
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के गाजा शांति प्रस्ताव के पहले चरण पर अमल शुरू हो गया है । हमास ने इजराइल के 20 बंधकों को रिहा कर दिया है और 28 बंधकों के शवों की वापसी होने वाली है । इजराइल ने भी फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करना शुरू कर दिया है । इससे डोनाल्ड ट्रंप की वाहवाही हो रही है । वैसे उनका शांति प्रस्ताव अपने आप में अनोखा है क्योंकि जिनके बीच यह समझौते की बात कहता है, उसमें से एक पक्ष इसमें शामिल नहीं हैं । बेशक समझौते के पहले चरण पर अमल शुरू हो गया है लेकिन अगले चरण कब पूरे होते हैं या नहीं होते हैं, यह आने वाला वक्त बताएगा ।
इसके बावजूद इजराइल और हमास के बीच युद्ध रुकवाने का श्रेय डोनाल्ड ट्रंप को देना होगा । उनकी कोशिशों से दोनों पक्ष युद्ध रोकने को सहमत हो गए हैं । इस शांति प्रस्ताव का आंशिक रूप से लागू होना भी ट्रंप और नेतन्याहू की बड़ी जीत माना जाएगा । युद्ध रुकने से हमास ने भी राहत की सांस ली है । अरब देश भी इस समझौते के बाद खुश दिखाई दे रहे हैं. सिर्फ पाकिस्तान में इस मुद्दे पर आग लगी हुई है । वैसे तो हमास-इजराइल युद्ध से पूरी दुनिया परेशान है लेकिन दोनों पक्षों के अलावा अमेरिका और अरब देशों के लिए ये युद्ध बड़ी सिरदर्दी बन चुका है ।
ये सोचना गलत है कि ट्रंप ने सिर्फ वाहवाही हासिल करने के लिए ये समझौता करवाया है बल्कि उन्होंने इस समझौते से सबकी समस्याओं को कुछ समय के लिए टाल दिया है । उनका बड़बोलापन और आत्ममुग्धता से भरे बयान उन्हें अविश्वसनीय बनाते हैं लेकिन इस समझौते के लिए उनकी तारीफ की जानी चाहिए । उन्होंने बड़ी चालाकी से इजराइल को बड़ी मुसीबत से बाहर निकाल लिया है । उन्होंने नेतन्याहू से माफी मंगवा कर इजराइल के प्रति बढ़ती नफरत को थाम लिया है । जब से इजराइल ने कतर की राजधानी दोहा पर हमला करके हमास के अधिकारियों की हत्या की है, तब से सभी अरब देश डरे हुए हैं कि कहीं वो इजराइल के अगले हमले का शिकार न बन जाएं । यही वो डर था, जिसके कारण सऊदी अरब ने पाकिस्तान के साथ रक्षा समझौता कर लिया । इस समझौते के बाद अरब देशों ने राहत की सांस ली है।
डोनाल्ड ट्रंप सिर्फ बंधकों की रिहाई से ही इस समझौते की सफलता का ढिंढोरा पीट रहे हैं । उनका कहना है कि उन्होंने हज़ारों सालों से दोनों देशों के बीच चल रहे युद्ध को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है। ऐसा ही बयान उन्होंने भारत-पाकिस्तान के युद्ध विराम के लिये दिया था। देखा जाए तो हमास और इजराइल के बीच भी युद्ध विराम ही हुआ है। स्थायी शांति की उम्मीद करना पूरी तरह से व्यर्थ है । युद्ध-विराम कभी भी शांति का प्रतीक नहीं होता । युद्ध-विराम का अर्थ ही होता है कि दोनों पक्ष लड़ना छोड़कर अब अगले युद्ध की तैयारी करेंगे । हमास और इजराइल दोबारा नहीं लड़ेंगे, ये सोचना गलत है । इजराइली सरकार पर जनता का भारी दबाव पड़ रहा था कि वो तत्काल बंधकों की रिहाई करवाये । दूसरी तरफ हमास पर भी गाजा की जनता का दबाव था कि वो बंधकों को छोड़ दे ताकि इजराइल गाजा की नाकाबंदी खत्म कर दे । वहाँ भुखमरी के हालात पैदा हो गए थे। देखा जाए तो दोनों पक्ष लड़ते-लड़ते थक गए थे, इसलिए दोनों को थोड़े आराम की जरूरत थी ।
