ढाका, 17 नवंबर (भाषा) बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी-बीडी) ने सोमवार को अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ एक मामले में अपना फैसला सुनाना शुरू कर दिया है।
पिछले साल छात्र नेतृत्व वाले आंदोलन के दौरान मानवता के खिलाफ कथित अपराधों के लिए उन पर उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया जा रहा है। इस आंदोलन के कारण हसीना की अब भंग हो चुकी आवामी लीग पार्टी की सरकार गिर गयी थी।
तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण, हसीना के दो सहयोगियों पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल और पूर्व पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून के खिलाफ भी इन्हीं आरोपों में अपना फैसला सुनाएगा। मामून को न्यायाधिकरण के समक्ष पेश किया गया।
अभियोजकों ने आरोपियों के लिए मृत्युदंड की मांग की है।
हसीना (78) पर बड़े पैमाने पर हुए विद्रोह से जुड़े कई आरोप हैं, जिसके कारण उन्हें अगस्त 2024 में पद छोड़ना पड़ा था। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि हसीना सरकार के व्यापक कार्रवाई के आदेश के बाद 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच ‘‘जुलाई विद्रोह’’ के दौरान 1,400 लोग मारे गए थे।
हसीना और कमाल को भगोड़ा घोषित कर दिया गया और उनकी अनुपस्थिति में उन पर मुकदमा चलाया गया, जबकि मामून को सरकारी गवाह बनने से पहले व्यक्तिगत रूप से मुकदमे का सामना करना पड़ा।
मुख्य अभियोजक मोहम्मद ताजुल इस्लाम ने हसीना को विरोध प्रदर्शनों के दौरान कथित अत्याचारों की ‘‘मास्टरमाइंड और मुख्य साजिशकर्मा’’ बताया है। उनके समर्थकों का कहना है कि ये आरोप राजनीति से प्रेरित हैं।
न्यायाधिकरण ने 28 कार्य दिवसों के बाद 23 अक्टूबर को मामले की सुनवाई पूरी की, जब 54 गवाहों ने अदालत के समक्ष गवाही दी कि किस प्रकार पिछले वर्ष ‘जुलाई विद्रोह’ नामक छात्र आंदोलन को दबाने के प्रयास किए गए थे, जिसने पांच अगस्त 2024 को हसीना की अब भंग हो चुकी अवामी लीग सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंका था।
हसीना उसी दिन बढ़ती अशांति के बीच बांग्लादेश से भाग गईं और तब से भारत में रह रही हैं। माना जाता है कि कमाल ने भी भारत में शरण ले ली है। मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है, लेकिन भारत ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है।