मुंबई, 23 अक्टूबर (भाषा) मुंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र पुलिस को निर्देश दिया है कि वह अल्पसंख्यक समुदाय की 31-वर्षीय एक गर्भवती महिला की सुरक्षा सुनिश्चित करे, जो अपने साथी के साथ शादी रचाने के लिए घर से भाग गयी है और अपने परिवार से धमकियां मिलने का हवाला दे रही है।
न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की पीठ ने कहा कि चूंकि महिला वयस्क है, इसलिए वह अपने निर्णय खुद लेने के लिए स्वतंत्र है, भले ही उसके परिवार ने उसके रिश्ते को स्वीकार नहीं किया हो।
पिछले सप्ताह जारी अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने महिला के पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण (व्यक्ति को पेश किये जाने संबंधी) याचिका का निपटारा कर दिया। महिला के पिता ने दावा किया था कि उसकी बेटी अप्रैल से लापता है।
अब महाराष्ट्र के बाहर अपने साथी के साथ रह रही महिला को इस माह के प्रारंभ में अदालत में पेश किया गया था।
महिला ने उच्च न्यायालय को बताया कि उसने अपनी मर्ज़ी से घर छोड़ा था, क्योंकि उसका परिवार अड़चनें डाल रहा था और उसके साथी के साथ उसके रिश्ते को स्वीकार नहीं कर रहा था। उसने अदालत को बताया कि वह तीन महीने की गर्भवती है और अपने साथी से शादी करके घर बसाना चाहती है।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘वह वयस्क है और अपने फैसले खुद लेने के लिए स्वतंत्र है। ऐसी स्थिति में, याचिका में कुछ भी बचा नहीं है।’’
पीठ ने कहा कि चूंकि महिला को अपने परिवार से खतरा होने का डर है, इसलिए उसे सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
उच्च न्यायालय ने मुंबई के वकोला थाने को निर्देश दिया कि वह उस क्षेत्र के स्थानीय थाने से संपर्क करे जहां महिला वर्तमान में रह रही है और वहां उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करे।
महिला के पिता ने अप्रैल में वकोला पुलिस में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई थी।
प्रारंभिक जांच के बाद, पुलिस को पता चला कि महिला अपने साथी के साथ महाराष्ट्र से बाहर रह रही थी। महिला ने अपनी सुरक्षा को लेकर आशंका जताई थी, क्योंकि उसके माता-पिता और रिश्तेदार इस रिश्ते के खिलाफ थे।