हम क्यों रहते हैं अस्वस्थ?

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आइए, पड़ताल करें कि हम क्यों अस्वस्थ रहते हैं। वास्तव में हम सब कुछ जानते हुए भी अनजान बन जाते हैं, यही कमी है। यही अस्वस्थता का कारण है।
 हम प्रातः उठते ही स्वास्थ्य के नियमों को ताक पर रख कर मन मरज़ी शुरू कर देते हैं। लेटे-लेटे बैड टी की मांग कर बैठते हैं। रात सोते वक्त भी काफी या चाय की मांग कर बैठते हैं। इससे स्वास्थ्य तो बिगड़ेगा ही।
 बिना पांव धोए, बिना दांत साफ किए सोने चले जाते हैं जो ठीक नहीं है।
 हम में से कुछ प्रातः उठते ही, बंद आंखों के साथ, इधर उधर हाथ मार कर सिगरेट की डिब्बी तथा लाइटर ढूंढते हैं। बुरी बात है।
 शरीर में ऑक्सीजन की कमी रहती है। सिगरेट पीने से यह और कम होगी। पत्नी तथा बच्चों के फेफड़े भी खराब होंगे।
 स्मोक करने वाला व्यक्ति दिन भर जहर भरा धुआं उगलता है। रात को भी चैन नहीं। भला ऐसे में कैसे रहेंगे स्वस्थ?
 कुछ की जेब में पान मसाला, गुटका, गोवा, तम्बाकू से बने ऐसे पैकेट रहते हैं। जब-तब चबाते निगलते हैं।
 हमारा नाश्ता भी तले हुए मोटे-मोटे परांठे, अण्डे, आमलेट होते हैं। साथ में मिर्च और कोक भी अन्दर ठूंसे गए परांठों को नहीं पचने देंगे।
 तले हुए आलू, रात का बचा मीट, खूब मसालेदार सब्जी अपनी प्रकृति के विरुद्ध हम नाश्ता या भोजन करते हैं। फिर ढूढेंगे कायम चूर्ण, हाजमोला आदि।
 दोपहर का भोजन भी तला हुआ खूब मिर्च-मसालों वाला। ऐसा आहार अस्वस्थ नहीं करेगा तो और क्या करेगा।
 रात को शराब, मुर्गा, भारी भोजन, वह भी पेट भर खाते हैं। अभी यह गले में नीचे उतरता है कि सोने की तलब हो जाती है। भूल जाते हैं कि रात का भोजन हल्का व सुपाच्य होना चाहिए। भोजन और सोने के बीच दो घंटों का अंतराल भी नहीं रखते। रोगी तो होंगे ही।
 नाश्ता व दो भोजनों के अतिरिक्त भी कभी पकौड़े, समोसे, कचौरी, टिक्की, चाट, आइसक्रीम, मटर, जो मिल जाए, रूक नहीं पाते।
 अपने व्यवसाय अथवा आदत के कारण बार-बार चाय, कॉफी, ठंडा, लस्सी, कुछ न कुछ पीते नजर आते हैं। न व्यायाम, न सैर, न ही कोई शारीरिक भारी काम, न ही किचन गार्डनिंग, ऐसे व्यक्ति अस्वस्थ तो होंगे ही। जीभ पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। जीवन पद्धति बदल कर ही स्वस्थ रह पाएंगे वरना अस्वस्थ ही रहेंगे।

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