श्री कृष्ण: सार्वकालिक व्यक्तित्व

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भारतीय साहित्य और संस्कृति में श्री कृष्ण का व्यक्तित्व एक अलग प्रकार से उल्लिखित है। इनका सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद के अष्टम मंडल में हुआ है। महानारायण उपनिषद में वासुदेव के रूप में उनकी चर्चा है। छांदोग्य उपनिषद में देवकी के पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। महाभारत में इन्हें विष्णु का अवतार माना गया है। भागवत पुराण में कृष्ण उपासना पर विशेष जोर दिया गया है। उसी में एक गोपी की आराधना का वर्णन है, इसी को राधा माना गया है। गोपाल तापनी उपनिषद में राधा और कृष्ण की चर्चा प्रेमी और प्रेमिका के रूप में की गई है। जयदेव ने राधा और कृष्ण के विरह को गीत गोविंद के रूप में लिखा है। यह गीतिकाव्य है। सूरदास अपने गुरु वल्लभाचार्य से प्रभावित होकर कृष्ण भक्ति के काव्य लिखें और  साहित्य संसार में अमर हो गए। कृष्ण भक्ति शाखा के वे सबसे बड़े कवि माने गए हैं। “सूरसागर” उनकी अमर कृति है, जिसकी रचना का आधार भागवत पुराण है।

उस समय भागवत धर्म की चर्चा मिलती है। उसके दशम स्कंध में श्री कृष्ण का बाल लीला का बहुत विस्तार से वर्णन है। इसमें वात्सल्य रस की प्रधानता है और माना गया है कि विश्व साहित्य में वात्सल्य क्षेत्र का ऐसा सुंदर वर्णन कहीं नहीं मिलता है। “साहित्य लहरी” उनकी अन्य कृति है  जिसमें भ्रमर गीत परंपरा में राधा और कृष्ण के विरह का वर्णन मिलता है। श्री कृष्ण के वृंदावन छोड़कर मथुरा जाने पर राधा सहित गोपियों की विरहिनी स्थिति का मार्मिक चित्रण के माध्यम से  कृष्ण के सखा उद्धव द्वारा गोपियों को निर्गुण ब्रह्म की शिक्षा देने पर गोपियों द्वारा उसका खंडन और सगुण  उपासना की प्रतिस्थापन की गई है।  इस प्रकार देखा जाए तो कृष्ण की भक्ति और प्रेम को लेकर बहुत से कवियों ने अपने साहित्य को समृद्ध किया है। नंददास,परमानंद दास, योगी हरि, मीराबाई, रसखान आदि का नाम सम्मान से लिया जा सकता है। मीराबाई तो कृष्ण को पति ही मान ली थी।

   ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो यूनानी राजदूत मेगास्थनीज के इंडिका में मथुरा क्षेत्र में कृष्ण की पूजा होने का जिक्र मिलता है। इसका मतलब कि सैकड़ों वर्षों से पूजा हो रही होगी। सामान्य दृष्टि से देखें तो महापुरुष पहले सामान्य व्यक्ति के रूप में ही होते हैं,लेकिन कई पीढ़ियों के बाद देवता के रूप में पूजे जाने लगते हैं। भारतीय संस्कृति और रिवाज इसी ओर संकेत करते हैं। गुजरात से प्राप्त शिलालेख में भी ऐसी जानकारी मिली है। सैंधव क्षेत्र से रथ की तरह के नमूने भी मिले हैं। हो सकता है उसी दौर से श्रुति के रूप में पीढ़ीगत ज्ञान स्थानांतरित हो रहा हो। सबसे प्रमुख चुनौती है हड़प्पा की लिपि का नहीं पढ़ा जाना। यदि पढ़ लिया जाए तो भारत का इतिहास बदल जाएगा।

     बहरहाल श्री कृष्ण सोलहों कलाओं में धनी एक पूर्ण पुरुष माने गए हैं,,जो अपने व्यवहारवादी दर्शनों के कारण सभी लोगों को प्रभावित करते हैं। महाभारत की पूरी कथा के सूत्रधार बनकर पूरी घटनाओं को प्रभावित करते हुए एक प्रमुख शक्तिशाली व्यक्तित्व के रूप में स्थापित होते हैं।
   इस प्रकार कहा जा सकता है कि श्रीकृष्ण भागवत काल से मध्यकाल होते हुए वर्तमान काल तक भारतीय संस्कृति और साहित्य में गहराई से रचे बसे हुए हैं।।

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