भारतीय हिस्सेदारी वाले तेल क्षेत्र पर अमेरिकी प्रतिबंध के बाद ओवीएल ने कानूनी राय मांगी

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नयी दिल्ली, 26 अक्टूबर (भाषा) ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने (ओवीएल) अमेरिका द्वारा रूसी तेल क्षेत्र पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद कानूनी राय मांगी है। इस तेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के गठजोड़ की 49.9 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 22 अक्टूबर को रूस की दो सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनियों… रोसनेफ्ट और लुकऑइल के खिलाफ नए प्रतिबंधों की घोषणा की, ताकि रूस पर यूक्रेन के साथ युद्ध समाप्त करने का दबाव बनाया जा सके।

इसके तहत, अमेरिकी वित्त विभाग के विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय (ओएफएसी) ने रूस स्थित रोसनेफ्ट और लुकऑइल की कई अनुषंगी कंपनियों को प्रतिबंधित कर दिया, जिनमें उनकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 50 प्रतिशत या उससे अधिक हिस्सेदारी थी।

इस प्रकार प्रतिबंधित अनुषंगी कंपनियों की सूची में सीजेएससी वैंकोरनेफ्ट शामिल है, जिसमें ओवीएल की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है, और ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल), इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) और भारत पेट्रोरिसोर्सेज लिमिटेड के एक भारतीय गठजोड़ के पास 23.9 प्रतिशत हिस्सेदारी है। शेष 50.1 प्रतिशत हिस्सेदारी रोसनेफ्ट के पास है।

ओएफएसी प्रतिबंधों को सीधे तौर पर पढ़ने पर पता चलता है कि ये प्रतिबंध भारतीय कंपनियों पर लागू नहीं होते, लेकिन मामले की प्रत्यक्ष जानकारी रखने वाले दो सूत्रों ने बताया कि ओवीएल घरेलू और अंतरराष्ट्रीय विधि कंपनियों से कानूनी राय ले रही है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह किसी भी प्रतिबंध का उल्लंघन न करे।

उन्होंने कहा कि ओएफएसी प्रतिबंध भारतीय कंपनियों पर लागू नहीं होने चाहिए, क्योंकि उनके पास वैंकोरनेफ्ट में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी नहीं है, जिसे प्रतिबंधित इकाई घोषित किया गया है।

इसके अतिरिक्त, भारतीय कंपनियों को कोई इक्विटी तेल नहीं मिलता, जो उनकी इक्विटी हिस्सेदारी के अनुपात में क्षेत्र से उत्पादित तेल और गैस का एक हिस्सा होता है।

इसके बजाय, वे संयुक्त उद्यम की तेल और गैस बिक्री से होने वाली आय से लाभांश पाने की हकदार हैं।

उन्होंने कहा कि इसके अलावा, भारतीय कंपनियां इन क्षेत्रों की परिचालक नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि क्षेत्र से उत्पादित तेल कारोबारियों को बेचा जाता है, जो बदले में इसे वैश्विक स्तर पर रिफाइनरियों को बेचते हैं। 416.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला वांकोर क्षेत्र, रूस के इगारका से लगभग 142 किलोमीटर दूर, पश्चिम साइबेरियाई बेसिन के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। ओवीएल ने मई, 2016 में सीएसजेसी वांकोरनेफ्ट में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने के लिए रोसनेफ्ट को 1.28 अरब अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया था। सीएसजेसी वैंकोरनेफ्ट रूसी संघ के कानून के तहत गठित एक कंपनी है, जो वांकोर क्षेत्र और उत्तरी वांकोर लाइसेंस की मालिक है।

इस 15 प्रतिशत हिस्सेदारी से, सार्वजनिक क्षेत्र ऑयल एंड गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) की विदेशी निवेश इकाई ओवीएल को 41.1 लाख टन तेल और तेल समतुल्य गैस प्राप्त हुई। इसने अक्टूबर, 2016 में 93 करोड़ अमेरिकी डॉलर में 11 प्रतिशत अतिरिक्त हिस्सेदारी हासिल की, जिससे उसे 32 लाख टन तेल समतुल्य गैस प्राप्त हुई।

उस वर्ष, ओआईएल-आईओसी-बीपीआरएल के गठजोड़ ने 2.02 अरब अमेरिकी डॉलर में वैंकोरनेफ्ट में 23.9 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी, जिससे उन्हें 65.6 लाख टन तेल के बराबर तेल प्राप्त हुआ। वोस्तोक ऑयल एलएलसी (रोसनेफ्ट की एक सहयोगी) के पास इन क्षेत्रों में 50.1 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

रूस पर प्रतिबंधों के कारण, भारतीय कंपनियां पिछले तीन वर्षों से वैंकोरनेफ्ट से अर्जित लाभांश को स्वदेश नहीं भेज पा रही हैं। उनके रूसी बैंक खातों में कुल मिलाकर लगभग 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर जमा हो गए हैं।

सूत्रों ने कहा कि ओवीएल 100 प्रतिशत सुनिश्चित होना चाहती है कि वह किसी भी प्रतिबंध का उल्लंघन नहीं कर रही है और उसने वैंकोरनेफ्ट नामक एक नामित (प्रतिबंधित) इकाई में भारतीय कंपनियों की हिस्सेदारी पर कानूनी राय मांगी है। 22 अक्टूबर की कार्रवाई के बाद, अमेरिकी वित्त विभाग ने अपनी वेबसाइट पर कहा, ‘‘नामित या अवरुद्ध व्यक्तियों की सभी संपत्तियां और संपत्ति में हित, जो अमेरिका में हैं या अमेरिकी व्यक्तियों के कब्जे या नियंत्रण में हैं, अवरुद्ध कर दिए गए हैं और उनकी सूचना ओएफएसी को दी जानी चाहिए।’’

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