
शरीर की सफाई हम दो तरह से कर सकते हैं, एक अंदरूनी और दूसरी बाहरी। शरीर की बाहरी सफाई के साथ साथ अंदरूनी सफाई भी बहुत जरूरी है। कुदरत ने हमारे शरीर की रचना इस प्रकार की है कि हमारे शरीर को विषैले तत्वों से खुद ब खुद निजात मिल जाती है जैसे शरीर में आंसू, पसीना, मलमूत्र का बाहर निकलना लेकिन ये सब हमारे शरीर से पर्याप्त मात्रा में टाक्सिंस को नहीं निकाल पाते और धीरे धीरे टाक्सिंस हमारे शरीर में बढ़ने लगते हैं जिस कारण शरीर में कई बीमारियां जन्म ले लेती हैं।
हम जो तमाम तरह के परिरक्षक (प्रिजवर्ड फूड)खाते हैं, जिस अशुद्ध वातावरण में सांस लेते हैं, उससे और उन्नत प्रौद्योगिकी के अधिक प्रयोग ने हमारे शरीर को अंदर ही अंदर खोखला कर दिया है। स्ट्रेस हारमोन्स और चिंताग्रस्त रहने से हमारे अंदर नकारात्मक भावनाएं बढ़ गई हैं जिससे कई तरह की बीमारियां हमारी परेशानी का कारण बन गई हैं। इन्हीं सभी कारणों से हमारा शरीर ठीक से टाक्सिन्स को प्राकृतिक रूप से बाहर नहीं निकाल पाता और नैचुरल डिटॉक्स सिस्टम में बाधा आ जाती है।
टाक्सिंस का जमाव हमारी कोशिकाओं की संरचना व कार्य क्षमता को प्रभावित करता है जिससे थकान, कब्ज, सरवाइकल, माइग्रेन, गैस, त्वचा रोग आदि बहुत छोटी उम्र में होने लगते हैं। अच्छी सेहत और ऊर्जा के लिए जरूरी है कि हम नियमित तौर पर शरीर की सफाई करें और सजग रहें। हमें प्रयास कर आर्गेनिक फूड(जैविक खाद्य पदार्थ) लेना चाहिए। साफ सफाई रखनी चाहिए, पानी शुद्ध पीना चाहिए। जिन खाद्य पदार्थों में प्रिजर्वेटिव डलें हों, उनका सेवन नहीं करना चाहिए यानी डिब्बा बंद, पैकेट बंद खाद्य पदार्थों का सेवन कम से कम करना चाहिए। नियमित रूप से योग,ध्यान,प्राणायाम व शुद्धि क्रियाएं किसी योग विशेषज्ञ के निरीक्षण में करनी चाहिए।
डिटोक्सिफिकेशन से शरीर को आराम व पोषण मिलता है। सप्ताह में एक दिन उपवास रखें जिससे लगातार काम करने वाले अंगों जैसे लिवर, गॉल ब्लैडर, किडनी व पाचन प्रणाली को आराम मिल सके। क्लीनिंग या डिटोक्सिफिकेशन किसी एक बीमारी या उसके लक्षणों के इलाज पर नहीं बल्कि शरीर के विभिन्न अंगों में संतुलन बनाते हुए शरीर को स्वयं बीमारी से मुक्त करने के लिए प्रेरित करती है। यह शरीर में जमा टाक्सिन्स को बाहर निकाल कर शरीर को स्वस्थ बनाती है। ऐसा नहीं है कि आपको क्लीनिंग थेरेपी के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़े। ये हम अपने घर या रसोई में उपलब्ध चीजों से भी कर सकते हैं। इसके लिए आपको किसी डाक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं। केवल थो़ड़ा सा ध्यान देकर हम स्वयं शरीर को अंदरूनी रूप से शुद्ध कर सकते हैं।
अपने शरीर को प्यार करें, उसकी सुनें, उससे बातें करें ताकि हम समझ सकें हमारे शरीर की मांग क्या है। शरीर को वो वाहन समझें जो आपको अंत तक सुरक्षित रखेगा। इसलिए समय समय पर उसकी डेंटिंग पेंटिंग जरूरी है। जिस कुदरत ने ये खूबसूरत शरीर दिया है उसकी अवहेलना न करें और भगवान द्वारा दी बुद्धि का प्रयोग कर उस नियामत शरीर को बचा सकें।
समय समय पर क्लीनिंग कर शरीर में जमा टाक्सिन्स बाहर निकलते हैं और शरीर के अंग सुचारू रूप से काम करते हैं। जिस दिन डिटॉक्स करें, उस दिन लिक्विड डाइट लें जैसे नींबू पानी, छाछ, ताजे फलों का रस, सब्जियों का सूप, हल्की पतली खिचड़ी, दलिया आदि। योग, प्राणायाम से अपने आपको डिटाक्स कर सकते हैं। शंख प्रक्षालन, एनिमा व शुद्धि क्रियाएं जैसे कुंजल, जलनेति,रबड़ नेति, नेत्रा स्नान आदि से अपने आपको निरोगी बना सकते हैं। कुछ लोगों पर किए गए प्रयोग से सामने आया है (सिद्ध हुआ है) कि माह में एक बार कुंजल, हफ्ते में एक बार एनिमा व जल नेति रबड़ नेति, नेत्रा स्नान प्रतिदिन करने से आपको बहुत लाभ मिलेगा। आपका ऊर्जा स्तर बढ़ेगा, थकान, कमजोरी कम होगी। सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास होगा। इसलिए सच कहा है ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’। इसका ध्यान रख जीने का पूरा मजा लें।
