दिलचस्प है होम्योपैथी की कहानी

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’चिकित्सा जगत में प्रचलित विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में सस्ती, सुलभ तथा स्थायी लाभप्रद पद्वति का नाम है-होम्योपैथी। आजकल प्रचलित विभिन्न पैथियों में सर्वाधिक लोकप्रिय पैथी, होम्योपैथी के जन्म की कहानी बहुत ही दिलचस्प है।
बात सन् 1790 की है। हैनिमेन कॉलेज मैटेरिया मेडिका के अनुवाद का काम कर रहे थे। वैसे वह एक कुशल चिकित्सक थे किन्तु उन दिनों वह अनुवाद कार्य ही कर रहे थे। उनकी आजीविका का साधन यह अनुवाद कार्य ही बना हुआ था।
उक्त पुस्तक में क्विनाइन के गुणों की चर्चा थी। हैनिमैन को वह वर्णन विश्वसनीय नहीं लगा। उन्होंने प्रत्यक्ष अनुभव करने का विचार किया। वह जानते थे कि यह दवा ज्वर में काम आती है किन्तु स्वस्थ मनुष्य पर इसका प्रभाव क्या पड़ेगा, वह इससे अनभिज्ञ थे। उन दिनों भी किसी दवाई का प्रयोग जानवरों पर ही करके देखा जाता था।
जिज्ञासावश हैनिमैन ने स्वयं चार ड्राम (ड्राम दवा की मात्रा मापने की इकाई है यह मात्रा इम्पीरियल प्रणाली में था, मैट्रिक प्रणाली में नहीं) दवाई क्विनाइन ले ली। कुछ देर बाद उन्हें शीत ज्वर हो गया और उक्त रोग के सभी लक्षण उनमें प्रकट हो गये।
इस अनुभव ने उनके मन में वैचारिक तूफान खड़ा कर दिया। उनके मन में यह सवाल रह रहकर उठने लगा कि एक स्वस्थ मनुष्य के द्वारा किसी औषधि का सेवन करने पर शरीर में जो लक्षण या विकार उत्पन्न होते हैं, क्या वैसे ही लक्षणों वाले प्राकृतिक रोगों में उस औषधि का प्रयोग रोग को नष्ट करने में समर्थ हो सकता है?
हैनिमैन का अनुभव बता रहा था कि ऐसा ही होना चाहिए। यही अनुभव व विश्वास लेकर वह अपने प्रयोगों में जुट गए। इसके लिए उन्होंने स्वयं व मित्रों पर भी प्रयोग किये। क्रमशः एक एक औषधि का प्रयोग करके वह स्वयं उनकी क्रियाओं को देखने परखने लगे तथा परिणामों आदि को लिपिबद्ध भी करने लगे।
इस प्रकार औषधियों की परीक्षा द्वारा उन्हें इस सत्य का साक्षात्कार हुआ कि जिस औषधि की अधिक मात्रा स्वस्थ शरीर में जो विकार उत्पन्न करती है, उसी दवाई की लघु मात्रा सम लक्षण वाले प्राकृतिक रोगों को नष्ट करती है। इसी सिद्धान्त के आधार पर उन्होंने अपनी नयी चिकित्सा प्रणाली का नाम होम्योपैथी रखा।
हैनिमैन का जन्म अप्रैल 1755 में जर्मनी में मेसन नगर के एक चित्राकार के घर हुआ। पिता गरीब थे। मेधावी हैनिमैन 12 वर्ष की उम्र में ही ग्रीक भाषा पढ़ाने लगे थे। 20 वर्ष उम्र तक वह यह कार्य करते रहे, फिर मेसन नगर छोड़ लिपिजिंग गए।
उनका झुकाव चिकित्सा की ओर था, वे मनुष्य की सेवा करना चाहते थे। उन्हें एक सम्मानित व्यक्ति मिले जिनका नाम हार्बर ग्रेक पर्नर था। पर्नर का दिया एक सिफारशी पत्र लिपिजिंग में उनके बहुत काम आया। वह चिकित्सा कार्य में जुट गए किन्तु एलोपैथी से वह असंतुष्ट थे। वियना में भी वह रहे किन्तु संतुष्टि का भाव उनमें नहीं आया।
टैनासिलेवेनिया के गवर्नर ने उन्हें अपने प्रान्त की विशाल लाइब्रेरी का अध्यक्ष मनोनीत किया। वहां उन्होंने उपलब्ध ग्रन्थों का अध्ययन किया। कई भाषाएं सीखी। फिर वहां से अवकाश ग्रहण किया।
24 वर्ष की आयु में एम.डी. की उपाधि प्राप्त कर चिकित्सा कार्य में जुट गए। वहां गोमर्न में सरकारी चिकित्सक पद पर रहे किन्तु असंतुष्ट रहते रहे। अन्ततः उन्होंने त्याग पत्र दे डाला। त्याग पत्र में उन्होंने लिखा कि इस प्रकार की निराधार चिकित्सा प्रणाली के आधार पर चिकित्सा करने से बेहतर होगा कि इस कार्य को त्याग ही दिया जाए।
इसके बाद कॉलेज कृत मैटेरिया मेडिका का अनुवाद करने के बीच होम्योपैथी को जन्म दिया। सन् 1805 में उन्होंने मेडिसन ऑफ एक्सपीरिएन्स नामक ग्रन्थ प्रकाशित कराया। इसके साथ ही अपनी पुस्तक मैटेरिया मेडिका तैयार करने का काम शुरू किया। यह पुस्तक 1811 में तैयार हुई।
आज होम्योपैथी सर्वाधिक लोकप्रिय चिकित्सा पद्धति बन गई है।

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