बिहार जनादेश – 2025, बहुआयामी संदेश

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विजय सहगल

        

अंततः 14 नवंबर 2025 को बिहार में हुए चुनाव का जनादेश 2025 एनडीए के जबर्दस्त पक्ष में रहा जिसकी कल्पना कदाचित एनडीए और महागठबंधन  के घटक दलों के शूर वीरों ने भी नहीं की होगी। जहां एनडीए और उसके दलों के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों के चेहरे इस सफलता पर खुशी से फूले  नहीं समा रहे थे, वहीं  महागठबंधन के सहयोगी दल राजद और कॉंग्रेस के नेताओं के चेहरों की हवाइयाँ उडी हुए थी। बिहारी भाषा की कहावत कहें तो इस चुनाव में एनडीए ने गर्दा उड़ा दिया!!

कॉंग्रेस के नेता और संसद मे विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बिहार राज्य के अंदर और बाहर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बड़ी ही अभद्र भाषा मे वोट चोरी के आरोप लगा कर अपनी चुनावी सभाओं में उपस्थित लोगों से “वोट चोर-गद्दी छोड़”  जैसे नारे लगवा कर  अपनी अपरिपक्व राजनीति और सोच का परिचय दिया। एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) के मुद्दे पर  5 नवंबर 2025 को हरियाणा में केन्द्रीय चुनाव आयोग  पर इस कथित वोट चोरी मे संलिप्तता और सहयोग का आरोप लगाते हुए इन तीनों सर्वोच्च पदस्थ अधिकारियों पर सहभागी होने के आरोप भी लगाए।  कॉंग्रेस की महासचिव प्रियंका वाड्रा ने तो एक कदम बढ़ कर, चंपारण जिले के रीगा में अपनी चुनाव रैली मे केंद्रीय  चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार, उपायुक्त द्वय एसएस संधु एवं विवेक जोशी का नाम लेकर उन पर संविधान और लोकतन्त्र के साथ विश्वासघात करने के  आरोप लगा कर उन्हे चोर ठहराने के नारे उपस्थित जन समूह से लगवाए।

 चुनाव आयुक्त और उपायुक्तों पर आरोप प्रत्यारोपों के बावजूद, बिहार राज्य के विधान सभा चुनाव 2025 इन मायने में बेहद महत्वपूर्ण रहे  कि स्वतन्त्रता के बाद हुए अब तक के चुनावों में मतदान प्रतिशत सर्वाधिक 67.13 प्रतिशत  रहा जो अब तक हुए चुनावों मे एक कीर्तिमान है। यह मतदान पिछले वर्ष के हुए मतदान से 9.6% अधिक है जो एक रिकॉर्ड है। महिलाओं द्वारा किए गए मतदान की दृष्टि से  भी बिहार राज्य के  चुनाव 2025 ने एक प्रभावशाली छाप छोड़ी, जो पुरुषों द्वारा किए गये 62.98 प्रतिशत  से 8.15 प्रतिशत अधिक अर्थात 71.78 प्रतिशत, जो भी एक रिकॉर्ड है। इस असाधारण मताधिकार के लिये बिहार राज्य के चुनाव आयोग और केंद्रीय चुनाव आयोग और उनके अधिकारी, कर्मचारी बधाई के पात्र हैं जिन्होने अपने श्रेष्ठ चुनाव प्रबंधन और सूझ बूझ के साथ अब तक सर्वाधिक मतदान प्रतिशत के साथ हिंसा, हत्या और हानि के लिये बदनाम बिहार में 2025 के चुनावों को कमो बेश शांति और सफलता पूर्वक सम्पन्न कराया।

जिस तरह बिहार की 243 सदस्यीय विधान सभा में एनडीए और उंसके सहयोगी दलों ने 202 सीटें जीत कर स्पष्ट दो तिहाई बहुमत प्राप्त किया, वह काबिले तारीफ है। महा गठबंधन ने सिर्फ 34 सीटें जीत कर, जैसी शर्मनाक हार का प्रदर्शन किया, वह उनके नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव द्वारा महागठबंधन की सरकार बनाने के किये गये दावों के एकदम विपरीत रहा। जन स्वराज पार्टी के प्रशांत किशोर जो कभी अपनी चाणक्य नीति के तहत देश के तमाम नेताओं को अपनी चुनावी  रणनीति और चुनावी युद्ध कौशल से अनेकों राज्यों में विभिन्न दलों के मुखियाओं को  मुख्यमंत्री बनवाते नज़र आते थे पर  बिहार में अपने दल के लिये न कोई उपाय और न ही कोई युक्ति बना और सुझा सके, नतीजतन बिहार के इस विधान सभा चुनाव 2025 ज़ीरो पर आउट हो गये और अपने दल के लिये एक भी सीट नहीं जुगाड़ सके।     

