बिना समुचित आराम किये लगातार काम करना कभी मजबूरी थी अब धीरे-धीरे हमारी आदत में तब्दील होता जा रहा है। शारीरिक कार्यक्षमता में निरंतर कमी का यही सबसे प्रमुख कारण है। ज्यादा वक्त काम में लगा देने के कारण हम अपने स्वास्थ्य की उचित देखभाल नहीं कर पाते। प्राथमिकता काम की होती है जिससे हम अपने स्वास्थ्य के प्रति उदासीन होते जाते हैं।
खान-पान, व्यायाम आदि आवश्यक क्रियाओं के लिए वक्त नहीं है आज हमारे पास। पेट भरने के लिए आज ढेरों फास्ट फूड और प्रॉसेस्ड फूड बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं। चटपटे और मन को लुभाने वाले ये व्यंजन स्वास्थ्य की दृष्टि से कतई अच्छे नहीं हैं, कारण इसमें फूड वेल्यू न के बराबर है।
अपर्याप्त भोजन और इसके साथ विषाक्त वातावरण हमारे अंदर कई असाध्य बीमारियों को पैदा करता है। आजकल होने वाली प्रमुख बीमारियां जैसे कैंसर, हाइपरटेंशन, डायबिटिज, केटारेक्ट, पारकिंस डिसीज, एचआईवी वायरस द्वारा फैलाये जाने वाले रोग आदि के शिकार होने का सबसे प्रमुख कारण है।
आजकल की हमारी जीवन चर्या, जीने का तरीका (लाइफ स्टाइल), यह मानव निर्मित है लेकिन इन सबसे बच कर भी नहीं रह सकते। इस विषाक्त वातावरण को नहीं बदल सकते जिससे हजारों की संख्या में फ्रीरेडिकल्स हर रोज हमारे शरीर के अंदर दाखिल हो रहे हैं।
फ्री रेडिकल्स हमारे स्वस्थ उत्तकों को क्षति पहुंचाते हैं और हमारा शरीर खोखला होता जाता है और हम आसानी से बीमारियों की गिरफ्त में चले जाते हैं।
संतुलित भोजन के बारे में एक तो लोगों में पर्याप्त जानकारी का अभाव है और जिन्हें इसकी थोड़ी जानकारी है भी, वे इसे अपनी दिनचर्या में भलीभांति शामिल नहीं कर पाते। भोजन के मूलभूत तत्वों को हमें लेना ही पड़ेगा नहीं तो हमें बीमार पड़ने से कोई नहीं रोक सकता। डॉक्टर हमें बीमारियों की रोकथाम के लिए दवा देते हैं, बीमारियों से बचने के लिए नहीं।
ऐसे में हमारे पास एक ही विकल्प होता है खाद्यपूरकों को अपने दैनिक भोजन में शामिल करना। जिस प्रकार स्कूल में सही ढंग की पढ़ाई न होने के कारण बच्चों को घर पर ट्यूशन देनी पड़ती है ताकि उसका भविष्य खराब न हो, ठीक उसी प्रकार अच्छे स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए संतुलित भोजन की आवश्यकता की पूर्ति खाद्यपूरकों से ही संभव है।
भोजन और स्वास्थ्य संबंधी विषयों के जानकार और शोध करने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि समुचित स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए खाद्यपूरक की आवश्यक मात्रा हर रोज लेनी ही चाहिए। विषाक्त वातावरण में उगाये जाने वाले फल-सब्जियों से शुद्ध पोषाहार की कल्पना (आशा) नहीं की जा सकती।
शहरों में उपलब्ध कराई जाने वाली सब्जियों और फलों में तो पौधों के जीवित तत्व (फाइटोफैक्टर) बिलकुल नहीं होते जिस कारण इन सब्जियों के प्रयोग करने का मूल उद्देश्य ही पूरा नहीं हो पाता। पौधों के ये जीवित तत्व खेतों से अलग करने के ज्यादा से ज्यादा आठ घंटे तक फलों और सब्जियों में मौजूद रह सकते हैं। इसके बाद ये सब्जियां केवल अवशिष्ट ही रह जाती हैं।
आजकल कई अग्रणी शोध संस्थाएं और व्यावसायिक संगठन इस क्षेत्रा में महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण जैसे आवश्यक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए इन सभी के पूरक आज विभिन्न ब्रांडों में बाजार में आ चुके हैं। सैंकड़ों वैज्ञानिकों की देखरेख में बिना कीटनाशक रसायन के प्रयोग से हजारों एकड़ भूमि में उगाये गये पौधों से इनके सत्व निकालकर हम लोगों तक पहुंचाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है और महंगा भी लेकिन यदि हम थोड़ा भी अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग हैं तो इनके प्रयोग को न नहीं कर सकते।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप तैयार किये जा रहे ये उत्पाद आज विभिन्न असाध्य बीमारियों की रोकथाम में वरदान साबित हो रहे हैं।
