
चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है. 14 नवम्बर को बिहार के अगले मुख्यमंत्री का फैसला हो जाएगा । यह चुनावी युद्ध दो गठबंधनों के बीच होने वाला है लेकिन सवाल यह है कि कौन सा गठबंधन कितना तैयार है । 2020 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में दोनों गठबंधनों के बीच कांटे की टक्कर हुई थी । एनडीए को महागठबंधन से सिर्फ 12000 ज्यादा वोट हासिल हुए थे । जहां एनडीए को 37.26 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे, वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन को 37.23 प्रतिशत वोट मिले थे । एनडीए में जेडीयू कमजोर कड़ी साबित हुआ था तो महागठबंधन में कांग्रेस कमजोर कड़ी बनी थी । एनडीए ने इस कमजोरी को पहचाना कि जेडीयू को नुकसान पहुंचाने का काम चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी ने किया है । वास्तव में एलजेपी ने खुद तो कुछ हासिल नहीं किया था लेकिन जेडीयू को लगभग 20 सीटों का नुकसान पहुंचाया था । इस कमजोरी को दूर करते हुए एनडीए ने एलजेपी को गठबंधन में शामिल कर लिया है ।
महागठबंधन की कमजोरी दूर होने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं पड़ रही है । कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए 70 सीटें दी गई थी लेकिन उसे सिर्फ 19 सीटों पर ही सफलता मिली । अगर कांग्रेस को कम सीटें दी गई होती तो 2020 में महागठबंधन की सरकार बन सकती थी । तेजस्वी यादव ने भी बयान दिया था कि कांग्रेस के कारण महागठबंधन सत्ता हासिल करने में सफलता नहीं मिली है । कांग्रेस इस बार भी ज्यादा सीटें पाने की कोशिश कर रही है । सबसे बड़ी समस्या यह है कि चुनाव की घोषणा हो गई है और पहले चरण का मतदान 6 नवम्बर को होना है लेकिन अभी तक गठबंधन में सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है । दूसरी बात सीटों का बंटवारा जल्दी होने की उम्मीद भी नहीं है । अगर समय पर महागठबंधन में सीटों का बंटवारा नहीं होता है तो ये उसकी चुनावी संभावनाओं को बड़ा नुकसान पहुंचाएगा । अजीब बात है कि राहुल गांधी बिहार में चुनावी माहौल तैयार करने के लिए वोट यात्रा निकाल रहे थे लेकिन ऐन चुनाव के वक्त वो विदेश यात्रा पर चले गए । अब वो यात्रा से वापिस आ गए हैं लेकिन सीटों के बंटवारे के लिए कब आरजेडी से बात करेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता है ।
राहुल गांधी की यात्रा में महागठबंधन ने पैसा और ऊर्जा तो बहुत खर्च किया लेकिन उसका चुनाव पर असर होने की उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है । वोट चोरी का आरोप लगाने वाली यात्रा के बाद आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने भी अपनी यात्रा निकाली थी लेकिन उनकी यात्रा में वोट चोरी का मुद्दा ही गायब हो गया । इसका मतलब साफ है कि तेजस्वी यादव मानते हैं कि यह मुद्दा चुनाव में फायदा देने वाला नहीं है । इसका इस्तेमाल सिर्फ चुनाव में हारने के बाद अपनी झेंप मिटाने के लिए किया जा सकता है । अजीब बात है कि जो गठबंधन वोट चोरी का आरोप लगा रहा था, उसके नेता चुनाव की घोषणा के बाद जीत का दावा कर रहे हैं । सवाल यह है कि जब भाजपा वोट चोरी करके चुनाव जीतती है तो गठबंधन के नेता जीत का दावा किस आधार पर कर रहे हैं ।
जहां एनडीए अपनी जीत पक्की करने के लिए चिराग पासवान को साथ ले आया है, वहीं दूसरी तरफ गठबंधन को अपने साथी संभालने में ही दिक्कत आ रही है । पिछली बार दोनों गठबंधनों को लगभग बराबर वोट मिले थे जबकि चिराग पासवान लगभग 5-6 प्रतिशत वोट ले गए थे । अब यह तय है कि ये वोट एनडीए के खाते में जाने वाले हैं तो एनडीए को बड़ी बढ़त हासिल हो गई है । महागठबंधन ने अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया है जिससे कहा जा सके कि पिछले चुनाव के वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी होने जा रही है । एक बड़ी समस्या गठबंधन की यह भी है कि अभी तक वहां नेता की घोषणा नहीं हुई है । सबको पता है कि गठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ही होंगे लेकिन कांग्रेस ने अभी तक उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं माना है । दूसरी तरफ भाजपा ने घोषणा कर दी है कि एनडीए के मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे । चुनाव से सिर्फ एक महीने पहले मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर अस्पष्टता होना नुकसानदायक है । बिहार में 85 साल बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई है जिसके बाद पार्टी महासचिव नासिर हुसैन ने दावा किया कि कांग्रेस जल्दी घोषित होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के चुनाव प्रचार अभियान का नेतृत्व करेगी । इसके दो मकसद हो सकते हैं. पहला तो यह कि कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाना चाहती है ताकि वो पूरी ताकत से चुनाव लड़ सके । दूसरा यह हो सकता है कि वो गठबंधन में ज्यादा से ज्यादा सीटें लड़ने के लिए हासिल करना चाहती हो । पहला मकसद तो अच्छा है लेकिन दूसरा मकसद खतरनाक है ।
