नयी दिल्ली, 13 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र को निर्देश दिया कि वह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी 2017 के प्रशामक (पैलिएटिव) देखभाल संबंधी दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन के बारे में तीन सप्ताह में जानकारी दे।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत असाध्य रूप से बीमार व्यक्तियों को प्रशामक देखभाल प्रदान करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने के अनुरोध वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश सुनाया। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 25 नवंबर के लिए निर्धारित की।
प्रशामक देखभाल गंभीर बीमारियों और घातक प्रकृति की स्वास्थ्य स्थितियों से पीड़ित लोगों के लिए विशेष चिकित्सा देखभाल है। किसी मरीज के असाध्य रोगों से ग्रस्त होने पर जब इलाज से बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं की जा सकती, तब प्रशामक देखभाल का सहारा लेकर लक्षणों को कम करने, दर्द को नियंत्रित करने, और रोगी के जीवन की गुणवत्ता सुधारने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयना कोठारी ने पीठ को राष्ट्रीय प्रशामक देखभाल कार्यक्रम शीर्षक से 2017 के दिशानिर्देशों के बारे में बताया।
उन्होंने कहा कि केंद्र ने इस मामले में एक संक्षिप्त हलफनामा दायर किया है, लेकिन यह नहीं बताया है कि वह दिशानिर्देशों का पालन कैसे करता है।
उन्होंने कहा, “दरअसल, दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि जिला स्तर पर आपको एक प्रशामक देखभाल टीम गठित करनी होगी और हर राज्य में एक राज्य प्रशामक सुरक्षा प्रकोष्ठ होना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि कितने राज्यों ने यह प्रकोष्ठ गठित किया है।”
कोठारी ने कहा कि केंद्र को यह भी बताना चाहिए कि कितने सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में प्रशामक देखभाल टीम है। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि दिशानिर्देशों की एक प्रति केंद्र और राज्यों के वकीलों के साथ साझा की गई है।
पीठ ने कहा, “भारत सरकार की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता को इन दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन के संबंध में न केवल केंद्र सरकार से निर्देश प्राप्त करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया जाता है, बल्कि संबंधित राज्यों से आंकड़े एकत्र करने के बाद इस न्यायालय को स्थिति से अवगत कराने के लिए भी निर्देश दिया जाता है।”
पिछले साल मार्च में शीर्ष अदालत ने याचिका पर केंद्र और अन्य से जवाब मांगा था।
न्यायालय ने केंद्र से कहा कि वह एक व्यापक जवाब दाखिल करे, जिसमें गंभीर रूप से बीमार मरीजों को उपचारात्मक देखभाल प्रदान करने के लिए उठाए गए कदमों और लागू नीतियों का उल्लेख हो।