हम जो तमाम तरह के परिरक्षक (प्रिजवर्ड फूड)खाते हैं, जिस अशुद्ध वातावरण में सांस लेते हैं, उससे और उन्नत प्रौद्योगिकी के अधिक प्रयोग ने हमारे शरीर को अंदर ही अंदर खोखला कर दिया है। स्ट्रेस हारमोन्स और चिंताग्रस्त रहने से हमारे अंदर नकारात्मक भावनाएं बढ़ गई हैं जिससे कई तरह की बीमारियां हमारी परेशानी का कारण बन गई हैं। इन्हीं सभी कारणों से हमारा शरीर ठीक से टाक्सिन्स को प्राकृतिक रूप से बाहर नहीं निकाल पाता और नैचुरल डिटॉक्स सिस्टम में बाधा आ जाती है।
टाक्सिंस का जमाव हमारी कोशिकाओं की संरचना व कार्य क्षमता को प्रभावित करता है जिससे थकान, कब्ज, सरवाइकल, माइग्रेन, गैस, त्वचा रोग आदि बहुत छोटी उम्र में होने लगते हैं। अच्छी सेहत और ऊर्जा के लिए जरूरी है कि हम नियमित तौर पर शरीर की सफाई करें और सजग रहें। हमें प्रयास कर आर्गेनिक फूड(जैविक खाद्य पदार्थ) लेना चाहिए। साफ सफाई रखनी चाहिए, पानी शुद्ध पीना चाहिए। जिन खाद्य पदार्थों में प्रिजर्वेटिव डलें हों, उनका सेवन नहीं करना चाहिए यानी डिब्बा बंद, पैकेट बंद खाद्य पदार्थों का सेवन कम से कम करना चाहिए। नियमित रूप से योग,ध्यान,प्राणायाम व शुद्धि क्रियाएं किसी योग विशेषज्ञ के निरीक्षण में करनी चाहिए।
डिटोक्सिफिकेशन से शरीर को आराम व पोषण मिलता है। सप्ताह में एक दिन उपवास रखें जिससे लगातार काम करने वाले अंगों जैसे लिवर, गॉल ब्लैडर, किडनी व पाचन प्रणाली को आराम मिल सके। क्लीनिंग या डिटोक्सिफिकेशन किसी एक बीमारी या उसके लक्षणों के इलाज पर नहीं बल्कि शरीर के विभिन्न अंगों में संतुलन बनाते हुए शरीर को स्वयं बीमारी से मुक्त करने के लिए प्रेरित करती है। यह शरीर में जमा टाक्सिन्स को बाहर निकाल कर शरीर को स्वस्थ बनाती है। ऐसा नहीं है कि आपको क्लीनिंग थेरेपी के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़े। ये हम अपने घर या रसोई में उपलब्ध चीजों से भी कर सकते हैं। इसके लिए आपको किसी डाक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं। केवल थो़ड़ा सा ध्यान देकर हम स्वयं शरीर को अंदरूनी रूप से शुद्ध कर सकते हैं।
अपने शरीर को प्यार करें, उसकी सुनें, उससे बातें करें ताकि हम समझ सकें हमारे शरीर की मांग क्या है। शरीर को वो वाहन समझें जो आपको अंत तक सुरक्षित रखेगा। इसलिए समय समय पर उसकी डेंटिंग पेंटिंग जरूरी है। जिस कुदरत ने ये खूबसूरत शरीर दिया है उसकी अवहेलना न करें और भगवान द्वारा दी बुद्धि का प्रयोग कर उस नियामत शरीर को बचा सकें।
समय समय पर क्लीनिंग कर शरीर में जमा टाक्सिन्स बाहर निकलते हैं और शरीर के अंग सुचारू रूप से काम करते हैं। जिस दिन डिटॉक्स करें, उस दिन लिक्विड डाइट लें जैसे नींबू पानी, छाछ, ताजे फलों का रस, सब्जियों का सूप, हल्की पतली खिचड़ी, दलिया आदि। योग, प्राणायाम से अपने आपको डिटाक्स कर सकते हैं। शंख प्रक्षालन, एनिमा व शुद्धि क्रियाएं जैसे कुंजल, जलनेति,रबड़ नेति, नेत्रा स्नान आदि से अपने आपको निरोगी बना सकते हैं। कुछ लोगों पर किए गए प्रयोग से सामने आया है (सिद्ध हुआ है) कि माह में एक बार कुंजल, हफ्ते में एक बार एनिमा व जल नेति रबड़ नेति, नेत्रा स्नान प्रतिदिन करने से आपको बहुत लाभ मिलेगा। आपका ऊर्जा स्तर बढ़ेगा, थकान, कमजोरी कम होगी। सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास होगा। इसलिए सच कहा है ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’। इसका ध्यान रख जीने का पूरा मजा लें।