
काले, घने, कोमल व लम्बे बाल किसी भी रमणी के सौंदर्य में वृद्धि करते हैं। वैसे तो बाल प्रायः शरीर के हर हिस्से पर पाये जाते हैं परंतु सिर के बालों का आपके सौंदर्य से घनिष्ठ संबंध है। प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से ये आपके चेहरे के सौंदर्य व व्यक्तित्व में वृद्धि करने में सहायक होते हैं।
आपके बालों व उनके सौंदर्य को नष्ट करने वाला एक रोग है-सीकरी। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो इस रोग से परिचित न हो। बालों का सौंदर्य नष्ट करने के साथ-साथ यह बाकी त्वचा पर भी बुरा प्रभाव डालता है। इस रोग में प्रायः सिर से छोटी-छोटी पपडि़यां सी उतरती रहती हैं।
वास्तव में सीकरी दो प्रकार की होती है- खुश्क सीकरी और तैलीय सीकरी।
खुश्क सीकरी:- इस प्रकार की सीकरी में पपडि़यां बहुत छोटी-छोटी, महीन, सफेद व रूखी-सूखी होती हैं। सिर में हर समय थोड़ी-बहुत खुजलाहट होती रहती है। कंघी करते समय ये पपडि़यां कंधों व गर्दन पर गिरती देखी जा सकती हैं। खुश्क सीकरी गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में अधिक परेशान करती है। इन रोगियों की त्वचा भी प्रायः शुष्क प्रकृति की होती है। विडम्बना की बात है कि ऐसे व्यक्ति, अक्सर पाया गया है कि शरीर व सिर में तेल लगाने से परहेज करते हैं। यह सच है कि यदि ये व्यक्ति नियमित रूप से तेल लगायें तो बड़ी आसानी से इस रोग से छुटकारा पा सकते हैं।
तैलीय सीकरी:- सीकरी की यह किस्म प्रायः तैलीय प्रकृति की त्वचा वाले व्यक्तियों में पायी जाती है। यह रोग सिर में छोटे-छोटे गोल धब्बों के रूप में आरंभ होता है। धीरे-धीरे ये धब्बे सारे सिर व शरीर के अन्य कई भागों में फैल जाते हैं जिनमें मुख्य अंग हैं-भौंहे, पलकें, कानों के पीछे, दाढ़ी, छाती के अगले व ऊपरी हिस्से, बगलें व गुप्तांग आदि।
इस प्रकार की सीकरी में उतरने वाली पपडि़यां प्रायः मोम की तरह तैलीय पीलापन लिये हुए पपड़ी की तरह त्वचा से जुड़ी होती हैं। इनमें निरंतर खुजली सी होती रहती हैं जिसके कारण व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा सा हो जाता है। यदि खुजली बढ़ जाये तो बार-बार खुजलाने से घाव बन जाते हैं जिनमें संक्रमण के परिणामस्वरूप मवाद भर जाता है और धीरे-धीरे बाल पतले व कमजोर होकर झड़ने शुरू हो जाते हैं।
कारण:- जैसा कि पहले बताया गया है कि तैलीय सीकरी प्रायः तैलीय त्वचा वाले व्यक्तियों में पायी जाती है। ऐसे व्यक्तियों में कील और मुहांसों का प्रकोप भी अक्सर देखा जा सकता है। इसका असली मूल कारण तैल ग्रन्थियों में से निकलने वाले तेल की मात्रा का बढ़ना, उसकी रचना में परिवर्तन व असंतुलन होना है। यह सब वंशानुगत व युवावस्था में होने वाले हार्मोन्स के परिवर्तन के कारण होते हैं।
अन्य उल्लेखनीय कारणों में असंतुलित भोजन, कब्ज, मानसिक तनाव व ऐसे व्यवसाय शामिल हैं जिनमें व्यक्ति को शारीरिक परिश्रम नहीं करना पड़ता।
उपचार:- ऐसे रोगियों को अपनी सिर की त्वचा की सफाई के बारे में सावधान रहना चाहिए। सिर की नियमित रूप से मालिश करना, ब्रश करना व धोना बहुत जरूरी है। नहाने से पहले व सोने से पहले 5-10 मिनट मालिश व ब्रशिंग अवश्य करनी चाहिए। बालों को नियमित रूप से धोकर साफ रखना चाहिए ताकि उनमें किसी प्रकार की धूल व चिकनाई न जमने पाये।
यदि अधिक खुजलाने से घाव हो जायें या पानी रिसने लगे तो तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
