बचत उत्सव के निहितार्थ

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरंभ से ही विजन और मिशन के तहत काम कर रहे हैं। यह भी स्पष्ट है कि उनके विजन और मिशन के केंद्र में आम जन, भारत और समूची मानवता है। वे जब भी कोई योजना लेकर आते हैं तब उस पर तार्किक स्पष्टता भी करते हैं कि यह योजना किस प्रकार सामान्य लोगों के जीवन में और राष्ट्र जीवन में बदलाव करने वाली है। प्रधानमंत्री के रूप में वे लालकिले की प्राचीर से अब तक 12 बार देश को संबोधित कर चुके हैं। अपने प्रत्येक संबोधन में वे जनकल्याणकारी योजनाओं का पिटारा लेकर आते हैं। सामान्य व्यक्ति को हर बार उत्सुकता रहती है कि इस बार प्रधानमंत्री हमारे लिए क्या योजना लेकर आ रहे हैं। यही कारण है कि उनके लंबे चलने वाले संबोधनों को भी करोड़ों लोग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एकाग्रचित होकर सुनते हैं। 15 अगस्त 2025 के संबोधन में लगभग 103 मिनट बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग 200 बार देश शब्द का प्रयोग किया, लगभग 100 बार भारत शब्द का और 18 बार राष्ट्र शब्द का। इसी प्रकार उन्होंने लगभग 22 बार आत्मनिर्भर शब्द का प्रयोग किया। इससे स्पष्ट है कि राष्ट्र के रूप में भारत उनकी आत्मा का विषय है।

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के कुछ समय बाद ही उन्होंने मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया व स्किल इंडिया जैसी विभिन्न योजनाओं को जन आंदोलन का रूप दिया। तदुपरांत वे आत्मनिर्भर भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़े। वैश्विक महामारी कोरोना ने भारत सहित विश्व के विभिन्न देशों को अनेक चुनौतियों में डाल दिया। ऐसे में प्रधानमंत्री लगातार स्वदेशी और आत्मनिर्भरता हेतु प्रयास कर रहे थे। 15 अगस्त 2025 के अपने संबोधन में उन्होंने कहा एक राष्ट्र के लिए आत्म सम्मान की सबसे बड़ी कसौटी आज भी उसकी आत्मनिर्भरता है। विकसित भारत का आधार भी है- आत्मनिर्भर भारत… आत्मनिर्भरता का नाता सिर्फ आयात और निर्यात, रुपया,पैसा, पाउंड, डॉलर यहां तक सीमित नहीं है। आत्मनिर्भरता का नाता हमारे सामर्थ्य से जुड़ा हुआ है। इसलिए हमारे सामर्थ्य को बचाए रखने, बनाए रखने और बढ़ाए रखने के लिए आत्मनिर्भर होना बहुत अनिवार्य है। सर्वविदित है कि भारत भिन्न-भिन्न रूपों में आत्मनिर्भर ही था लेकिन परतंत्रता के कालखंड ने कुटीर उद्योगों की हत्या कर दी। हम छोटी-छोटी चीजों के लिए भी दूसरे देशों पर निर्भर होते चले गए। स्वतंत्रता मिलने के बाद भी जिस गति और दृष्टि के साथ हमें आत्मनिर्भरता के लिए प्रयास करने चाहिएं थे, वह नहीं हुए। छोटे-छोटे उत्पाद जिन्हें हम तैयार कर सकते थे उनके लिए भी हमारा भरी धन विदेशों में जाता रहा। विगत कुछ समय से वैश्विक फलक पर प्रतिस्पर्धाएं बढ़ रही हैं। संपन्न देश मनमाने टैरिफ और योजनाओं से दूसरे देशों पर दबाव बनाते हैं, ऐसे में स्वदेशी और आत्मनिर्भरता बहुत आवश्यक है।
      बचत उत्सव का आरंभ तो कुछ वर्ष पहले उनके वोकल फार लोकल के मंत्र से ही हो गया था। उनके आवाह्न से खादी की बिक्री कई गुना बढ़ गई। मिट्टी के दीपक, झालर एवं सजावटी सामान बनाने वाले लोगों की कमाई भी कई गुना हो गई। क्योंकि विदेशी वस्तुएं अपने मूल्य और उपलब्धता में महंगी और पहुंच से बाहर होती हैं। यदि सामान्य व्यक्ति उनके विषय में सोचता है तो उसका बजट बिगड़ना स्वाभाविक है। ध्यातव्य है कि त्योहारी सीजन के आरंभ होने से पहले घी, पनीर, मक्खन, नमकीन, सूखे मेवे, आइसक्रीम, दवाइयां, कृषि उपकरण, कार व स्कूटर जैसे दैनिक उपयोग वाले सैकड़ों उत्पादों का सस्ता होना सामान्य व्यक्ति के घरेलू बजट के लिए बहुत बड़ी राहत है।