इस समझौते को नेतन्याहू की बड़ी सफलता माना जाएगा क्योंकि इतने बड़े नरसंहार के बाद भी वो अपने बंधकों को छुड़ाने में कामयाब रहे हैं । वैसे भी यह समझौता इजराइल के पक्ष में झुका हुआ दिखाई देता है, इसलिए मुस्लिम देशों में इसका विरोध बढ़ता दिखाई दे रहा है । दूसरे चरण में जब इजराइली सेना पीछे हटेगी तो देखना होगा कि वो कहां तक पीछे जाती है । हमास ने हथियार छोड़ने के लिए शर्त रख दी है कि वो स्वतंत्र फिलिस्तीन का रास्ता साफ होने पर ही हथियार छोड़ेगा । इजराइल इसके लिए तैयार होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है । हमास ईरान का प्रॉक्सी है, इसलिए ईरान की भूमिका भी देखनी पड़ेगी कि वो क्या करता है । ईरान ने इजराइल को मिटाने की कसम खा रखी है, इसलिए इजराइल का ईरान पर भरोसा करना बहुत मुश्किल है । ईरान सिर्फ हमास को ही इजराइल के खिलाफ इस्तेमाल नहीं कर रहा है बल्कि वो हिजबुल्लाह और हूती विद्रोहियों से भी इजराइल पर हमले करवा रहा है । इस युद्ध को इसलिए याद रखा जाना चाहिए क्योंकि इजराइल ने लेबनान से हिजबुल्लाह का लगभग सफाया कर दिया है । इसके अलावा इस युद्ध के कारण सीरिया में भी सत्ता परिवर्तन हो गया है।
इजराइली हमलों के कारण गाजा में लगातार लोग मारे जा रहे थे । मरने वालों की संख्या 65000 से ऊपर जा चुकी है और इससे कई गुना ज्यादा लोग घायल हैं । इसके कारण इजराइल पर लगातार दबाव बनाया जा रहा था कि वो तत्काल युद्ध-विराम कर दे । पूरी दुनिया में बड़ी-बड़ी रैलियां निकाल कर इजराइल का विरोध किया जा रहा था । इजराइल के विरोध में यूरोप के कई देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता प्रदान कर दी थी । सवाल यह है कि 7 अक्टूबर, 2023 से पहले गाजा और इजराइल के बीच युद्ध-विराम ही चल रहा था. इस दिन किसने इजराइल पर बर्बर हमला करके इस युद्ध-विराम को भंग किया था । जब इजराइल पर हमास ने यह भयंकर हमला किया था तो एक समुदाय ने पूरी दुनिया में इसका जश्न मनाया था । देखा जाए तो गाजावासियों की हत्याओं के लिए इजराइल नहीं बल्कि हमास जिम्मेदार है । अगर वो इजराइल पर इतना बर्बर हमला नहीं करता तो इजराइल कैसे गाजा में इतना बड़ा नरसंहार कर सकता था । गाजा के लोगों की हत्याओं के लिए किसी भी मुस्लिम देश ने हमास को जिम्मेदार नहीं ठहराया है । पूरे मुस्लिम जगत की ये मानसिकता है कि इजराइल धरती पर होना ही नहीं चाहिए और यहूदियों को धरती से खत्म करना है। हमास वही कर रहा है जो मुस्लिम जगत चाहता है, इसलिए मुस्लिम देशों में उसके समर्थन में बड़े-बड़े प्रदर्शन होते हैं।