यदि किसी कारणवश (अक्सर अपनी लापरवाही) रोग उग्र रूप धारण कर ले तो बाजार में पहले से कई दवाइयां व औषधियुक्त शैम्पू उपलब्ध हैं जिनमें सैलसन, प्रैगमाटार, डरमोक्वीनोल आदि मुख्य रूप से उल्लेखनीय हैं। इनका प्रयोग डाक्टर से सलाह करने के बाद ही करना चाहिए।
अन्य सावधानियां:- . ऐसे रोगियों को संतुलित, सात्विक व सादा भोजन करना चाहिए। चाय, शराब, कॉफी आदि का प्रयोग बंद कर देना चाहिए। चीनी व स्टार्च युक्त पदार्थों का प्रयोग भी कम से कम कर देना चाहिए।
थोड़ा शारीरिक परिश्रम व खुली हवा में भ्रमण या व्यायाम करना चाहिए।
मानसिक उत्तेजना तैलीय ग्रन्थियों पर प्रभाव डालती है जिसके कारण वे अधिक तैलीय पदार्थ का निर्माण करती हैं और रोग को बढ़ाती हैं। इस लिये मानसिक तनाव व उत्तेजना से बचना चाहिए।
जहां तक हो सके, अपना कंघा व ब्रश अलग रखना चाहिए और उसे नियमित रूप से प्रतिदिन साफ करना चाहिए।
तैलीय सीकरी में सिर में ज्यादा तेल नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इससे बालों में चिकनाहट और बढ़ेगी। परिणाम-स्वरूप रोग उग्र रूप धारण कर लेता है।
सिर में घाव व जख्म होने की अवस्था में साबुन व शैम्पू का प्रयोग थोड़ी देर के लिये बंद कर देना चाहिए।
जहां तक हो सके, बालों को ढक कर रखना चाहिए ताकि उनमें किसी प्रकार की धूल न जमने पाये। स्त्रियां इसके लिए साड़ी के पल्लू, दुपट्टा व स्कार्फ का प्रयोग कर सकती हैं। पुरूषों को हैट, टोपी व पगड़ी का प्रयोग करना चाहिए।
कुछ व्यावहारिक नुस्खे:- . दो चम्मच सिरका लेकर इसे छः चम्मच गर्म पानी में मिलाएं। इसमें रूई भिगो कर इसे सिर पर रात को धीरे-धीरे लगायें। सोते समय सिर को किसी कपड़े से ढांप लें, सुबह किसी भी अच्छे शैम्पू से बालों को धो लें।
नारियल, जैतून या सरसों का तेल लेकर उसे थोड़ा गर्म करके सोने से पहले सिर पर उसकी मालिश करें। सुबह उठकर एक नींबू का रस, दो चम्मच सिरके में मिलाकर सारे सिर पर लगायें और उसके बाद किसी अच्छे शैम्पू से सिर धो लें।
शिकाकाई, रीठा, आंवला व त्रिफला का प्रयोग भी इन रोगियों के लिये बहुत लाभकारी होता है।
आपके बालों व उनके सौंदर्य को नष्ट करने वाला एक रोग है-सीकरी। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो इस रोग से परिचित न हो। बालों का सौंदर्य नष्ट करने के साथ-साथ यह बाकी त्वचा पर भी बुरा प्रभाव डालता है। इस रोग में प्रायः सिर से छोटी-छोटी पपडि़यां सी उतरती रहती हैं।
वास्तव में सीकरी दो प्रकार की होती है- खुश्क सीकरी और तैलीय सीकरी।
खुश्क सीकरी:- इस प्रकार की सीकरी में पपडि़यां बहुत छोटी-छोटी, महीन, सफेद व रूखी-सूखी होती हैं। सिर में हर समय थोड़ी-बहुत खुजलाहट होती रहती है। कंघी करते समय ये पपडि़यां कंधों व गर्दन पर गिरती देखी जा सकती हैं। खुश्क सीकरी गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में अधिक परेशान करती है। इन रोगियों की त्वचा भी प्रायः शुष्क प्रकृति की होती है। विडम्बना की बात है कि ऐसे व्यक्ति, अक्सर पाया गया है कि शरीर व सिर में तेल लगाने से परहेज करते हैं। यह सच है कि यदि ये व्यक्ति नियमित रूप से तेल लगायें तो बड़ी आसानी से इस रोग से छुटकारा पा सकते हैं।
तैलीय सीकरी:- सीकरी की यह किस्म प्रायः तैलीय प्रकृति की त्वचा वाले व्यक्तियों में पायी जाती है। यह रोग सिर में छोटे-छोटे गोल धब्बों के रूप में आरंभ होता है। धीरे-धीरे ये धब्बे सारे सिर व शरीर के अन्य कई भागों में फैल जाते हैं जिनमें मुख्य अंग हैं-भौंहे, पलकें, कानों के पीछे, दाढ़ी, छाती के अगले व ऊपरी हिस्से, बगलें व गुप्तांग आदि।