आने वाले साल 2026 में पश्चिमी बंगाल, केरल, असम और तमिलनाडु में  होने वाले राज्य विधान सभाओं के चुनाव में बिहार की इस जीत का बड़ा असर दिखलाई पड़ेगा। जहाँ तक एनडीए का प्रश्न है, बिहार की इस शानदार जीत पर इसके घटक दलों मे जबर्दस्त उत्साह है, जिसकी बानगी नरेंद्र मोदी के भाजपा कार्यालय में हुए जश्न मे देखने को मिली। पीएम ने अपने सम्बोधन में जीत का श्रेय बिहार की उन बहिनों, बेटियों को दिया जिन्होने आरजेडी के राज मे जंगलराज का आतंक झेला है। उन्होने अपने सम्बोधन में बिहार के लोगो को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि गंगा जी बिहार से बंगाल जाती हैं, बिहार ने बंगाल मे बीजेपी की विजय का रास्ता बना दिया है।  बीजेपी आप के साथ मिल कर पश्चिमी बंगाल से भी जंगल राज उखाड़ फ़ेंकेगी।

इस बार के चुनाव में एक ओर जहाँ जातिवादी और धार्मिक समीकरण  टूटते नज़र आए, वही महागठबंधन के एमवाई फैक्टर अर्थात मुस्लिम और यादव के मुक़ाबले एनडीए का एमवाई फैक्टर अर्थात महिला और यूथ (युवा) अधिक कारगर रहा। चुनाव के ठीक पहले महिलाओं के  लिये बिहार सरकार की, “मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना” ने एक अहम भूमिका अदा की। इस योजना के अंतर्गत अगड़े, पिछड़े, हिन्दू-मुस्लिम, आदिवासी, अनुसूचित जाति की हर उस महिला के बचत खाते मे सीधे ही दस हज़ार रूपये जमा किये गये जो  स्वरोजगार शुरू करने के उद्देश्य से सहायता की  अपेक्षा रखती थी। इस यौजना में बिहार की 25 लाख महिलाओं के खाते मे दो हजार पाँच सौ करोड़ की राशि सीधे ही महिलाओं के खाते मे जमा की गयी।

एक ओर इस विकासोन्मुख  और सकारात्मक योजना ने एनडीए गठबंधन को जीत दिलाने में तुरुप के इक्के का कार्य किया, वही दूसरी ओर विपक्षी महागठबंधन के प्रमुख नेता राहुल गांधी ने  नकारात्मक सोच के रूप में जगह जगह मोदी को वोट चोर गद्दी छोड़ के आरोप लगाये। भ्रष्ट परिवारवादी, वंशवादी, कट्टा बंदूक के जंगलराज की राजनीति के विरुद्ध लोगो की एकजुटता ने भी महागठबंधन को काफी नुकसान पहुंचाया। एनडीए की सफलता में जहाँ एक ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच आपसी समझ-बूझ और एक दूसरे के प्रति सम्मान के साथ ही एनडीए के घटक दलों द्वारा एक टीम की तरह चुनाव लड़ने का जज्बे ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की वहीं महागठबंधन द्वारा 8-9 जगह एक दूसरे के विरुद्ध अपने प्रत्याशियों को खड़ा करना भी उनके अदूरदर्शीय सोच और आपसी तालमेल की कमी को दिखा रहा था।

अभी समय आ गया है कि महागठबंधन के घटक दलों विशेषकर काँग्रेस,  आत्मचिंतन कर देश के सामने विकास योजनाओं को लेकर जनता के सामने आयें।  राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी को कभी चौकीदार चोर, कभी वोट चोर, तूँ-तड़ाक जैसी भाषा रूपी  अपने नकारात्मक चिंतन को छोड़ विकास के मुद्दों को लाना होगा ताकि भारतीय जनमानस को अपने पक्ष में लाकर सकारात्मक राजनीति कर सकें।

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