इजराइल का सपना भी एक ग्रेटर इजराइल बनाने का है जिसके लिए युद्ध जरूरी है। डोनाल्ड ट्रंप इस समस्या को दो देशों की लड़ाई समझते हैं जबकि सच्चाई यह है कि ये दो सभ्यताओं की जंग है । ये जंग सिर्फ यहूदियों और मुस्लिमों के बीच नहीं है बल्कि शिया और सुन्नी की भी जंग है । अरब देश फिलीस्तीनियों से नफरत करते हैं इसलिए वहां हमास का ज्यादा समर्थन नहीं है। जो समर्थन है वो सिर्फ यहूदियों से नफरत के कारण है। ईरान इस्लामिक देशों का रहनुमा बनने के चक्कर में आतंकियों के संगठन खड़े कर रहा है जो इजराइल से लड़ते रहते हैं । हमास से जब पूछा गया कि अगर तुम्हें पता होता कि इजराइल तुम्हारे हमले का ऐसा जवाब देगा तो क्या तब भी हमला करते। हमास का जवाब था हम बार-बार ऐसे हमले करेंगे, फिर चाहे कोई भी कीमत चुकानी पड़े। ये संभव ही नहीं है कि हमास हथियार छोड़कर गाजा से बाहर चला जाये, जबकि ये शांति प्रस्ताव की जरूरी शर्त है। सवाल यह है कि हथियार छोड़कर हमास क्या करेगा और वो कहां जाएगा । क्या कोई देश उसे शरण देगा । सवाल यह भी है कि जो आज हमास के लिए लड़ रहे हैं, क्या सिर्फ उन्हें ही हमास माना जाए । अगर हमास के लड़ाके गाजा छोड़ देते हैं तो जो लोग पीछे बचेंगे, वो एक नया हमास खड़ा कर सकते हैं । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब हमास ने इजराइल पर हमला किया था तो उसे गाजा की जनता का पूरा समर्थन हासिल था ।
हमास की ताकत को इससे समझा जा सकता है कि दो वर्ष की लड़ाई के बाद भी इजराइल उससे बंधकों को छुड़ा नहीं पाया । इजराइल ने पूरे गाजा को समतल कर दिया लेकिन समझौते के बाद हमास पूरी ठसक से बंधकों को दुनिया के सामने लेकर आ गया । हमास भारी नुकसान के बाद भी नई भर्तियां करने में सफल रहा है । सवाल यह है कि जो संगठन अभी भी नए लोगों को शामिल कर रहा है, वो कैसे हथियार छोड़कर गाजा से चला जाएगा । उम्मीद की किरण सिर्फ यह है कि इजराइल ने सभी मुस्लिम देशों को संदेश दे दिया है कि फिलिस्तीन की जंग की आंच उन तक भी पहुंचेगी । कोई देश ये न सोचे कि इजराइल आतंकियो से लड़ता रहेगा और उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी । कतर पर हमला करके उसने बता दिया है कि हमास जैसे संगठनों को शरण देने का नतीजा सबको भुगतना पड़ेगा।
वास्तव में सच यही है कि जब इजराइल-हमास जंग की आंच अरब देशों को महसूस हुई, तब उन्होंने हमास पर इतना दबाव बनाया कि उसे समझौते के लिए सहमति देनी पड़ी। पाकिस्तान में जनता की प्रतिक्रिया बता रही है कि इस्लामिक देशों के शासकों और उनकी जनता की सोच में बड़ा अंतर है। बेशक मुस्लिम देश इस समझौते से खुश हैं लेकिन इन देशों की जनता के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसकी वजह यह है कि फिलिस्तीन के बारे में गलत प्रचार किया गया है जिसका खामियाजा अब मुस्लिम देश भुगत रहे हैं । इजराइल के लिए जरूरी है कि वो फिलिस्तीन को एक अलग राष्ट्र के रूप में मान्यता दे और उन्हें स्वतंत्रतापूर्वक अपना देश चलाने दे । यह तब हो सकता है, जब इजराइल ग्रेटर इजराइल बनाने का सपना छोड़ दे । अरब देशों और मुस्लिम समाज के लिए जरूरी है कि वो यहूदियों से नफरत का त्याग कर दे और फिलिस्तीन में शांति और स्थिरता स्थापित करने में मदद करें ।
