स्वदेशी की धमक और दीए की चमक- प्रकाशित हों स्व और देश दोनों

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दीप पर्व दिवाली का छोटा सा दीया अपनी टिमर – टिमर  रोशनी के साथ बहुत बड़ा संदेश देता है। नन्हा सा दीपक कहता है कि दीपावली, प्रकाश का पर्व है ।  हर दीया  संदेश देता है कि जीवन में सबके साथ हिलमिल कर रहने ,खुशियों की रोशनी बांटने,सबके जीवन में , सुख का  उजास भरने और सबको मधुरता का अहसास कराने  का ही दूसरा नाम है दीवाली ।

यह व्यष्टि नहीं समष्टि का पर्व है यानि अकेले आप कितना चमकें, कितना जलें पर दीपावली नहीं बन सकते । समष्टि,व्यष्टि और देश व समाज की खुशहाली का महापर्व है दीपावली जो एक नहीं, अनेक संदेश लेकर आता है।

 

एक दिवाली अनेक संदेश :
सर्वजन हिताय का भाव :

 दीवाली का पर्व संदेश देता है कि जैसे दीपक प्रकाश के लिए है वैसे ही व्यक्ति समाजहित के लिये है । यदि दीया प्रकाश बांटने में कोई अवदान नहीं करता है तो महज मिट्टी का आग में पका पिंड मात्र है, उसकी कोई महत्ता नहीं है इसी प्रकार यदि व्यक्ति भी केवल अपने तक सीमित है वह राष्ट्र , धर्म व समाज के लिए कुछ नहीं कर रहा है  तो उसका भी होना न होना बराबर है ।

पांचो तत्वों का समभाव

 इतना ही नही हिल – मिलकर रहने के संदेश के रूप में दीया यह इंगित करता है कि उसकी महत्ता महज उसकी वजह से नहीं वरन् बाती व तेल के कारण है । जब तक यें तीनों हिल-मिल कर रहते व कार्य करते हैं तभी तक समाज को रोशन कर सकते हैं तीनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं । साथ – साथ हों तब भी बात नहीं बनती उसके लिए भी अग्नि चाहिए, तूलिका चाहिए यानि प्रकाश अपने आप में जीवन के पांच तत्वों को समेटे है जो प्रतीक रूप में जल , अग्नि ,वायु , पृथ्वी व आकाश का  प्रतिनिधत्व करते हैं  दीए , तेल बाती आग व तूलिका के रूप में ।

 

बांटें हर्ष और प्रकाश

यदि हम देश समाज व जरूरतमंदो के लिए कुछ नहीं करते तो सब व्यर्थ है । अर्थ होने पर भी अर्थहीन है समाज के लिए कुछ नहीं करने वाला व्यक्ति । पर क्या आज इस छिपे संदेश को हम पढ़ समझ पा रहे हैं ? अगर समझते तो दिखावे पर धन न फूंकते, दुखियों के दुख को देख कर भी अनदेखा न करते अपितु दीए की तरह खुशियां बांटते ।

 

समष्टि के प्रकाश का पर्व

दीपावली में ‘पांच’ का बड़ा महत्व है यह सृष्टि के पंचतत्वों, पंच पुण्यों , पंच विकारों , मिष्टान्नों  व पांच दीयों से शुरू  होने वाला पर्व है । कार्तिक मास की अमावस्या को हम समष्टि  के प्रकाश का पर्व बना सकते हैं ।  मिल जुलकर  रहने का संदेश दे सकते हैं । जैसे प्रकाश पर्व अकेला नहीं आता बल्कि  अपने साथ पांचपर्व धनतेरस, रूपचतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, तथा यमद्वितीया लेकर आता है ।  वैसे ही हम भी सात्विक विचारों व गुणों को जोड़ कर, खुद दीए जैसे बनकर दीवाली की रोशनी को कहीं ज्यादा सार्थक  बना सकते हैं ।

 