कांग्रेस बिहार चुनाव में एक बड़ी गलती करने की कोशिश कर रही है, जो महागठबंधन को बहुत भारी पड़ने वाली है। वो बिहार चुनाव में राहुल गांधी को गठबंधन का नेता बनाना चाह रही है। वोट चोरी के मुद्दे पर राहुल गांधी ने यात्रा निकाल कर यह साबित करने की कोशिश की है कि वो ही गठबंधन के नेता हैं । कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद नासिर हुसैन का बयान भी यही बता रहा है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में गठबंधन चुनाव लड़ने जा रहा है। सच्चाई सबको पता है कि गठबंधन के नेता तेजस्वी यादव हैं तो ऐसा संदेश क्यों दिया जा रहा है। भाजपा तो पहले ही बिहार चुनाव को मोदी केंद्रित बनाना चाहती है क्योंकि नीतीश कुमार की सेहत को लेकर बड़े सवाल उठाए जा रहे हैं। तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार की सेहत को बड़ा मुद्दा बना दिया है । गठबंधन का हित इसी में है कि बिहार चुनाव नीतीश बनाम तेजस्वी बने रहे लेकिन कांग्रेस की कोशिश इस चुनाव को मोदी बनाम राहुल बना सकती है । वैसे भी चुनावी सर्वे बता रहे हैं कि बिहार चुनाव में मोदी बड़ा मुद्दा हैं और अब कांग्रेस की यह कोशिश इस मुद्दे को और बड़ा बना सकती है ।
वास्तव में बिहार चुनाव में मोदी इसलिए बड़ा मुद्दा हैं क्योंकि उनकी लोक कल्याणकारी योजनाओं का जनता को बड़ा फायदा मिला है । केन्द्र सरकार की योजनाओं की सफलता के कारण बिहार में भाजपा का बड़ा वोट बैंक तैयार हो गया है । जाति-संप्रदाय की राजनीति वाले बिहार में इन योजनाओं का फायदा सभी समुदायों को बिना किसी भेदभाव के मिला है, इसलिए मोदी के समर्थन में एक ऐसा वोट बैंक तैयार हो गया है, जो जाति और धर्म से ऊपर उठकर भाजपा को वोट देता है । पिछले पांच सालों में आरजेडी अपने मुस्लिम-यादव वोट बैंक में कुछ नया नहीं जोड़ पाई है लेकिन केंद्र की योजनाओं के कारण उसके वोट बैंक में सेंध लग सकती है । विशेष रूप से महिलाएं चुपचाप एनडीए के समर्थन में वोट कर सकती हैं । नीतीश सरकार ने भी ऐन चुनावों के वक्त बिहार की जनता को लुभाने के लिए न केवल योजनाओं की घोषणा की बल्कि उनका फायदा भी जनता को दे दिया है । चुनाव के समय सत्ताधारी दल के वादे पर जनता ज्यादा भरोसा इसलिए नहीं करती है क्योंकि उसे लगता है कि जब वो सत्ता में रहते कुछ नहीं कर पाए तो बाद में क्या करेंगे । जब सत्ताधारी दल की सरकार से जनता को बड़ा फायदा मिलता है तो उसे उम्मीद हो जाती है कि आगे भी यह सरकार उनको फायदा देगी ।
महागठबंधन के नेता बिहार की जनता से बड़े वादे कर रहे हैं लेकिन जनता उन पर कितना भरोसा करेगी, ये तो चुनाव परिणाम ही बतायेंगे । नीतीश सरकार ने चुनाव के वक्त अपनी योजनाओं से अपने वोट बैंक में बढ़ोतरी की है, इसमें कोई संदेह नहीं है । कांग्रेस के कारण गठबंधन की तरफ सवर्ण वोट बैंक आने की उम्मीद इसलिए नहीं है क्योंकि गठबंधन को मुस्लिम आक्रामकता के साथ वोट करते हैं । राहुल गांधी की दलित-पिछड़ा राजनीति भी बिहार चुनावों को प्रभावित नहीं कर सकती क्योंकि नीतीश कुमार अभी भी अन्य पिछड़ी जातियों के बड़े नेता हैं । यादवों का डर दलित समाज को गठबंधन की तरफ जाने से रोकता है । तेजस्वी यादव की बड़ी समस्या अभी भी लालू यादव का जंगलराज बना हुआ है । भाजपा की सोशल मीडिया टीम बिहार की जनता को जंगलराज का डर दिखा रही है । समस्या यह है कि लोग लालू यादव का राज अभी तक नहीं भूले हैं । बिहार में जनता का बड़ा वर्ग नहीं चाहता है कि वो दिन दोबारा देखने पड़े, इसलिए यह मुद्दा तेजस्वी यादव को नुकसान पहुंचा सकता है । औवेसी भी गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकते हैं क्योंकि अपने विधायकों को तोड़ने का बदला लेना चाहते हैं । प्रशांत किशोर के बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल है कि वो किसका ज्यादा नुकसान करेंगे ।
मेरा मानना है कि युद्ध में दुश्मन के सामने जाने के पहले अपने दल की कमजोरियों को दूर कर लेना चाहिए । समस्या यही है कि गठबंधन अपनी कमजोरियों को दूर करने की कोशिश करता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है । भाजपा न केवल अपनी कमजोरियों पर काबू पा रही है बल्कि अपनी ताकत भी बढ़ा रही है । बिहार की राजनीति की अजीब बात यह है कि भाजपा और राजद लगभग बराबरी पर खड़े हैं, इसलिए नीतीश कुमार जिसकी तरफ होते हैं, वही जीत जाता है । भविष्य में क्या होगा, पता नहीं लेकिन आज का सच यही है कि नीतीश कुमार पूरी मजबूती से भाजपा के साथ खड़े हैं ।