इसके बावजूद इजराइल और हमास के बीच युद्ध रुकवाने का श्रेय डोनाल्ड ट्रंप को देना होगा । उनकी कोशिशों से दोनों पक्ष युद्ध रोकने को सहमत हो गए हैं । इस शांति प्रस्ताव का आंशिक रूप से लागू होना भी ट्रंप और नेतन्याहू की बड़ी जीत माना जाएगा । युद्ध रुकने से हमास ने भी राहत की सांस ली है । अरब देश भी इस समझौते के बाद खुश दिखाई दे रहे हैं. सिर्फ पाकिस्तान में इस मुद्दे पर आग लगी हुई है । वैसे तो हमास-इजराइल युद्ध से पूरी दुनिया परेशान है लेकिन दोनों पक्षों के अलावा अमेरिका और अरब देशों के लिए ये युद्ध बड़ी सिरदर्दी बन चुका है ।
ये सोचना गलत है कि ट्रंप ने सिर्फ वाहवाही हासिल करने के लिए ये समझौता करवाया है बल्कि उन्होंने इस समझौते से सबकी समस्याओं को कुछ समय के लिए टाल दिया है । उनका बड़बोलापन और आत्ममुग्धता से भरे बयान उन्हें अविश्वसनीय बनाते हैं लेकिन इस समझौते के लिए उनकी तारीफ की जानी चाहिए । उन्होंने बड़ी चालाकी से इजराइल को बड़ी मुसीबत से बाहर निकाल लिया है । उन्होंने नेतन्याहू से माफी मंगवा कर इजराइल के प्रति बढ़ती नफरत को थाम लिया है । जब से इजराइल ने कतर की राजधानी दोहा पर हमला करके हमास के अधिकारियों की हत्या की है, तब से सभी अरब देश डरे हुए हैं कि कहीं वो इजराइल के अगले हमले का शिकार न बन जाएं । यही वो डर था, जिसके कारण सऊदी अरब ने पाकिस्तान के साथ रक्षा समझौता कर लिया । इस समझौते के बाद अरब देशों ने राहत की सांस ली है।
डोनाल्ड ट्रंप सिर्फ बंधकों की रिहाई से ही इस समझौते की सफलता का ढिंढोरा पीट रहे हैं । उनका कहना है कि उन्होंने हज़ारों सालों से दोनों देशों के बीच चल रहे युद्ध को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है। ऐसा ही बयान उन्होंने भारत-पाकिस्तान के युद्ध विराम के लिये दिया था। देखा जाए तो हमास और इजराइल के बीच भी युद्ध विराम ही हुआ है। स्थायी शांति की उम्मीद करना पूरी तरह से व्यर्थ है । युद्ध-विराम कभी भी शांति का प्रतीक नहीं होता । युद्ध-विराम का अर्थ ही होता है कि दोनों पक्ष लड़ना छोड़कर अब अगले युद्ध की तैयारी करेंगे । हमास और इजराइल दोबारा नहीं लड़ेंगे, ये सोचना गलत है । इजराइली सरकार पर जनता का भारी दबाव पड़ रहा था कि वो तत्काल बंधकों की रिहाई करवाये । दूसरी तरफ हमास पर भी गाजा की जनता का दबाव था कि वो बंधकों को छोड़ दे ताकि इजराइल गाजा की नाकाबंदी खत्म कर दे । वहाँ भुखमरी के हालात पैदा हो गए थे। देखा जाए तो दोनों पक्ष लड़ते-लड़ते थक गए थे, इसलिए दोनों को थोड़े आराम की जरूरत थी ।
