कोप्पल (कर्नाटक), छह अक्टूबर (भाषा) कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने सामाजिक एवं शैक्षिक सर्वेक्षण का सोमवार को बचाव करते हुये कहा कि समतावादी समाज के निर्माण का विरोध करने वाले लोग इसके बारे में ‘भ्रामक बयान’ दे रहे हैं। इस सर्वेक्षण को व्यापक रूप से ‘जाति जनगणना’ कहा जाता है।
मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि लिंगायत समुदाय द्वारा अलग धार्मिक दर्जा दिए जाने की मांग पर उनका कोई रुख नहीं है।
उन्होंने कहा कि जाति सर्वेक्षण की समय सीमा बढ़ाने पर कोई भी निर्णय मंगलवार शाम तक प्राप्त कवरेज का आकलन करने के बाद लिया जाएगा।
कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा किया गया यह सर्वेक्षण 22 सितंबर को शुरू हुआ और सात अक्टूबर को समाप्त होगा।
सिद्धरमैया ने उच्च वर्गों को दबाने के आरोपों पर पूछे गए सवालों के जवाब में कहा, “आज़ादी को इतने साल हो गए हैं। क्या सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण होना चाहिए या नहीं। अगर नहीं होगा तो हम लोगों के रोज़गार, शैक्षिक और वित्तीय स्थिति के बारे में कैसे जान पायेंगे। समाज में उनकी स्थिति क्या है। यह जानने के लिए हमें आंकड़ों की ज़रूरत है, और आंकड़े इकट्ठा करने के लिए यह सर्वेक्षण किया जा रहा है।”
उन्होंने यहां पत्रकारों से कहा, “किसी को दबाने का सवाल ही नहीं उठता। जो लोग एक समतावादी समाज के निर्माण के विरोधी हैं, वे इस तरह के भ्रामक बयान दे रहे हैं। जो लोग समाज में बदलाव के विरोधी हैं, वे इसका (सर्वेक्षण का) विरोध कर रहे हैं।”
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी के सर्वेक्षण में भाग न लेने के बयान पर एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने पूछा कि क्या वह केंद्र सरकार की राष्ट्रीय जनगणना के दौरान भी जाति गणना का विरोध करेंगे?
यह पूछे जाने पर कि क्या सर्वेक्षण की समय सीमा बढ़ाई जाएगी, सिद्धरमैया ने कहा, ‘‘देखते हैं मंगलवार तक क्या होता है। मुझे उम्मीद है कि हम कल शाम तक सर्वेक्षण पूरा कर लेंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अब तक एक करोड़ दस लाख घरों का सर्वेक्षण हो चुका है, रविवार शाम तक 63 प्रतिशत कवरेज हो गया है। शेष घरों का सर्वेक्षण किया जाना बाकी है। हमारे पास आज और कल, यानी दो दिन हैं, और हमें उम्मीद है कि हम इसे पूरा कर लेंगे।”
लिंगायत समुदाय की अलग धार्मिक स्थिति की मांग पर उन्होंने कहा, “मेरा कोई रुख नहीं है। लोगों का रुख ही मेरा रुख है। सर्वेक्षण के दौरान हम वही लिखेंगे जो वे अपना धर्म बताते हैं।”
इस मुद्दे के फिर से उठने पर सिद्धरमैया ने कहा, ‘‘यह मुद्दा हमेशा से रहा है। कुछ विरक्त मठ स्वामीजी इसकी मांग कर रहे हैं।’’