प्रकृति ने विभिन्न प्राणियों को अपनी सुरक्षा के लिए विचित्रा अंग प्रदान किये हैं। उन्हीं अंगों में सींग भी स्तनी वर्ग के कुछ प्राणियों में पाया जाता है। कुछ प्राणियों को यह सुरक्षा के साथ-साथ सुंदरता या विचित्राता भी प्रदान करते हैं। पशुओं में पाये जाने वाले सींग विभिन्न प्रकारों के होते हैं- 1. केरेटिन-तंतु सींग:- यह गैंडे में पाया जाता है। यह कंकाली तत्वों का बना नहीं होता। यह एपिडर्मिस की केरेटिन कोशिकाओं का बना होता है। इसके अंदर परस्पर बंधे चिपके हुए केरेटिन तंतुओं की एक सघन परत बन जाती है लेकिन इसके तंतु वास्तव में बाल नहीं होते। यह एक स्थायी एपिडर्मिसी संरचना है। यदि ये सींग टूट जायें तो फिर से उग आते हैं भारतीय गैंडे में एक एवं अफ्रीकी गैंडे में दो सींग होते हैं। 2. शूल सींग:- इसमें सामने की हड्डी का एक स्थायी प्रवर्ध होता है जिसके ऊपर एक कड़ा, श्रृंगीय एपिडर्मिसी आच्छद होता है। आच्छद में शूल बने होते हैं। ये शूल संख्या में एक से तीन तक होते हैं और केवल श्रृंगीय आच्छद के बने होते हैं। श्रृंगीय आच्छद हर साल उतर जाता है। यह रूसी ऐटिलोकैप्रा में पाया जाता है। 3. मृग सींग:- ये सींग मृग कुल के सभी नरों में पाये जाते हैं। लेकिन रेनडियर एवं कैरिबू में नर एवं मादा, दोनों में पाये जाते हैं। मृगसींग फ्रांटल हड्डी की एक विशखित बहिवृद्धि होता है। यह वृद्धि जब बढ़ रही होती है तो इसके ऊपर रोमिल खाल की एक परत चढ़ी होती है जिसे मखमल कहते हैं। मृगसींग जब पूरी तरह बढ़ जाता है, तब वह मखमल झड़ जाता है और तब मृगसींग चर्मी हड्डी का बना रह जाता है। हड्डीदार मृगसींग भी हर वर्ष प्रजनन ऋतु के बाद गिर जाते हैं। मृगसींग ठोस मीजोडर्मी हड्यिां होते हैं लेकिन वे त्वचा के प्रभाव के अंतर्गत बनते हैं। मृगसींगों का बनना वृषणों और पिट्यूटरी की अग्र पालि के हॉर्मोनों के द्वारा नियंत्रित होता है। 4. जिराफ के सींग:- इनके सींग हिरणों की तरह होते हैं जिनमें एक डर्मिसी हड्डी का अन्तर्भाग बना होता है और ऊपर से एपिडर्मिसी मखमल अथवा खाल चढ़ी होती है। यह खाल कभी नहीं झड़ती। जिराफ के सींग छोटे होते हैं। इनमें शाखाएं नहीं होती। ये स्थायी होते हैं ये नर तथा मादा दोनों में पाये जाते हैं। 5. खोखले सींग:- इस प्रकार के सींग गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि में पाये जाते हैं और सामान्यतः ये नर तथा मादा दोनों में पाये जाते हैं। खोखले सींगों में एक स्थायी डर्मिसी हड्डी से निकलता है। इसके ऊपर एपिडर्मिस का बना एक स्थायी खोखला सींग चढ़ा होता है। ये सींग कभी नहीं गिरते और कभी भी विशाखित नहीं होते।