इस समझौते को नेतन्याहू की बड़ी सफलता माना जाएगा क्योंकि इतने बड़े नरसंहार के बाद भी वो अपने बंधकों को छुड़ाने में कामयाब रहे हैं । वैसे भी यह समझौता इजराइल के पक्ष में झुका हुआ दिखाई देता है, इसलिए मुस्लिम देशों में इसका विरोध बढ़ता दिखाई दे रहा है । दूसरे चरण में जब इजराइली सेना पीछे हटेगी तो देखना होगा कि वो कहां तक पीछे जाती है । हमास ने हथियार छोड़ने के लिए शर्त रख दी है कि वो स्वतंत्र फिलिस्तीन का रास्ता साफ होने पर ही हथियार छोड़ेगा । इजराइल इसके लिए तैयार होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है । हमास ईरान का प्रॉक्सी है, इसलिए ईरान की भूमिका भी देखनी पड़ेगी कि वो क्या करता है । ईरान ने इजराइल को मिटाने की कसम खा रखी है, इसलिए इजराइल का ईरान पर भरोसा करना बहुत मुश्किल है । ईरान सिर्फ हमास को ही इजराइल के खिलाफ इस्तेमाल नहीं कर रहा है बल्कि वो हिजबुल्लाह और हूती विद्रोहियों से भी इजराइल पर हमले करवा रहा है । इस युद्ध को इसलिए याद रखा जाना चाहिए क्योंकि इजराइल ने लेबनान से हिजबुल्लाह का लगभग सफाया कर दिया है । इसके अलावा इस युद्ध के कारण सीरिया में भी सत्ता परिवर्तन हो गया है।
इजराइली हमलों के कारण गाजा में लगातार लोग मारे जा रहे थे । मरने वालों की संख्या 65000 से ऊपर जा चुकी है और इससे कई गुना ज्यादा लोग घायल हैं । इसके कारण इजराइल पर लगातार दबाव बनाया जा रहा था कि वो तत्काल युद्ध-विराम कर दे । पूरी दुनिया में बड़ी-बड़ी रैलियां निकाल कर इजराइल का विरोध किया जा रहा था । इजराइल के विरोध में यूरोप के कई देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता प्रदान कर दी थी । सवाल यह है कि 7 अक्टूबर, 2023 से पहले गाजा और इजराइल के बीच युद्ध-विराम ही चल रहा था. इस दिन किसने इजराइल पर बर्बर हमला करके इस युद्ध-विराम को भंग किया था । जब इजराइल पर हमास ने यह भयंकर हमला किया था तो एक समुदाय ने पूरी दुनिया में इसका जश्न मनाया था । देखा जाए तो गाजावासियों की हत्याओं के लिए इजराइल नहीं बल्कि हमास जिम्मेदार है । अगर वो इजराइल पर इतना बर्बर हमला नहीं करता तो इजराइल कैसे गाजा में इतना बड़ा नरसंहार कर सकता था । गाजा के लोगों की हत्याओं के लिए किसी भी मुस्लिम देश ने हमास को जिम्मेदार नहीं ठहराया है । पूरे मुस्लिम जगत की ये मानसिकता है कि इजराइल धरती पर होना ही नहीं चाहिए और यहूदियों को धरती से खत्म करना है। हमास वही कर रहा है जो मुस्लिम जगत चाहता है, इसलिए मुस्लिम देशों में उसके समर्थन में बड़े-बड़े प्रदर्शन होते हैं।
