नयी दिल्ली, 25 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय जाली दस्तावेज के जरिये धोखाधड़ी का शिकार हुए ‘डिजिटल अरेस्ट’ पीड़ितों के स्वतः संज्ञान वाले मामले की 27 अक्टूबर को सुनवाई करेगा।
उच्चतम न्यायालय की वाद सूची के अनुसार, “जाली दस्तावेज के जरिए डिजिटल अरेस्ट के पीड़ित” विषय वाली स्वतः संज्ञान याचिका सोमवार को न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आएगी।
शीर्ष अदालत ने 17 अक्टूबर को मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि प्रथम दृष्टया न्यायिक दस्तावेज की जालसाजी, साइबर जबरन वसूली और निर्दोष लोगों, विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों की साइबर गिरफ्तारी से जुड़े आपराधिक उद्यम की पूरी सीमा का पता लगाने के लिए केंद्र और राज्य पुलिस के बीच समन्वित प्रयासों के साथ अखिल भारतीय स्तर पर कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है।
उच्चतम ने इस मामले में केंद्र, सीबीआई और अन्य से जवाब मांगा है तथा कहा है कि इस तरह के अपराध न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास की ‘नींव’ पर प्रहार करते हैं।
शीर्ष अदालत ने हरियाणा के अंबाला में एक वरिष्ठ नागरिक दंपति के ‘डिजिटल अरेस्ट’ के मामले का संज्ञान लिया था। धोखाधड़ी करने वालों ने अदालत और जांच एजेंसियों के फर्जी आदेशों के आधार पर इस दंपति से 1.05 करोड़ रुपये जबरन वसूल लिये थे।
पीठ ने कहा, ‘‘हम इस बात से स्तब्ध हैं कि धोखेबाजों ने भारत की शीर्ष अदालत और विभिन्न अन्य दस्तावेज के नाम पर न्यायिक आदेशों को गढ़ा है।
पीठ ने यह भी कहा कि दस्तावेज की जालसाजी और उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के नाम, मुहर और न्यायिक प्राधिकार का बेशर्मी से आपराधिक दुरुपयोग गंभीर चिंता का विषय है।
शीर्ष अदालत ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि से भी इस मामले में सहायता करने का अनुरोध किया।
उसने देश भर में ‘डिजिटल अरेस्ट’ के बढ़ते मामलों को चिह्नित किया था और केंद्र, सीबीआई और अन्य से स्वत: संज्ञान मामले में जवाब मांगा था जब 73 वर्षीय एक महिला ने 21 सितंबर को प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई को पत्र लिखकर अदालत के आदेशों का उपयोग करके दंपति को धोखा देने की घटना के बारे में सूचित किया था।
‘डिजिटल अरेस्ट’ एक ऐसी आपराधिक प्रक्रिया है जहां धोखेबाज आभासी मंच पर खुद को कानून प्रवर्तन या सरकारी अधिकारी के रूप में पेश करता है और लोगों को डरा-धमका उनसे पैसे या संवेदनशील जानकारी मांगता है।