इस प्रकार की सीकरी में उतरने वाली पपडि़यां प्रायः मोम की तरह तैलीय पीलापन लिये हुए पपड़ी की तरह त्वचा से जुड़ी होती हैं। इनमें निरंतर खुजली सी होती रहती हैं जिसके कारण व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा सा हो जाता है। यदि खुजली बढ़ जाये तो बार-बार खुजलाने से घाव बन जाते हैं जिनमें संक्रमण के परिणामस्वरूप मवाद भर जाता है और धीरे-धीरे बाल पतले व कमजोर होकर झड़ने शुरू हो जाते हैं।
कारण:- जैसा कि पहले बताया गया है कि तैलीय सीकरी प्रायः तैलीय त्वचा वाले व्यक्तियों में पायी जाती है। ऐसे व्यक्तियों में कील और मुहांसों का प्रकोप भी अक्सर देखा जा सकता है। इसका असली मूल कारण तैल ग्रन्थियों में से निकलने वाले तेल की मात्रा का बढ़ना, उसकी रचना में परिवर्तन व असंतुलन होना है। यह सब वंशानुगत व युवावस्था में होने वाले हार्मोन्स के परिवर्तन के कारण होते हैं।
अन्य उल्लेखनीय कारणों में असंतुलित भोजन, कब्ज, मानसिक तनाव व ऐसे व्यवसाय शामिल हैं जिनमें व्यक्ति को शारीरिक परिश्रम नहीं करना पड़ता।
उपचार:- ऐसे रोगियों को अपनी सिर की त्वचा की सफाई के बारे में सावधान रहना चाहिए। सिर की नियमित रूप से मालिश करना, ब्रश करना व धोना बहुत जरूरी है। नहाने से पहले व सोने से पहले 5-10 मिनट मालिश व ब्रशिंग अवश्य करनी चाहिए। बालों को नियमित रूप से धोकर साफ रखना चाहिए ताकि उनमें किसी प्रकार की धूल व चिकनाई न जमने पाये।
यदि अधिक खुजलाने से घाव हो जायें या पानी रिसने लगे तो तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
यदि किसी कारणवश (अक्सर अपनी लापरवाही) रोग उग्र रूप धारण कर ले तो बाजार में पहले से कई दवाइयां व औषधियुक्त शैम्पू उपलब्ध हैं जिनमें सैलसन, प्रैगमाटार, डरमोक्वीनोल आदि मुख्य रूप से उल्लेखनीय हैं। इनका प्रयोग डाक्टर से सलाह करने के बाद ही करना चाहिए।
अन्य सावधानियां:- . ऐसे रोगियों को संतुलित, सात्विक व सादा भोजन करना चाहिए। चाय, शराब, कॉफी आदि का प्रयोग बंद कर देना चाहिए। चीनी व स्टार्च युक्त पदार्थों का प्रयोग भी कम से कम कर देना चाहिए।
थोड़ा शारीरिक परिश्रम व खुली हवा में भ्रमण या व्यायाम करना चाहिए।
मानसिक उत्तेजना तैलीय ग्रन्थियों पर प्रभाव डालती है जिसके कारण वे अधिक तैलीय पदार्थ का निर्माण करती हैं और रोग को बढ़ाती हैं। इस लिये मानसिक तनाव व उत्तेजना से बचना चाहिए।
जहां तक हो सके, अपना कंघा व ब्रश अलग रखना चाहिए और उसे नियमित रूप से प्रतिदिन साफ करना चाहिए।
तैलीय सीकरी में सिर में ज्यादा तेल नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इससे बालों में चिकनाहट और बढ़ेगी। परिणाम-स्वरूप रोग उग्र रूप धारण कर लेता है।
सिर में घाव व जख्म होने की अवस्था में साबुन व शैम्पू का प्रयोग थोड़ी देर के लिये बंद कर देना चाहिए।
जहां तक हो सके, बालों को ढक कर रखना चाहिए ताकि उनमें किसी प्रकार की धूल न जमने पाये। स्त्रियां इसके लिए साड़ी के पल्लू, दुपट्टा व स्कार्फ का प्रयोग कर सकती हैं। पुरूषों को हैट, टोपी व पगड़ी का प्रयोग करना चाहिए।
कुछ व्यावहारिक नुस्खे:- . दो चम्मच सिरका लेकर इसे छः चम्मच गर्म पानी में मिलाएं। इसमें रूई भिगो कर इसे सिर पर रात को धीरे-धीरे लगायें। सोते समय सिर को किसी कपड़े से ढांप लें, सुबह किसी भी अच्छे शैम्पू से बालों को धो लें।
नारियल, जैतून या सरसों का तेल लेकर उसे थोड़ा गर्म करके सोने से पहले सिर पर उसकी मालिश करें। सुबह उठकर एक नींबू का रस, दो चम्मच सिरके में मिलाकर सारे सिर पर लगायें और उसके बाद किसी अच्छे शैम्पू से सिर धो लें।
शिकाकाई, रीठा, आंवला व त्रिफला का प्रयोग भी इन रोगियों के लिये बहुत लाभकारी होता है।