
एक बार नाइजीरिया के घने वन में भयानक सूखा पड़ा। सूरज अपनी आग लगातार बरसाता रहा। चारों तरफ हाहाकार मच गया। वन के पेड़-पौधे सूखकर मुरझाने लगे। जानवर गर्मी से बेहाल होने लगे। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि इस भयंकर गर्मी का सामना कैसे किया जाए। जानवर भी भूख व प्यास से मरने लगे। लंबी उड़ान भरने वाले पक्षी दूसरे देशों को उड़ चले लेकिन ज्यादातर जानवरों का मत था कि संकट की इस घड़ी में उन्हें अपना घर नहीं छोड़ना चाहिए। जैसे भी हो, एकजुट होकर इस मुसीबत का सामना करते हुए वन में ही रहना चाहिए।
उधर इतनी गर्मी पड़ रही थी कि सहन नहीं हो रही थी। चूहे का कहना था कि अब तो बिल में रहना भी मुमकिन नहीं। ऊंट का कहना था कि उसे गर्मी सहने की आदत तो है पर यह गर्मी उससे भी सहन नहीं हो रही। कुत्ते की जीभ भी गर्मी की वजह से बाहर निकली रहती थी। सबसे बुरा हाल हिप्पोपाटेमस का था। मोटी खाल होने के कारण उसे और ज्यादा गर्मी लगती थी। कहने का मतलब यह कि हर जानवर का बुरा हाल था। किसी को भी गर्मी से बचने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।
एक दिन हाथी ने सबको संबोधित करते हुए कहा, ‘अभी तक हम नदी के जल से प्यास बुझा रहे हैं। हालांकि नदी में भी पानी कम होता जा रहा है, तो भी नदी में इतना पानी तो है ही कि हम अपनी प्यास बुझाने के साथ-साथ उस में रहकर गर्मी से भी राहत पा सकते हैं।‘
सबने हाथी की ओर प्रशंसा भरी नजरों से देखा। हाथी ने आगे कहा, ‘नदी ने कभी हमें अपनी प्यास बुझाने से नहीं रोका। यदि सब मिलकर नदी से प्रार्थना करें तो वह हमें पानी में रहने की आज्ञा दे सकती है।‘
यह सुनकर सभी जानवर खुश हो उठे। फिर हाथी को अपना नेता चुनकर कहा कि वही नदी से बात करे। हाथी कुछ जानवरों के साथ नदी के पास पहुंचा और अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि यदि वह पानी में रहने की आज्ञा दे दे तो सबकी जान बच जाएगी। क्योंकि नदी में पानी पहाड़ों से बहकर आता था इसलिए उसे खास चिंता नहीं थी। फिर वन के ज्यादातर जानवर नदी के ही किनारे पैदा हुए थे और पले-बढ़े थे। इसलिए नदी भी उन पर अपनी ममता लुटाती रही थी। अतः नदी ने कहा, ‘यदि सब जानवरों को मेरे पानी में रहकर राहत मिलती है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं पर सबको यहां मेहमानों की तरह रहना होगा। इस बात का ध्यान रखना होगा कि मेरी संतानों को कोई कष्ट न हो।‘
सारे जानवर नदी में आकर रहने लगे। भूख लगने पर वे वन में जाते और फिर लौटकर नदी के ठंडे पानी में आराम करते। हिप्पो तो दिनभर अपने तीन-चार टन भारी शरीर को पानी में डुबोए रहता और शाम के समय ही भोजन की तलाश में निकलता।
धीरे-धीरे वन में भोजन की कमी होने लगी। जानवरों को भोजन की खोज में दूर-दूर जाना पड़ता जिससे वे गर्मी की वजह से बेहाल हो जाते थे। अतः कुछ जानवरों ने बाहर जाने के बजाए नदी में ही चुपचाप मछलियों का शिकार करके अपनी भूख मिटानी शुरू कर दी। इससे मछलियों की संख्या तेजी से घटने लगी। इस हालत में नदी का चिंतित होना स्वाभाविक था। उसे अपने ही परिवार पर संकट के बादल घिरते दिखाई देने लगे। उसे लगा कहीं न कहीं जरूर कुछ गड़बड़ है परंतु वह अपने मेहमानों पर शक भी नहीं करना चाहती थी।
फिर जल्द ही नदी को पता लग गया कि उसके साथ विश्वासघात किया जा रहा है। तब उसे बहुत गुस्सा आया। उसने तुरंत सभी जानवरों को वन लौट जाने का आदेश दिया। यह भी चेतावनी दी कि जो जानवर उसकी बात नहीं मानेगा अथवा पानी के किसी जीव को खाएगा तो उसे वह जिंदा नहीं छोड़ेगी।
हिप्पो ही एकमात्र ऐसा प्राणी था जो शाकाहारी था। उसने पानी के किसी भी जीव को नहीं सताया था पर उसे भी नदी के गुस्से का सामना करना पड़ा। उसे दूसरे जानवरों से कहीं ज्यादा गर्मी लगती थी। उसे लगा यदि वह पानी के बाहर गया तो जरूर मर जाएगा, अतः किसी भी तरह नदी को मनाने की ठान ली।
नदी ने सभी जानवरों को भगा दिया। एक दिन उचित मौका देखकर हिप्पो नदी के दरबार में उपस्थित हुआ। उसका शरीर गर्मी से काला पड़ने लगा था। उसने नदी से अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि यदि उसे वापस पानी में न आने दिया तो वह मर जाएगा।
हिप्पो के काले पड़ते रंग को देखकर नदी को दया आ गई। अतः पूछा, ‘मुझे कैसे विश्वास हो कि पानी में रहकर तुम मछलियां नहीं खाओगे?‘
हिप्पो शाकाहारी था, तो भी उसने नदी को वचन दिया कि वह लंबी घास भी नहीं खाएगा ताकि जलचरों को निवास संबंधी परेशानी न हो।
नदी को हिप्पो पर विश्वास हो गया। बोली, ‘ठीक है, तुम पानी में रह सकते हो लेकिन याद रहे कि यदि वचन का पालन नहीं किया तो कड़ी सजा दी जाएगी।‘
तब से हिप्पो स्थायी रूप से नदी में रह रहा है और घास खाने के कारण उसे दरियाई घोड़े के नाम से जाना जाता है।