएटी ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने टेलीफोनक्टीबोलागेट एलएम एरिक्सन (पीयूबीएल) के मामले में यह माना था कि पेटेंट अधिनियम प्रतिस्पर्धा अधिनियम पर प्रबल होगा। इसे सीसीआई ने शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी थी। हालांकि, न्यायालय ने हाल ही में दो सितंबर, 2025 को याचिका खारिज कर दी थी।

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