इजराइल का सपना भी एक ग्रेटर इजराइल बनाने का है जिसके लिए युद्ध जरूरी है। डोनाल्ड ट्रंप इस समस्या को दो देशों की लड़ाई समझते हैं जबकि सच्चाई यह है कि ये दो सभ्यताओं की जंग है । ये जंग सिर्फ यहूदियों और मुस्लिमों के बीच नहीं है बल्कि शिया और सुन्नी की भी जंग है । अरब देश फिलीस्तीनियों से नफरत करते हैं इसलिए वहां हमास का ज्यादा समर्थन नहीं है। जो समर्थन है वो सिर्फ यहूदियों से नफरत के कारण है। ईरान इस्लामिक देशों का रहनुमा बनने के चक्कर में आतंकियों के संगठन खड़े कर रहा है जो इजराइल से लड़ते रहते हैं । हमास से जब पूछा गया कि अगर तुम्हें पता होता कि इजराइल तुम्हारे हमले का ऐसा जवाब देगा तो क्या तब भी हमला करते। हमास का जवाब था हम बार-बार ऐसे हमले करेंगे, फिर चाहे कोई भी कीमत चुकानी पड़े। ये संभव ही नहीं है कि हमास हथियार छोड़कर गाजा से बाहर चला जाये, जबकि ये शांति प्रस्ताव की जरूरी शर्त है। सवाल यह है कि हथियार छोड़कर हमास क्या करेगा और वो कहां जाएगा । क्या कोई देश उसे शरण देगा । सवाल यह भी है कि जो आज हमास के लिए लड़ रहे हैं, क्या सिर्फ उन्हें ही हमास माना जाए । अगर हमास के लड़ाके गाजा छोड़ देते हैं तो जो लोग पीछे बचेंगे, वो एक नया हमास खड़ा कर सकते हैं । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब हमास ने इजराइल पर हमला किया था तो उसे गाजा की जनता का पूरा समर्थन हासिल था ।
हमास की ताकत को इससे समझा जा सकता है कि दो वर्ष की लड़ाई के बाद भी इजराइल उससे बंधकों को छुड़ा नहीं पाया । इजराइल ने पूरे गाजा को समतल कर दिया लेकिन समझौते के बाद हमास पूरी ठसक से बंधकों को दुनिया के सामने लेकर आ गया । हमास भारी नुकसान के बाद भी नई भर्तियां करने में सफल रहा है । सवाल यह है कि जो संगठन अभी भी नए लोगों को शामिल कर रहा है, वो कैसे हथियार छोड़कर गाजा से चला जाएगा । उम्मीद की किरण सिर्फ यह है कि इजराइल ने सभी मुस्लिम देशों को संदेश दे दिया है कि फिलिस्तीन की जंग की आंच उन तक भी पहुंचेगी । कोई देश ये न सोचे कि इजराइल आतंकियो से लड़ता रहेगा और उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी । कतर पर हमला करके उसने बता दिया है कि हमास जैसे संगठनों को शरण देने का नतीजा सबको भुगतना पड़ेगा।
वास्तव में सच यही है कि जब इजराइल-हमास जंग की आंच अरब देशों को महसूस हुई, तब उन्होंने हमास पर इतना दबाव बनाया कि उसे समझौते के लिए सहमति देनी पड़ी। पाकिस्तान में जनता की प्रतिक्रिया बता रही है कि इस्लामिक देशों के शासकों और उनकी जनता की सोच में बड़ा अंतर है। बेशक मुस्लिम देश इस समझौते से खुश हैं लेकिन इन देशों की जनता के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसकी वजह यह है कि फिलिस्तीन के बारे में गलत प्रचार किया गया है जिसका खामियाजा अब मुस्लिम देश भुगत रहे हैं । इजराइल के लिए जरूरी है कि वो फिलिस्तीन को एक अलग राष्ट्र के रूप में मान्यता दे और उन्हें स्वतंत्रतापूर्वक अपना देश चलाने दे । यह तब हो सकता है, जब इजराइल ग्रेटर इजराइल बनाने का सपना छोड़ दे । अरब देशों और मुस्लिम समाज के लिए जरूरी है कि वो यहूदियों से नफरत का त्याग कर दे और फिलिस्तीन में शांति और स्थिरता स्थापित करने में मदद करें ।
राजेश कुमार पासी
