क्या आपको इस बात का कभी इल्म हुआ है कि स्नेहिल स्पर्श की मानव जीवन में कितनी महत्ता है। यह सांत्वना का वह मूक स्वरूप है जो बगैर कुछ कहे भी बहुत कुछ कह देता है। आपके हाथों का हल्का सा स्नेहिल स्पर्श किसी में नवजीवन का संचार कर सामने वाले को निराशा के गर्त से बाहर निकाल सकता है। एक्युप्रेशर, एक्युपंक्चर, रेकी, इन सभी विभिन्न प्रकार की चिकित्साओं से बढ़कर असरदार है स्पर्श चिकित्सा (हीलिंग टच)। इसमें किसी का अर्थात न लेने वाले, न देने वाले का कोई टका पैसा खर्च होता है, न ऊर्जा का क्षय होता है। यह तो केवल मानवीय संवेदना का इजहार है। भावनात्मकता के साथ ही इसका वैज्ञानिक पहलू भी है। किसी के हाथों का स्नेहिल स्पर्श किसी के शरीर में रक्त संचरण बढ़ा सकता है जिससे वह अधिक से अधिक ऑक्सीजन ग्रहण कर अशुद्ध वायु निष्कासित करता है। शरीर में इससे शुद्ध रक्तसंचरण होता है। इससे ऊर्जा में बढ़ोत्तरी तो होती ही है, व्यक्ति चुस्ती फुरती महसूस करता है। जिसका अंतर जितना शुद्ध और पवित्रा होगा, उसके हाथों के स्पर्श में उतना ही जादुई कमाल होगा। मदर टेरेसा का उदाहरण समक्ष है। उन्होंने अपने स्नेहिल स्पर्श से न जाने कितने मानसिक रूप से टूटे हुए इंसानों को फिर से जीने का संदेश दिया है। स्नेहिल स्पर्श का असर न केवल चमत्कारिक बल्कि अलौकिक होता है कई बार कई मानसिक व्याधियों में जो असर दवायें नहीं कर पाती, वह मधुर स्पर्श कर दिखाता है। जीवन से विमुख लोगों में जीवन के प्रति आस्था और विश्वास जगाता है। प्रसव से तड़पती बेटी को मिला जननी का स्नेहिल स्पर्श उसकी वेदना कितनी कम और सहनीय बना देता है यह वही बता सकती है। डर से थरथर कांपते बच्चे को पिता का लाड़ से थपथपाना उसका डर काफूर कर देता है। सुहागसेज पर प्रथम रात्रि को घबराई लजाई आशंकित दुल्हन को प्रियतम पति का प्यार भरा आलिंगन पूर्णतः आश्वस्त कर जाता है। तभी वह स्वयं को हृदय से समर्पित कर पाती है। विभिन्न रिश्तों से विभिन्न रूप से जुड़े होते हैं स्पर्श। स्पर्श के अहसास से जानवर भी महरूम नहीं। घोड़ा अपने मालिक की थपथपाहट पहचानता है। इसी तरह पालतू कुत्ता भी मालिक के स्नेहिल स्पर्श के लिये उतावला रहता है। मां और शिशु का लगाव ही इन स्पर्शो की देन है। शिशु कितनी जल्दी मां के स्पर्श को पहचानने लगता है। आज के भौतिकवादी मशीनी युग में जहां मानव धीरे-धीरे अपनी संवेदनायें खोकर महज एक मशीनी मानव (रोबो) बनता जा रहा है आत्म-केंद्रिता ने जहां उसे इतना एकाकी बना दिया है कि उसे अत्याधिक जरूरत है ऐसे स्नेहिल स्पर्शो की जो उसमें चाहे जाने का अहसास जगाकर उसके एकाकीपन को दूर करते हुए उसे सुरक्षा की भावना प्रदान कर सकें ।