 मिलकर दें झिलमिल प्रकाश

  मिथकों में कहा गया है कि इन पांचों पर्वों की पूजा से चंचला लक्ष्मी स्थिर रूप से उस घर में विराजती हैं जहां कम से कम पांच लोग मिलकर पूजा करते हैं । धन , यश , वैभव , ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति के लिए दीवाली मनाने का उल्लेख वेदों में है तो इससे भी सबक लें हम । धर्म,जातिवाद,संप्रदायवाद,क्षेत्रियतावाद, संकीर्णता व सामाजिक कुरीतियों को नष्ट कर अपनी लक्ष्मी को स्थिर करने का प्रण लें इस बार दीवाली पर ।

 

 जोड़ें राम आयाम

   दिवाली मुख्यत: हिंदुओं का पर्व है और हिंदू इसे अपने तौर तरीकों, रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार मनाने के लिए स्वतंत्र हैं । उनके लिए राम के अयोध्या लौटने का बड़ा महत्व है । रावण का वध करके जहां दशरथ पुत्र राम अयोध्या वापस आते हैं और बाद में उसे समृद्ध व आदर्श राज्य बनाते हैं उसी तरह हम भी दिवाली के पर्व पर राम को महज दशरथ पुत्र राम की वापसी न मानकर राम रूपी तत्व में नए आयाम जोड़कर कुछ इस तरह मनाएं कि सत्य,न्याय मर्यादा, संस्कृति और अच्छाइयों का रामराज्य स्थापित हो सके।  इसके लिए हमें अपने अंदर के उस रावण को मारना होगा जो हमारी नैतिकता, उज्ज्वल, चरित्र और उन अच्छे विचारों को मार रहा है  ।

 

प्रदर्शन नहीं दर्शन

दिवाली पर हम मिट्टी के दीए जलाकर गरीबों के घर में दिवाली का प्रकाश भेजें जो हमारी ओर आशा भरी निगाहों से निहारते हैं । संपन्नता  का प्रदर्शन भारत में कभी भी अच्छा नहीं माना गया है हम संपन्न हों, लक्ष्मी पुत्र बनें इसमें बुराई नहीं है लेकिन, अगर हम  अपने आसपास के दुखी लोगों के चेहरों पर एक मुस्कान ला सकें तो इससे बड़ी संपन्नता और आत्म संतुष्टि दूसरी नहीं हो सकती ।

 

सूरज न सही जुगनू तो बनें

 जैसे एक छोटा सा दीप घनघोर अंधेरे में जलता है और  जितना भी हो सके प्रकाश करके अंधकार को लगातार चुनौती देता है उसी तरह हम भी अपनी जिजीविषा और नेक कमाई के जरिए इस घने अंधेरे में एक दीपक बनकर किसी के जीवन में चमक ला सकते हैं । सूरज न सही जुगनू तो बन ही सकते हैं ।

 

दीप नहीं, दीपमाला बनें

 यह सोचना कि एक अकेले से भला क्या होने वाला है उचित नहीं है क्योंकि अगर हर दीया यह सोचने लगे कि उस अकेले के जलने से क्या होगा तो फिर दीपावली यानी दीपमाला अथवा दीपों की पंक्ति कैसे बनेगी और अंधेरा कैसे हारेगा ? इसी तरह  मानव एक इकाई के रूप में जितना बन पड़े उतना करें और समष्टि के हितभाव के साथ मिलकर  परोपकार की उजास फैलाएं ।‌

अप्पो दीप: भव:

दिवाली केवल प्रकाश पर्व नहीं अपितु मुक्ति का पर्व भी है  जब यह जग हर तरह के तमस से मुक्त हो जाएगा तो रामराज्य कल्पना मात्र का विषय नहीं अपितु यथार्थ बन जाएगा आइए, राम की वापसी का जश्न स्वदेशी दीपों के प्रकाश के साथ राष्ट्रीयता, सामाजिक समरसता तथा उच्च आदर्शों से उज्ज्वल रामराज्य की स्थापना में अप्पो दीप: भव: के भाव के साथ  योगदान दें   ।

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