नयी दिल्ली, दो अक्टूबर (भाषा) उपराष्ट्रपति सी पी राधाकृष्णन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 100 वर्ष पूरे होने पर बृहस्पतिवार को कहा कि यह संगठन धर्म, जाति या भाषा के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी को गले लगाता है और यह विविधता में एकता का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि इस ‘‘समावेशी दृष्टिकोण’’ ने आरएसएस और उसके संबद्ध संगठनों को स्थायी रूप से सफल बनाया है, जिससे राष्ट्र की सर्वांगीण प्रगति हुई है।
राधाकृष्णन ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि विश्व का सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त संगठन 100 वर्ष का हो चुका है। संघ का सबसे बड़ा योगदान ऐसे आत्मानुशासित और उत्तरदायी नागरिक हैं, जो सशक्त समाज की आधारशिला हैं।
उन्होंने कहा कि 1925 में केशव बलिराम हेडगेवार जी द्वारा स्थापित किए जाने के बाद से, संघ ने युवाओं को मजबूत आंतरिक चरित्र निर्माण और निस्वार्थ भाव से समाज सेवा करने के लिए प्रेरित किया है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि ‘सेवा परमो धर्मः’ के आदर्श से प्रेरित स्वयंसेवकों को चाहे बाढ़, अकाल, भूकंप या अन्य किसी भी आपदा का सामना करना पड़े, वे बिना किसी अपेक्षा या आदेश की प्रतीक्षा के, संगठित होकर पीड़ितों की सेवा करते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह निस्वार्थ सेवा राष्ट्र के लिए एक अद्वितीय और अमूल्य उपहार है।’’
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सेवा करते हुए कभी धर्म, जाति या भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं करता। उन्होंने कहा कि वह दिन दूर नहीं, जब भारत विश्व की सर्वोच्च शक्ति के रूप में स्थापित होगा।
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘इस महान यात्रा में संघ की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है और समय के साथ उसकी यह प्रेरक भूमिका निरंतर बनी रहेगी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘संघ के 100 वर्ष पूरे होने पर मैं समाज की सेवा में उसके निरंतर योगदान और राष्ट्रीय एकता, सद्भाव और प्रगति के महान उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।’’