महावीर स्वामी का मोक्ष प्रदाता ज्योति पर्व दीपावली

0
dfrgt4r3ews

 दीपावली पर्व का नाम आते ही संपूर्ण विश्व के भारतीयों और उनके अपनों के मन में प्रेम, हर्ष उल्लास व उमंग के भाव स्वत: इंद्रधनुष से आकर लेने लगते हैं। घरों की पुताई, सफाई,दीवारों पर आलेखन, गाँव में पुराने घरों की गोबर से लिपाई,पोतनी से सुंदर ढिक बनाना, दीवारों पर सुंदर-सुंदर आकृतियां,नए वस्त्र, पूजन,खील बतासे, मिठाइयां, सभी अपनों के घर जाना, दीप जलाना,एक दूसरे को बधाई देना सब कुछ अनुरागी लगता है।
 विश्व के जैन संप्रदाय में इन सब के साथ जुड़ जाता है,उषा काल के समय जिन मंदिर में जाकर तीर्थंकर महावीर की मूर्ति के समक्ष पूजन करना, निर्वाण कांड पढऩा, प्रभु को निर्वाण लाडू अर्पित करना, साथ ही अपने घरों, कार्यालयों या व्यापारिक प्रतिष्ठानों में दीप जलाकर तीर्थंकर महावीर के प्रधान गणधर श्री गौतम स्वामी जी को कैवल्य ज्ञान मिलने के उपलक्ष्य में दीप जलाकर हर्ष की अभिव्यक्ति करना।
 हम भारतीय भगवान राम के वनवास से अयोध्या वापिस आगमन के उपलक्ष्य में व तीर्थंकर महावीर के मोक्ष कल्याण,उनके प्रधान गणधर पूज्य श्री गौतम स्वामी को कैवल्य ज्ञान मिलने के हर्ष की अभिव्यक्ति के रूप में दीपावली पर्व मानते हैं।
तीर्थंकर महावीर जिनका जन्म आज से 2624 वर्ष पूर्व उत्तरी बिहार के वैशाली प्रान्त के कुंडलपुर राज्य में राजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला के घर में हुआ था। उनके जन्म के 15 माह  पूर्व से ही, राजा सिद्धार्थ के महलों में रत्नों की वर्षा होने लगी थी। मां त्रिशला ने गर्भधारण के पूर्व 16 स्वप्न देखे, जिनका फल राजा सिद्धार्थ ने बताया कि उनके यहां जन्म लेने वाला पुत्र सर्वश्रेष्ठ गुणों से संपन्न,धीर, गंभीर तो होगा ही अपने असीम तप से मोक्ष पद को प्राप्त कर संपूर्ण मानवता को सत्य, अहिंसा, तप, त्याग, अपरिग्रह से विश्व विजय, असीम शांति व सच्चे सुख पाने का पथ भी प्रशस्त करेगा।
 वद्र्धमान महावीर एक श्रेष्ठ राजकुमार की तरह सभी गुणों से युक्त थे, असीम वैभव के बीच भी उन्हें लगा कि सच्चा सुख सिर्फ साधना सेवा,अपरिग्रह में है। तब मात्र 32 वर्ष की युवावस्था में वे गृह त्याग करके दिगंबर संत बन गए। उन्होने लगातार 12 वर्ष तक सारे देश में कठिन तपस्या की, वे जंगलों, श्मशानों में हिंसक पशुओं के मध्य निडरता से अकेले भ्रमण करते रहे।
12 वर्ष के तपस्या काल में उन्होंने मात्र 365 दिन भोजन ग्रहण किया,यानि कि हर बारहवें दिन भोजन, यानि 11 दिन तक पानी भी नहीं पिया। त्याग, तपस्या, साधना, करुणा के माध्यम से जन-जन को दुनिया भर के दुखों से सह? ही मुक्ति पाने का पथ वीर प्रभु ने बताया।
उनके तपस्या काल में उनका साक्षात्कार हिंसक सिंह,चीते,अजगर, डाकू लुटेरे, शिकारी और दानवों से निरंतर हुआ, उनके महान व्यक्तित्व से प्रभावित होकर सभी हिंसक दुराचारियों ने अपनी व्यसनों को त्यागा व वे श्रेष्ठ प्राणी बन गए। उनके तपस चरण काल के ऐसे हजारों प्रेरक संस्मरण हमें विभिन्न पुराणों में मिलते हैं।
कैवल्य ज्ञान प्राप्ति के पश्चात राजगृही के विपुला चल पर्वत पर भगवान की प्रथम समोसारण सभा आयोजित हुई। इसको इंद्र के आदेश से कुबेर ने असीम वैभव से सुसज्जित किया,समवसरण में सारी सृष्टि के जीव धारी उपस्थित थे।
लंबे समय तक मौन रहने के पश्चात उनके प्रथम श्रेष्ठ शिष्य गौतम गणधर स्वामी के आने से ही उनकी विश्व कल्याणी दिव्य वाणी विस्तारित हुई। कहते हैं उनकी देशना विश्व के सभी प्राणी अपनी अपनी भाषा में सहज जान लेते थे।
अगले 30 वर्षों तक वीर प्रभु ने समग्र मानवता को जैन दर्शन के पावन उपदेशों से लाभान्वित किया व सबके कल्याण का पथ बताया।
 कार्तिक बदी अमावस्या के दिन आज से 2552 वर्ष पूर्व उनको मोक्ष पद मिला। जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर वे सिद्ध शिला पर प्रतिष्ठित हो गए जो हर प्राणी का अंतिम लक्ष्य है।
गौतम गणधर स्वामी को जब प्रभु के मोक्ष गमन का समाचार मिला तो वह शोकाकुल हो गए,30 वर्ष तक प्रभु की छाया सदृश्य रहने वाले उनके अनुरागी शिष्य को, प्रभुवाणी सुनाई पडी, ‘प्रिय गौतम, शोक व मोह दोनों ही त्याज्य हैं, मैं तो सदैव तुम्हारे साथ हूं, एक पथ प्रदर्शक की तरह।Ó तब गौतम स्वामी मोह मूर्च्छा से निकले और उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई जो मोक्ष महल जाने का सोपान है।
पावापुरी बिहार में प्रभु का अंतिम संस्कार किया गया, उनके लाखों भक्तों ने उस स्थान की पावन धूल को अपने दिव्य पवित्र स्थान में ले जाने के लिए एकत्र किया, फल स्वरुप उनके अंतिम संस्कार स्थल पर  एक विशाल सरोवर स्वत: बन गया,जहां वर्ष भर सुंदर लाल कमल खिले रहते हैं। वहीं सरोवर के मध्य में एक भव्य मंदिर में प्रभु के चरण स्थापित कर जन-जन का पूज्य तीर्थ स्थल बन गया। आज भी दीपावली के दिन हजारों लाखों भक्त उषा बेला में पावापुरी में जाकर प्रभु के चरणों में निर्वाण लाडू अर्पित कर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
राजस्थान में भी श्री महावीर जी में एक ऐसा अनुपम तीर्थ स्थल है जहां खेत में टीले से निकली भगवान महावीर की चमत्कारी मूर्ति सैकड़ों सालों से स्थापित है, जिसके दर्शन मात्र से ही असीम शांति व आनंद की प्राप्ति होती है, व मन के सारे कलुष, विकार, अवसाद स्वत: समाप्त हो जाते हैं। यहाँ लाखों तीर्थयात्री हर वर्ष दर्शन करने आते हैं।
भगवान महावीर जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर है, जिनका जीवन स्वयं प्रेरक व पथ प्रदर्शक है। एक वस्त्र भी उनकी देह पर नहीं रहा, भीषण गर्मी भयंकर शीत या घनघोर वर्षा , कैसा भी मौसम हो वे सदैव दिगंबर मुद्रा में रहे, सहज रहे, चलते रहे, नंगे पांव।
भोजन लेने के लिए  पाणीपात्र ही  माध्यम था, खड़े होकर आहार लेना वह भी तब,जब बनाने वाले पूर्ण शुद्ध तरीके से भोजन बनाएं व अपने द्वार पर आकर भक्तिपूर्वक उन्हें आमंत्रित करें, साथ ही उनके मन में ली गई प्रतिज्ञा भी पूरी हो। बालों को भी अपने दोनों हाथों से उखाडऩे वाले महावीर के अनुयाई संत आज भी उनके जीवन दर्शन को अपनाते हैं। जीवन भर, एक स्थान से दूसरे स्थान चलते जाना, किसी आश्रम विशेष के प्रति मोह उत्पन्न नहीं करता। धरा का हर स्थल उन्हें अनुरागी है व संसार के सभी प्राणी उनके लिए प्रिय हैं।
दीपावली के पावन दिन पर उषा बेला में प्रभु के श्री चरणों में अपनी श्रद्धा निर्वाण लाडू चढ़ाकर व दीप जलाकर व्यक्त की जाती है। कार्तिक वदी अमावस्या की शाम सभी अपने स्थान पर दीपक जलाकर पूज्य गौतम स्वामी जी के कैवल्य ज्ञान प्राप्ति का आनंद मनाते हैं। विश्व भर में सभी जैन अनुयाई दीपावली पर्व मानते हैं, जैन पटाखे नहीं फोड़ते, बम नहीं दागते ताकि छोटे छोटे जंतुओं, प्राणियों के जीवन की रक्षा की जा सके।
 यह पर्व विश्व भर में विश्व भर के लोगों के द्वारा भी मनाया जाता है क्योंकि इसमें प्रेम है, अनुराग है, स्नेह है करुणा है, सेवा है, मैत्री है वात्सल्य है, व विश्व बंधुत्व भी समाहित है।
संसार भर में असीम आलोक  सदैव प्रसारित रहे व हर प्राणी के मन  सदैव आलोकित रहें, सभी के मन से भय, वेदना, आशंका क्रोध, काम,हिंसा, प्रतिशोध का तिमिर समाप्त हो व नेह, प्रेम, सेवा, करुणा, मैत्री मुदिता, सहयोग की दिव्य ज्योति प्रज्ज्वलित रहे, इसी कामना के साथ ज्योति पर्व की हार्दिक बधाइयां। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *