रूप चतुर्दशी : आंतरिक सुंदरता और सकारात्मक ऊर्जा का महापर्व

0
fvgbvfdcsxaz

दीपावली से ठीक एक दिन पहले आने वाला रूप चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का उत्सव भी है। इस दिन को छोटी दिवाली और काली चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। जहाँ दीपावली धन और समृद्धि का प्रतीक है, वहीं रूप चतुर्दशी स्वास्थ्य, सौंदर्य और आत्मसंवर्धन का प्रतीक पर्व माना गया है।

इस तिथि का उल्लेख स्कंद पुराण, पद्म पुराण और भविष्य पुराण में मिलता है। कहा गया है कि इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर तेल स्नान, उबटन, और शुद्धिकरण के बाद भगवान विष्णु, श्रीकृष्ण और यमराज की आराधना करने से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं तथा जीवन में नई ऊर्जा और प्रकाश का संचार होता है।

नरकासुर से मुक्ति का प्रतीक पर्व

पुराणों के अनुसार, द्वापर युग में राक्षस नरकासुर ने पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था। उसने सोलह हजार कन्याओं को कैद कर रखा था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन उसका वध कर उन्हें मुक्त कराया। इसलिए यह दिन नरक चतुर्दशी कहलाया। अर्थात “अंधकार और पाप रूपी नरक से मुक्ति का दिन।” इसीलिए परंपरा है कि इस दिन अंधकार, आलस्य और नकारात्मकता को जीवन से दूर कर प्रकाश और स्वच्छता को अपनाया जाए।

दरिद्रा देवी की कथा और शुद्धता का संदेश

एक अन्य लोककथा के अनुसार, देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रा दरिद्रता और गंदगी की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। जब घर में कूड़ा-कचरा, अव्यवस्था और मैल होता है, तब दरिद्रा वहाँ निवास करती हैं। इसीलिए रूप चतुर्दशी के दिन घर की सफाई कर कूड़े के स्थान पर दीपक जलाया जाता है, जिससे दरिद्रा का सम्मानपूर्वक निरसन होता है। यह परंपरा केवल धार्मिक कर्म नहीं बल्कि साफ-सुथरे वातावरण और सकारात्मक ऊर्जा का वैज्ञानिक संदेश भी देती है। जब घर स्वच्छ होता है, तब न केवल देवी लक्ष्मी का आगमन होता है, बल्कि मन भी हल्का और प्रसन्न रहता है।

रूप और आंतरिक सौंदर्य का महत्व

इस दिन स्त्रियाँ विशेष रूप से उबटन और तिल के तेल से स्नान करती हैं। इसे “अभ्यंग स्नान” कहा जाता है। यह केवल सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने का आयुर्वेदिक उपाय भी है। मान्यता है कि रूप चतुर्दशी पर स्नान और शृंगार करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, और जो स्वयं की स्वच्छता व सज्जा का ध्यान रखता है, उसके जीवन में समृद्धि और आत्मविश्वास दोनों बढ़ते हैं। इसीलिए इसे “रूप चतुर्दशी” कहा गया, अर्थात सौंदर्य का दिव्य दिन।

यम दीपदान की परंपरा

रूप चतुर्दशी की शाम एक विशेष विधि का पालन किया जाता है यम दीपदान। घर का सबसे वरिष्ठ सदस्य संध्या समय एक दीपक प्रज्वलित कर पूरे घर में घुमाता है, और फिर उसे मुख्य द्वार या घर से थोड़ी दूरी पर रख देता है। इसे “यम दीया” कहा जाता है। विश्वास है कि यह दीपक यमराज को समर्पित होता है, जिससे परिवार को अकाल मृत्यु और रोगों से रक्षा मिलती है। साथ ही, घर में घूमाया गया यह दीपक बुरी शक्तियों को बाहर निकाल देता है। यह परंपरा प्रतीक है अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने की, भय से विश्वास की ओर अग्रसर होने की।

आधुनिक दृष्टिकोण से रूप चतुर्दशी

अगर इस पर्व को आधुनिक नजरिए से देखें तो यह दिन आत्म-देखभाल (self-care) का भी पर्व है। सालभर की व्यस्तता और थकान के बीच यह दिन हमें याद दिलाता है कि अपना ध्यान रखना भी एक प्रकार की पूजा है। शरीर और मन दोनों को शुद्ध रखकर जब व्यक्ति पूजा करता है, तो उसकी प्रार्थना और अधिक प्रभावशाली बनती है। दरअसल, रूप चतुर्दशी केवल बाहरी सौंदर्य का पर्व नहीं, बल्कि आंतरिक सौंदर्य की साधना का दिन है, जहाँ आत्मा भी दीप की तरह उज्ज्वल हो उठती है।

पर्व का गूढ़ संदेश

रूप चतुर्दशी हमें सिखाती है कि –

·    स्वच्छता ही लक्ष्मी का पहला द्वार है।

·    स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है।

·    और आंतरिक सुंदरता ही सच्चा रूप है।

जब मन, तन और घर तीनों पवित्र हो जाएँ, तभी दीपावली का प्रकाश सच्चे अर्थों में जीवन को आलोकित करता है।

कर्म और विचार हो पवित्र

रूप चतुर्दशी का वास्तविक अर्थ है – “अंधकार से सुंदरता की ओर, पाप से पवित्रता की ओर और दुर्भाव से दिव्यता की ओर यात्रा।” इस दिन दीपक केवल बाहर के अंधकार को नहीं मिटाते, बल्कि हमारे भीतर के अंधेरों को भी प्रकाशित करते हैं। इसलिए जब आप इस चतुर्दशी को मनाएँ, तो केवल दीप जलाएँ नहीं, बल्कि अपने भीतर के प्रकाश को भी जगाएँ। यही है रूप चतुर्दशी का सच्चा संदेश – “प्रकाश केवल दीप में नहीं, हमारे कर्मों और विचारों में भी झलके।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *