नयी दिल्ली, 27 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दिव्यांगजनों की गरिमा की रक्षा के लिए एक सख्त कानून की आवश्यकता पर जोर दिया और केंद्र सरकार से बृहस्पतिवार को कहा कि वह दिव्यांगजनों के खिलाफ उनका मजाक उड़ाने वाले अपमानजनक बयान देने वालों के खिलाफ भी एससी-एसटी अधिनियम की तर्ज पर दंडनीय कानून बनाने पर विचार करे।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 एससी और एसटी समुदायों के लोगों के खिलाफ किए जाने वाले जातिसूचक अपशब्दों, भेदभाव, अपमान और हिंसा को अपराध मानता है तथा उसके तहत ऐसे मामले गैर-जमानती होते हैं।
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, ‘‘एससी-एसटी अधिनियम में जातिसूचक टिप्पणियों को अपराध माना गया है और सजा का प्रावधान है, उसी तरह का कठोर कानून आप दिव्यांग लोगों के लिए क्यों नहीं ला सकते?’’
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस टिप्पणी की सराहना की और कहा कि मजाक उड़ाकर किसी की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाया जाना चाहिए।
पीठ ने यह भी कहा कि ऑनलाइन मंचों पर अश्लील, आपत्तिजनक या अवैध सामग्री को नियंत्रित करने के लिए एक ‘तटस्थ, स्वतंत्र और स्वायत्त’ संस्था की आवश्यकता है।
पीठ को सूचना प्रसारण मंत्रालय ने बताया कि दिव्यांग व्यक्तियों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों और उनका मजाक उड़ाने जैसे मामलों से निपटने के लिए कुछ दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं।
पीठ ने मंत्रालय से कहा कि वह दिशानिर्देशों को चर्चा के लिए सार्वजनिक करे। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद की जाएगी।
उच्चतम न्यायालय दुर्लभ ‘स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी’ (एसएमए) रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए काम करने वाले ‘मेसर्स एसएमए क्योर फाउंडेशन’ की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ के होस्ट समय रैना और अन्य सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स – विपुन गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठाक्कर तथा निशांत जगदीश तनवर – द्वारा किए गए मजाकिया बयानों को उठाया गया।
पीठ ने हास्य कलाकार रैना और अन्य को भविष्य में अपने आचरण के प्रति सावधान रहने का निर्देश देते हुए दिव्यांगजनों की सफलता की कहानियों के बारे में हर महीने दो कार्यक्रम आयोजित करने का निर्देश दिया, ताकि दिव्यांगजनों, विशेषकर एसएमए से पीड़ित लोगों के उपचार के लिए धन जुटाया जा सके।
पीठ ने कहा कि यह सामाजिक दंड का हिस्सा है और उन्हें अन्य दंडात्मक उपायों से छूट दी गई है।
उन्हें दिव्यांगों के बारे में उनके असंवेदनशील चुटकुलों के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में ऐसा करने के लिए कहा गया है।
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि इन्फ्लुएंसर्स एसएमए जैसी दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित लोगों को समय पर उपचार प्रदान करने के मकसद से धन जुटाने के लिए अपने मंचों पर विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों को आमंत्रित कर सकते हैं।
सुनवाई में क्योर फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि फाउंडेशन ने रैना की 2.5 लाख रुपये देने की पेशकश को अस्वीकार कर दिया क्योंकि यह उनकी गरिमा का सवाल था।