भारत के तांबा उद्योग ने सीईपीए के तहत यूएई से बढ़ते आयात पर चिंता जताई

0
dfredsxzr5

नयी दिल्ली, दो अक्टूबर (भाषा) भारतीय प्राथमिक तांबा उत्पादक संघ (आईपीसीपीए) ने भारत-यूएई व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (सीईपीए) के तहत संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से तांबे की छड़ों के बढ़ते आयात पर चिंता जाहिर की और आगाह किया कि इस प्रवृत्ति से तांबा शोधन में घरेलू निवेश को खतरा है।

भारतीय उत्पादकों में 1996 से हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड, हिंडाल्को इंडस्ट्रीज, वेदांता लिमिटेड और कच्छ कॉपर लिमिटेड (अदाणी समूह) ने 12.5 लाख टन की घरेलू परिष्कृत तांबा उत्पादन क्षमता का निर्माण किया है जबकि वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अनुमानित मांग 85 लाख टन है। उद्योग की आने वाले दशक में क्षमता का और विस्तार करने की योजना है।

आईपीसीपीए ने वाणिज्य मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा कि सीईपीए इन योजनाओं में ‘‘एक बड़ी बाधा’’ बन रहा है क्योंकि यूएई तांबे के खनन, प्रगलन या शोधन का कोई बुनियादी ढांचा न होने के बावजूद भारत को तांबे की छड़ें निर्यात कर रहा है और उसका मूल्यवर्धन नगण्य है।

आईपीसीपीए के अनुसार, यूएई की कंपनियां केवल आयातित तांबे के कैथोड को छड़ों में परिवर्तित करती हैं जिससे शुल्क वर्गीकरण तो बदल जाता है लेकिन वास्तविक मूल्य में नगण्य वृद्धि होती है।

संघ ने भारत-आसियान और भारत-जापान जैसे अन्य मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के तहत इसी तरह के रुझान का हवाला देते हुए आगाह किया और कहा, ‘‘हम सीईपीए के तहत आयात में स्पष्ट वृद्धि देख रहे हैं और शुल्कों को शून्य पर लाने के बाद इसमें और वृद्धि की उम्मीद है।’’

आईपीसीपीए ने सीईपीए के तहत तांबे की छड़ों के लिए 85,000 टन के उच्च शुल्क दर कोटा (टीआरक्यू) की भी आलोचना की और कहा कि यह अत्यधिक है तथा इसमें घरेलू उत्पादकों के लिए सुरक्षात्मक मूल्य का अभाव है।

गौरतलब है कि तांबे की छड़ों पर आयात शुल्क अप्रैल 2025 तक दो प्रतिशत था और मई 2025 से इसे घटाकर एक प्रतिशत कर दिया गया है। मई 2026 में इसे और घटाकर शून्य कर दिया जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *