
आज जिस कागज का उपयोग जन-जीवन कर रहा है, उसके प्रचलन व निर्माण की कहानी तीन हजार साल से भी ज्यादा पुरानी है हालांकि प्राचीनकाल में लोग कागज के अभाव में पेड़ की छाल व पत्तों पर लेखन कार्य करते थे।
लेखन कार्य के लिए सर्वप्रथम श्रीपत्रों का उपयोग मिस्र के लोगों ने किया था लेकिन जब अरबों ने इस देश पर हमला किया तो श्रीपत्रा मिलने बंद हो गये थे लेकिन फिर भी एशिया में लेखन कार्य जारी रहा। एशिया के लोगों ने, जिनका मुख्य व्यवसाय भेड़-बकरी चराना था, वे अपने मृत पशुओं की खाल से चमड़ा कागज तैयार करते थे जो चर्मपत्रा कहलाते थे।
चर्मपत्रा बनाने के लिए लोग जानवर को मारकर उसकी ताजा खाल को गर्म पानी में भिगोकर नरम कर लेते थे व उस पर चूना या राख डालकर उसके बाल छुरी से साफ कर लेते थे। तत्पश्चात साफ खाल को राख के ठंडे पानी में डाल दिया जाता था। बाद में इसको खडि़या व चिकने पत्थर से घोंटा जाता था जिससे खाल चिकनी हो जाती थी व सूखकर एक पतले पीले रंग के कागज में बदल जाती थी।
यह कागज दोनों ओर से चिकना होता था। खाल रूपी यह कागज जितना पतला होता था, उसकी कीमत उतनी ज्यादा होती थी। इसे काटना व मोड़ना बड़ा आसान था। यह प्रक्रिया 14 वीं शताब्दी तक चलती रही।
वर्तमान में हम जिस सुन्दर व विभिन्न रंग-रूपों के कागज का उपयोग कर रहे हैं, उसका आविष्कार सबसे पहले दूसरी शताब्दी में हुआ था। यह प्रक्रिया चीन में शुरू हुई थी। कागज निर्माण का श्रेय सम्राट होती को दिया जाता है किन्तु वास्तव में त्साई लुन ने कागज को बनाया था जो एक कुशाग्र बुद्धि का बालक था। इस बालक ने यह प्रयास सन् 80 में किया था व इसने विभिन्न पेड़ों से निकलने वाले रेशों पर इसका प्रयोग किया व अंत में शहतूत, बांस व पुराने चिथड़ों आदि से कागज बनाने में कामयाब रहा। अपने 25 वर्षो के अथक परिश्रम से कागज निर्माण को मूर्तरूप देने के बाद उसने सन् 105 में कागज उद्योग को पनपाया।
चीन में कागज बनाने के लिए पेड़ों के रेशों में चूने का घोल मिलाकर बड़े-बड़े हौजों में खमीर उठाया जाता था। फिर उसे किसी पत्थर की चट्टान के गड्ढे में डालकर सख्त लकड़ी से कूटा जाता था व जब सभी रेशे एकदम लुगदी का रूप ले लेते थे तो वह लुगदी एक बड़े बर्तन में डालकर पतली की जाती थी।
इस पतली लुगदी को बांस की सींकों व रेशम के धागों से निर्मित सांचों में डालकर खूब हिलाते थे, जिससे वह समान रूप से फैल जाये। बाद में यह एक चादर का रूप लेती थी। इसका फालूत पानी नीचे लगी जालियों में से होकर निकल जाता था व ऊपर यह चादर कागज के समान सूख जाती थी जिसे बाद में एक समतल तख्ते पर डाल देते थे। पूरी तरह इस चादर के सूखने पर इसे तह कर भारी मशीन के नीचे दबा दिया जाता था।
चीन के सम्राट ने कागज निर्माण का भेद गुप्त रखने की नीयत से त्साई लुन को राजमहल में कैद करवा दिया था लेकिन कैदी की जिंदगी बिताते इस आविष्कारक ने अंत में डूबकर आत्महत्या कर ली थी।
चीन में कागज निर्माण का भेद 600 वर्षों तक गुप्त रखा गया। सन् 751 में जब अरबों ने चीन पर आक्रमण किया तो उन्होंने चीन के प्रसिद्ध नगर सेनार्क को अपने कब्जे में ले लिया व कुछ चीनी सैनिकों को भी बंदी बना लिया। बाद में इन्हीं चीनी सैनिकों की सहायता से अरबों ने कागज बनाने की कला सीख ली।
कागज बनाने की सबसे पहले एक मिल समरकंद में शुरू की गई। सन् 793 में एक और कागज मिल बगदाद में लगाई गई। बगदाद से कागज़ निर्माण की कला मिस्र में पहुंची। सन् 1188 में फ्रांस में कागज के निर्माण का कार्य शुरू किया गया।
सन् 1260 में अरबों ने कागज बनाने की कला को इटली पहुंचाया जहां से इसका प्रसार जर्मनी में हुआ और सन् 1336 में जर्मनी में कागज मिल खुल गई। इसके पश्चात् वहां के एक बड़े व्यवसायी ने सन् 1389 में न्यूरेमबर्ग में भी कागज मिल लगाई। सन् 1400 में यह कला स्विट्जरलैंड व सन् 1407 में बेल्जियम पहंुची।
सन् 1428 में कागज निर्माण की कला का प्रसार हालैंड में हुआ व सन् 1490 में इंग्लैंड में मि. जॉन ताते ने कागज बनाना शुरू किया। सन् 1532 में स्वीडन तथा सन् 1690 में अमेरिका में विलियम रिटेªटन हाउस द्वारा कागज का निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया। 1698 में यही कला नार्वे व यूरोप में अमेरिका ने पहुंचाई।
जापान में यह कला ब्लाक मुद्रण के साथ-साथ सबसे पहले सन् 770 के आस पास शुरू की गयी। भारत में कागज का निर्माण कार्य कब प्रारंभ हुआ, इस बारे में कुछ निश्चित रूप से पता नहीं चल पाया लेकिन महमूद गजनवी ने भारत पर 10 वीं शताब्दी में आक्रमण किया, तभी भारतीय इस कला से परिचित हुए थे।
पुराने अभिलेखों से पता चलता है कि भारत में कागज उद्योग का काम 19वीं शताब्दी में हुआ तथा सन् 1812 में विलियम कारे ने पश्चिम बंगाल में हुगली जिले के श्रीरामपुर में सर्वप्रथम कागज मिल स्थापित की थी। बाद में यह उद्योग भारत में तेजी से पनपता गया। वैसे सन् 1750 तक जो कागज हाथ से बनता था, वह उतना ही बड़ा होता था जितना आज हम देखते हैं।
सन् 1761 में 2 दिसम्बर को पेरिस में सर्वप्रथम मशीन द्वारा कागज का निर्माण कर लोगों के हाथ में पहंुचाया गया जिसके जन्मदाता निकोलस हुई राबर्ट थे।
राबर्ट ने इस मशीन को 18 जनवरी 1799 को रजिस्टर्ड करवाया व इस पर 1562 फ्रैंक की लागत आईं। राबर्ट ने सन् 1801 में अपनी इस मशीन को सार्वजनिक रूप से एक प्रदर्शनी के दौरान इसका प्रदर्शन कर दर्शकों को कागज बनाकर दिखाया जिसकी चौड़ाई 6 इंच थी।
सन् 1840 में जर्मन के केलर ने लकड़ी की लुगदी तथा कागज के निर्माण कार्य को नया रूप दिया लेकिन आज विभिन्न रेशों द्वारा समूचे विश्व के देशों में लुगदी से कागज निर्मित किया जाता है। वैसे फ्रान्स, कनाडा, अमेरिका इस उद्योग में सर्वाधिक सक्रिय हैं लेकिन कनाडा इतनी अधिक मात्रा में लुगदी तैयार करता है कि वह विश्व के प्रमुख लुगदी निर्यातक देशों की श्रेणी में आता है। कनाडा विशेष रूप से अखबारी कागज बनाने में प्रथम स्थान पर है जहां कागज के बड़े बड़े रोल बनते हैं व दुनिया के तमाम देश इन्हें आयात करते हैं।