
मनुष्य की औसत आयु के बढ़ने से ही वृद्धजनों की संख्या में भी निश्चित रूप से बढ़त हुई है और जिसके परिणामस्वरूप आज के युग में वृद्धों की समस्याओं ने भी कुछ ज्यादा ही विकराल रूप धारण कर लिया है। इन्हीं समस्याओं की लंबी सूची में से एक है ’साइलेंट डिसीज़ ऑस्टियोपोरोसिस‘।
ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियों का घनत्व एवं अस्थिमज्जा बहुत कम हो जाता है। साथ ही हड्डियों की बनावट भी बिगड़ जाती है जिससे हड्डियां अत्यंत भुरभुरी और अति संवेदनशील हो जाती हैं। इस कारण हड्डियों पर हल्का दबाव पड़ने या हल्की चोट लगाने पर भी वे टूट जाती हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस को एक ‘मौन रोग’ भी कहा जाता है, क्योंकि शुरुआत में इस रोग के कोई खास लक्षण नहीं होते। ये चुपचाप पनपते रहते हैं और जब फ्रैक्चर होता है, तो पता चलता है कि व्यक्ति को ’ऑस्टियोपोरोसिस‘ है।
हड्डियों में बनने बिगड़ने की प्रक्रिया हमारे शरीर में चलती रहती है जिसके द्वारा अस्थि का उचित घनत्व एवं मजबूती निर्धारित होती है। सामान्यतः 30 वर्ष की आयु के पश्चात हड्डी बनने की प्रक्रिया की तुलना में हड्डी गलने की प्रक्रिया बढ़ जाती है और यहीं से शुरूआत होती है ’ऑस्टियोपोरोसिस‘ या ’अस्थिक्षरण‘ जैसी व्याधि की। प्रमुख हारमोंस जो अस्थि के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, वे ग्रोथ हारमोन इस्ट्रोजन और थॉइराइड हारमोन हैं।
यह रोग महिलाओं में पुरूषों की अपेक्षा अधिक पाया जाता है और इसका प्रमुख कारण यह है कि रजोनिवृत्ति के पश्चात इस्ट्रोजन हारमोन की कमी होने लगती है जिसकी वजह से शरीर की हड्डियों के द्रव्यमान में कमी आ जाती है।
जिन महिलाओं में हड्डियों के तेजी से घिसने की संभावना है वे हैं:
जिनमें रजोनिवृत्ति 45 वर्ष की उम्र से पहले हुई हो।
जिनमें ऑपरेशन द्वारा बच्चेदानी व अंडाशय निकाले गये हों।
जिनमें लंबे अंतराल तक रक्तस्राव न हुआ हो।
निःसंतान हों।
इसके अतिरिक्त कुछ कारण ऐसे भी हैं जिनकी वजह से चाहे पुरूष हो या महिला, किसी को भी यह बीमारी होने की संभावना होती है जिनके परिवार में पहले ही ऑस्टोपोरोसिस हो चुका हो।
कैल्शियम, विटामिन डी और प्रोटीन्स की कमी।
बहुत अधिक दुबला-पतला होना।
धूम्रपान,मद्यपान या फिर अधिक कॉफी का सेवन।
ज्यादा चलते-फिरते न हों।
लम्बे अंतराल तक स्टीरायड्स या थाइरॉक्सिन का सेवन।
हारमोन संबंधित रोग,जैसे थाइराइड या फिर गुर्दे आदि बीमारियों से ग्रसित होना।
ऐसा भी देखा गया है कि रक्तचाप अधिक होने पर हड्डियां अधिक तेजी से कमजोर और भुरभुरी हो जाती हैं क्योंकि रक्तचाप ऊंचा होने पर पेशाब के रास्ते कैल्शियम तेजी से क्षीण होने लगता है और इसकी पूर्ति आहार में कैल्शियम की मात्रा बढ़ाकर भी नहीं हो पाती।