आयकर व जीएसटी सुधारों के बीच उन्होंने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि- नवरात्र के पहले दिन 22 सितंबर को सूर्योदय के साथ ही अगली पीढ़ी के जीएसटी सुधार लागू हो जाएंगे। इसके साथ ही देश में बचत उत्सव शुरू होने जा रहा है… लोग हर वह सामान खरीदें जो मेड इन इंडिया हो। देश के गरीब, मध्यम वर्ग, नए मध्यम वर्ग, युवा, किसान, महिलाएं , दुकानदार, व्यापारी, उद्यमी सभी को इस बचत उत्सव का फायदा होगा। यह भी सर्वविदित है कि आज भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में चौथे स्थान पर पहुंच गया है। ऐसे में हमें और आगे बढ़ने के लिए विभिन्न चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा। यदि अभी से ही सभी देशवासी स्वदेशी के साथ जुड़कर उत्पादन और उपयोग बढ़ाएंगे तो अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा। आज देश में लगातार स्टार्टअप बढ़ते जा रहे हैं। छोटे-छोटे व युवा उद्यमी अपने उत्पाद तैयार कर रहे हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्धता से इनकी खरीदारी भी आसान हुई है। हाल ही के आंकड़े बताते हैं कि जीएसटी कटौती से त्योहारी बिक्री 25 प्रतिशत तक बढ़ी है। बाजार में खपत बढ़ने से रोजगार में भी बढ़ोतरी हो रही है। त्योहारी सीजन में खाद्य तेल, वस्त्र- आभूषण, सज्जा के विभिन्न सामान, फ्रिज व टेलीविजन आदि अधिक खरीदे जाते हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और बाजारों में ये सामान खूब उपलब्ध हैं। विदेशी उत्पादों की तुलना में ये सस्ते हैं। ऊपर से जीएसटी घटने के कारण प्रत्येक व्यक्ति की खरीद क्षमता बढ़ी है।

 आशा की जा सकती है कि मेड इन इंडिया और कुटीर एवं लघु उद्योग में बने विभिन्न उत्पाद इस बचत उत्सव में लोगों के घरों तक पहुंचेंगे। इससे टैरिफ वार जैसी कारोबारी चुनौतियों से निपटने में भी मदद मिलेगी। आवश्यकता इस बात की भी है कि कुटीर एवं लघु उद्योग और स्वदेशी के अनुरूप बने उत्पाद गुणवत्ता और उत्कृष्टता में भी उत्तम हों। स्वदेशी और आत्मनिर्भरता विकसित भारत की राह में बहुत महत्वपूर्ण कदम है। नवरात्र से शुरू हुआ बचत उत्सव देश को आर्थिक रूप से विकसित होने में मदद करेगा।


डॉ.वेदप्रकाश
असिस्टेंट प्रोफेसर,
किरोड़ीमल कालेज,दिल्ली विश्वविद्यालय  

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