प्रलोभनों से बचें

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cdewsdew
मनुष्य को अपने जीवनकाल में नानाविध प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है। इस संसार के आकर्षण बहुत अधिक हैं। प्रत्येक मनुष्य अपने लिए दुनिया की सारी सुख-सुविधाऍं जुटाना चाहता है। यह आवश्यक नहीं कि सबके पास उन्हें पाने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। जो लोग उनसे प्रभावित हुए बिना अपने रास्ते पर चलते रहते हैं वे जीवन की ऊँचाइयों में छूते हैं। इसके विपरीत जो उनके झाँसे में आ जाते हैं वे अपना मार्ग भटक जाते हैं। उनमें से कुछ लोग कभी-कभी भटकते हुए किसी सज्जन की संगति पाकर सन्मार्ग की ओर मुड़ जाते हैं।

कुछ ऐसे हठी प्रकृति के लोग भी होते हैं जिनके लिए हम कह सकते हैं कि उन्होंने अपने सही रास्ते पर लौटकर न आने की कसम खा ली है। ऐसे ही ये लोग भ्रष्टाचार, अनाचार, आतंकवाद, स्मगलिंग, चोरी-डकैती, कालाबाजारी आदि समाज विरोधी गतिविधियों में लिप्त होते हैं। ऐसे लोगों को यह चिन्ता नहीं होती कि उनका समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा? वे अपने बच्चों को कैसे संस्कार दे रहे हैं? वे इन सब पचड़ों में न पड़कर अपनी राह पर चलते जाते हैं। जब उन्हें इन कुकृत्यों का भुगतान करना पड़ता है तब उन्हें नानी याद आने लगती है।

इन लोगों की ऊपरी चमक-दमक से प्रभावित होकर कुछ लोग इनके चंगुल में फंस जाते हैं। जितना गहरे वे पैठते जाते हैं उतना ही अधिक दलदल में डूबते जाते हैं। तब उनके पास वापसी का रास्ता ही नहीं बचता, सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण है कि यदि वे उस नरक से बाहर निकलना भी चाहें तो उनके साथी ही उन्हें ऐसा करने नहीं देते और यदि वे किसी तरह जबरदस्ती वहाँ से बाहर निकलने की सोचें तो उन्हें जान से मार डालते हैं।
इसीलिए सयाने कहते हैं कि एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है। यह अक्षरश: सत्य है। इसका कारण शायद यही रहा होगा कि एक दुष्ट व्यक्ति समाज में अन्य बहुत से लोगों के लिए घातक सिद्ध होता है। उसकी देखा देखी कई और लोग कुमार्गगामी हो जाते हैं। वे समाज के लिए कोढ़ के समान होते हैं। इन लोगों को सन्मार्ग पर वापिस लौटाना कठिन हो जाता है। ये लोग स्वयं भी समाज की मुख्य धारा का हिस्सा नहीं बनना चाहते। उनकी सहायता तभी की जा सकती है जब वे अपने मन से इसके लिए तैयार हों।

एक दृष्टान्त यहाँ देना चाहती हूँ। अपने बच्चे को सही रास्ते पर लाने के लिए पिता ने एक उपाय किया। उन्होंने बढ़िया सेब की एक टोकरी ली। उसमें एक सड़ा हुआ सेब रख दिया। शीघ्र ही उस सड़े हुए सेब के कारण बाकी अच्छे सेब भी खराब होने लगे। तब उस बच्चे को कुसंगति की हानि समझ में आई। उसने गलत रास्ते पर न जाने का पिता को वचन दिया। पिता ने अपने बच्चे को सन्मार्ग पर लाकर यही सिद्ध किया कि माता-पिता ही अपनी सन्तान के पथप्रदर्शक होते हैं।
यह घटना यही समझाती है कि एक खराब सेब बढ़िया सेबों को शीघ्र बर्बाद कर सकता है। एक मछली तालाब को गन्दा कर सकती है। उसी प्रकार एक दुर्जन व्यक्ति भी अन्य बहुत से लोगों का जीवन दाँव पर लगा सकता है। अपना जीवन तो वह नष्ट करता ही है अपने साथियों को भी बर्बाद कर देता है। जहॉं तक हो सके ऐसे लोगों से किनारा कर लेना चाहिए। यही मनुष्य की भलाई के लिए श्रेयस्कर होता है।

ऐसे लोग केवल अपने स्वार्थों को साधने का कार्य करते हैं। वे किसी की भावनाओं का कभी सम्मान नहीं करते। वे विषधारी सर्प की तरह होते हैं जिसे कितना भी दूध पिला लो, उनका स्वभाव ही ऐसा होता है कि वे कभी भी किसी को भी डंक मार सकते हैं। उन पर विश्वास करना सबसे बड़ी मूर्खता होती है। ऐसे लोगों की न दोस्ती अच्छी होती है और न ही दुश्मनी अच्छी होती है। उनका कोई भरोसा नहीं कि कब खेल-खेल में वे किसी के प्राणों का हंसते हुए हरण कर लें।

अत: सबको सावधानी बरतने की अथवा सतर्क रहने की बहुत आवश्यकता होती है। अपने विचारों में दृढ़ता लाना ही इस समस्या से बचने का एकमात्र उपाय है। जितने अपने संसाधन हो, उसी में मनुष्य को सन्तुष्ट रहना। सीखना चाहिए। दूसरों की होड़ करते हुए अपने जीवन को कठिनाइयों में डालने से बचना चाहिए। प्रलोभनों से स्वयं को दूर रखकर या बचकर ही मनुष्य को वास्तव में सच्चा सुख व शान्ति मिलती है और वह चैन की बंसी बजा सकता है।

कहने का तात्पर्य मात्र यही है कि कुमार्ग से सन्मार्ग की ओर लौटना असम्भव तो नहीं पर कठिन अवश्य होता है। आवश्यकता है मनुष्य को सदा सचेत रहने की। हो सके तो प्रभु से अपने लिए सद् बुद्धि की याचना करनी चाहिए। उससे सन्मार्ग पर ले जाने की प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य का इहलोक और परलोक दोनों सुधर जाएँगे। फिर मनुष्य अपने लक्ष्य मोक्ष की ओर कदम बढ़ा सकता है।

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