हड्डियों के घिसने का कोई विशेष लक्षण नहीं होता। इसका पता तभी चलता है, जब कोई अस्थि भंग हो जाती है। इसके कारण अधिकतर कलाई, कूल्हे एवं रीढ़ की हड्डी का फ्रैक्चर होता है। रीढ़ की हड्डी का फ्रैक्चर कभी-कभी पीठ दर्द के रूप में चलता रहता है। कई बार लक्षणों के अभाव में रीढ़ की हड्डी की विकृति उत्पन्न होने पर ही उसका पता चलता है। रोगी की पीठ झुकती चली जाती है। पीठ में कुबड़ निकल आता है तथा लंबाई कम हो जाती है। कुछ रोगियों मे नसों पर दबाव पड़ने के कारण लकवा होने की आशंका होती है।
आस्टियोपोरोसिस के इलाज में जांच का बहुत महत्त्व है। अगर इसका आरंभिक अवस्था में ही पता लग जाए तो इसे न केवल अधिक बढ़ने से रोका जा सकता है बल्कि अस्थि हृास की क्षतिपूर्ति भी की जा सकती है। ऑस्टियोपोरोसिस का पता हड्डियों का घनत्व मापकर किया जाता है। इसके लिए सामान्य एक्स-रे, कंप्यूटरीकृत टोमोग्राफी स्कैन, अल्ट्रासाउंड, बोन डेंसीयोमेंट्री स्कैन और डेक्साबोन स्कैन में हड्डियों का घनत्व मापा जाता है।
ऑस्टियोपोरोसिस की वजह से शरीर में हड्डियां कमजोर और भुरभुरी हो जाती हैं जिसकी वजह से कूल्हों और घुटनों जैसे जोड़ों को शरीर का भार वहन करने में कठिनाई पड़ने से उनके बीच की गद्दीनुमा ’कार्टिलेज‘ खत्म होने लगती है और इसका परिणाम यह होता है कि जोड़ों की हड्डियों के बीच घर्षण से जोड़ों की सतह खुरदुरी हो जाती है।
आर्थराइटिस की वजह से होने वाली असहनीय पीड़ा से बचने के लिए अधिकतर लोग दवाइयों पर निर्भर करते हैं जैसे कि ’स्टीराइड्स‘। इसके लिए हम पहले ही उल्लेख कर चुके हैं कि अत्यधिक स्टीराइड्स के सेवन से ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है,सो अंततः यह सारी प्रक्रिया एक कष्टकारक चक्र का रूप धारण कर लेती है।
किसी रोग का बचाव हमेशा इलाज से बेहतर विकल्प है। अतः ऑस्टियोपोरोसिस के प्रति आपकी जागरुकता ही इस रोग का आधा इलाज है। सक्रिय जीवन शैली अपनाकर इसको रोका जा सकता है। अपने दैनिक आहार में कैल्शियम, विटामिन डी एवं प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दें।
साधारणतः भोजन में प्रतिदिन 11 से 14 वर्ष तक 1200 मि.ग्रा. कैल्शियम, 24 से 45 वर्ष तक 1000 मि.ग्रा., रजोनिवृति के बाद 1500 मि. ग्रा. की खुराक होनी आवश्यक है। नियमित व्यायाम, जैसे तेज चलना, तैरना व साइकिलिंग को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें। कैल्शियम की दैनिक जरुरत को पूरा करने के लिए स्किम्ड मिल्क, दही, पनीर, बींस, पत्तागोभी, हरी सब्जियां, मूली आदि प्रचुर मात्रा में लें।
मीनोपाज के बाद हारमोन रिप्लेसमेंट थेरेपी को अपनाकर ऑस्टियोपोरोसिस के खतरे को काफी कम किया जा सकता है। धूम्रपान एवं मद्यपान से बचें, कॉफी का अधिक सेवन न करें, अनावश्यक दवाओं के उपयोग एवं हारमोनों के प्रयोग से बचें। (जैसे स्टीराइड्स)।