आखिर क्यों मनाई जाती है दीपावली, क्या है पौराणिक कथा

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भारत के हर क्षेत्र में दिवाली त्योहार को मनाने की विशिष्ट परंपराएं हैं। इस त्योहार को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार पूरे भारत में बड़े ही उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। दीपावली की रात को घरों में दीये जलाए जाते हैं, आतिशबाजी होती है, और लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खुशियां मनाते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि दीपावली क्यों मनाई जाती है? साहित्यकार संजय कुमार सुमन द्वारा लिखे  इस लेख में, हम आपको दीपावली के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे और इसके पीछे की कहानियों को समझाएंगे। हम आपको बताएंगे कि कैसे दीपावली हमारे जीवन में खुशियां और रोशनी लाती है और कैसे यह त्योहार हमें एकता और सामाजिक समरसता की ओर ले जाता है। तो आइए, दीपावली के बारे में जानें और इसकी महत्ता को समझें। दीपावली का आध्यात्मिक संदेश एक ही है जो ‘अंधकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की और अज्ञान पर ज्ञान की जीत’ है।                                                                                            

दीपावली मनाने के पीछे मुख्य रूप से तीन कारण माने जाते हैं। पहला और सबसे प्रमुख कारण मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम 14 साल के वनवास के बाद धर्मनगरी अयोध्या लौटे और इसी खुशी में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। जैसा की रामचरितमानस में वर्णित है कि रानी कैकई की दासी मंथरा की साजिश की वजह से भगवान श्रीराम को राजा दशरथ ने 14 साल के वनवास पर भेज दिया था। दरअसल, वह अयोध्या का राजकाज उनके बेटे भरत को दिलाना चाहती थी, लेकिन प्रभु श्री राम सभी भाइयों में सबसे बड़े थे और सारे भाई उनसे बहुत प्रेम करते थे। इसलिए भगवान राम के वनवास जाने के बाद भी भरत राजा नहीं बनें और प्रभु श्री राम की वनवास से लौटने का इंतजार किया।

 

हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी को धन-संपदा की देवी कहा गया है। ऐसे में लोग अपने सुखों की प्राप्ति के लिए दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसमें मां लक्ष्मी स्वयं भक्तों के घर आती है। भक्त माता लक्ष्मी को खुश करने के लिए मुख्य द्वार पर तोरण, रंगोली आदि से सजाते हैं। साथ ही सनातन धर्म में स्वास्तिक चिन्ह को बहुत शुभ माना जाता है, इसलिए दिवाली के दिन मुख्य द्वार पर स्वास्तिक चिन्ह भी बनाई जाती है। मान्यताओं के अनुसार स्वास्तिक चिन्ह बनाने से भक्तों पर माता लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास की अमावस्‍या तिथि को माता लक्ष्‍मी का प्राकट्य दिवस माना जाता है।

 

इसके पीछे एक कथा बताई जाती है कि एक बार माता लक्ष्‍मी अपने महालक्ष्‍मी स्‍वरूप में इंद्रलोक में वास करने पहुंची। माता की शक्ति से देवताओं की भी शक्ति बढ़ गई। इससे देवताओं को अभिमान हो गया कि अब उन्‍हें कोई पराजित नहीं कर सकता। एक बार इंद्र अपने ऐरावत हाथी पर सवार होकर जा रहे थे, उसी मार्ग से ऋषि दुर्वासा भी माला पहनकर गुजर रहे थे। प्रसन्‍न होकर ऋषि दुर्वासा ने अपनी माला फेंककर इंद्र के गले में डाली लेकिन इंद्र उसे संभाल नहीं पाए और वो माला ऐरावत हाथी के गले में पड़ गई। हाथी ने सिर को हिला दिया और वो माला जमीन पर गिर गई। इससे ऋषि दुर्वासा नाराज हो गए और उन्‍होंने श्राप दे दिया कि जिसके कारण तुम इतना अहंकार कर रहे हो, वो पाताल लोक में चली जाए। इस श्राप के कारण माता लक्ष्‍मी पाताल लोक चली गईं।लक्ष्मी के चले जाने से इंद्र व अन्य देवता कमजोर हो गए और दानव मजबूत हो गए। तब जगत के पालनहार नारायण ने महालक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन करवाया। देवताओं और राक्षसों के प्रयास से समुद्र मंथन हुआ तो इसमें कार्तिक मास की कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरि निकले। इसलिए इस दिन धनतेरस मनाई जाती है और अमावस्‍या के दिन लक्ष्‍मी बाहर आईं। इसलिए हर साल कार्तिक मास की अमावस्‍या पर माता लक्ष्‍मी की पूजा होती है। दिवाली का त्‍योहार चातुर्मास के दौरान आता है। इस बीच श्रीहरि योग निद्रा में होते हैं।उनकी निद्रा भंग न हो, इसलिए दिवाली के दिन लक्ष्‍मी माता के साथ उनका आवाह्न नहीं किया जाता। ऐसे में माता महालक्ष्‍मी अपने दत्‍तक पुत्र भगवान गणेश के साथ घरों में पधारती हैं। इसके अलावा एक वजह ये है कि माता लक्ष्‍मी को धन और ऐश्‍वर्य की देवी हैं। अगर धन और ऐश्‍वर्य किसी के पास ज्‍यादा आ जाए तो उसे अहंकार हो जाता है।मति भ्रष्‍ट हो जाती है। ऐसा व्‍यक्ति अहंकार के चलते धन को संभाल नहीं पाता।

 

प्रचलित मान्यता के अनुसार, दिवाली की रात, लक्ष्मी ने विष्णु को अपने पति के रूप में चुना और उनसे विवाह किया। मान्यता यह है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था।

 

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में अपने 8वें अवतार में राक्षस नरकासुर का विनाश किया था। राक्षस नरकासुर वर्तमान असम के निकट प्रागज्योतिषपुर का दुष्ट राजा था। शक्ति ने राक्षस राजा को अहंकारी बना दिया और वह अपनी प्रजा और यहाँ तक कि देवताओं के लिए भी खतरनाक हो गया। उसने आतंक के शासन के साथ शासन किया ।  इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया थ। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दिए जलाए ।

 

जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है। इन तमाम घठकों के एक साथ जुड़ने की वजह से दीपावली का दिन बेहद खास हो जाता है।

 

महाकाव्य महाभारत के अनुसार, कार्तिक अमावस्या की रात को पांचों पांडव भाई पत्नी द्रौपदी और माता कुंती के साथ 12 साल का वनवास बिताने के बाद हस्तिनापुर लौटे थे। वे पूरे हस्तिनापुर शहर को चमकीले मिट्टी के दीयों से रोशन करते हैं। माना जाता है कि पांडवों की वापसी की याद में दीये जलाने की इस परंपरा को दिवाली का त्योहार मनाकर जीवित रखा गया है।

 

राजा विक्रमादित्य प्राचीन भारत के महान सम्राट थे। वह आदर्श राजा थे। उन्हें उनकी उदारता, साहस के लिए जाना है। कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को ही उनका राज्याभिषेक हुआ था। ऐसे धर्मनिष्ठ राजा की याद में तभी से दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।

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