
अंधकार और प्रकाश, तम और ज्योति अर्थात् दीये और तूफान की लड़ाई बहुत पुरानी है। जब से यह सृष्टि बनी है आसुरी शक्तियों से सज्जनों की मतभिन्नता जारी है। सत्य और असत्य की लड़ाई में जीत हमेशा सत्य की होती है। यह बात अलग है कि कभी-कभी तमस के घने बादल वातावरण को इस तरह से ढक लेते हैं कि मन परेशान होने लगता है। मन की यह उलझन ही मानवीय व्यथा है। इस उलझन के रहते हमें अनेक बार प्रकाश की किरणें पास होते हुए भी दिखाई नहीं देती। दीपावली कुछ और नहीं, प्रकाश को अपने चहुँ ओर से अपने अंतस तक महसूस करने का नाम है।
क्या यह सत्य नहीं कि तमस कुछ और नहीं बल्कि प्रकाश की अनुपस्थिति ही है।
अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो, दीये के प्रकाशमान होते ही अंधकार ढ़ूंढ़े नहीं मिलता। जहाँ-जहाँ अंधकार है, वहाँ-वहाँ हमारी कमजोरी है। हम तमस को भगाने की बातें ही करते हैं जबकि जरूरत किसी को भगाने की नहीं, केवल स्वयं जागने की है। प्रकाश अपना प्रभाव अवश्य देता है। हाँ, अंधेरे आसानी से हार नहीं माना करते। हर युग में अंधेरों ने अपने साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान करने की पुरजोर कोशिशें की हैं। मायावी रावण से आततायी कंस तक, बर्बर विदेशी आक्रांताओं से गद्दार जयचंद, मीरजाफर और आज भारत को अराजकता में झोंकने के ख्वाब देखने वाले अंधेरों का ही विस्तार हैं। कभी-कभी संदेह होता है कि इनकी नाभि का अमृत सूखेगा या नहीं? कब और कैसे मुक्ति मिलेगी इन मायावी अंधेरों से।
अव्यवस्था को आतुर टूलकिट अपना फन फैलाए बैठा है। अर्थव्यवस्था में होता सुधार देख कुछ लोगों की छाती पर सांप रेंगने लगता है। वे यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि भारत तेजी से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अग्रसर है। ऐसे अंधेरे आतंकवाद, नक्सलवाद, माफिया, संगठित अपराध और टूलकिट के रूप में हावी हैं। तो केवल इसीलिए कि हम बंदरों की तरह अपनी आँख, कान, मुँह बंद किये बैठे हैं।
कल तक हम अपनी बहादुर सेना को हाथ-पांव बांधकर उसे सीमा पार के आतंकवाद रूपी अंधेरों से लड़ने की जिम्मेवारी सौंपते थे। लेकिन इस बार आपरेशन सिंदूर ने सेना को पूरी छूट दी इसी ने आतंकिस्तान को गहरी चोट दी है। भारत की यह असाधारण उपलब्धि महाशक्तिों को भी विस्मित कर रही है, इसलिए वे इसका महत्व कम करने के लिए लगातार झूठ की धुन बजाते रहे। जब वह अप्रभावी रही तो भारत का रास्ता रोकने के लिए ‘टैरिफ’ तमाशा आरंभ हुआ, जो भारत की कर्मठ, उत्साही और प्रतिभावान युवा शक्ति के समक्ष नकारा सिद्ध हो रहा है।
गब्बर सिंह टैक्स कहकर देश की व्यवस्था का मजाक उड़ाने वाले परेशान है कि जीएसटी की दरों में जबरदस्त कमी इस बार दिवाली को अपेक्षाकृत रोशन-रंगीन कर रही है। समाज को जातियों में बांटने तथा तुष्टिकरण की राजनीति जरूर अंधेरों को खाद पानी देती रही है लेकिन देश के भाग्य विधाता अर्थात जनता मौन, भयभीत, कर्तव्य विमूढ़ नहीं है। आज प्रबुद्ध भारतपुत्र सोशल मीडिया सहित हर प्लेटफार्म पर देशहित में अपनी आवाज बुलंद करने से नहीं चूकते हैं। हमारे युवा अपने हृदय में विराजित शक्ति स्वरूप श्रीराम के संदेश को सुनते-समझते हुए अपने परिवेश के हर अंधेरे के सर्वनाश के लिए देशप्रेम और संस्कृति की अलख जलाये हुए हैं।
लंबे समय से अंधकार के रूप में विदेशियों की घुसपैठ कायम रही। करोड़ों रोहिंग्या, बंगलादेशी घुसपैठियें भारत की छाती पर जहरीले नागों से रेंग रहे हैं। अपने अपराध कर्मों तथा जनसंख्या में असंतुलन उत्पन्न करने के लिए ये घुसपैठियें तरह-तरह के षडयंत्र रच रहे हैं। सेवा के नाम पर आस्थाओं का व्यापार जारी रहा। इस छदम् जाल में गरीब-मजबूर ही नहीं, पढ़े-लिखे भी भ्रमित होकर फंस रहे हैं। आदिवासी क्षेत्र से पंजाब और पूर्वोत्तर तक धर्मान्तरण जारी है। कश्मीर ने देश को कुछ राहत प्रदान की तो बंगाल डरा रहा है।
कुछ लोग अंधेरों की अंतहीन सूची में न्यायिक बाधा को भी शामिल करते हैं। ऐसा लगता है मानो न्यायपालिका सरकार के लगभग हर काम में बाधा उत्पन्न करना अपना प्रथम कर्तव्य समझती है। वह स्वयं विवादों की फाइल दशकों तक रोक सकती है लेकिन राज्यपाल को कुछ महीने रोकने की भी अनुमति नहीं दी जा सकती। देश के सभी विभाग से तत्काल कार्यवाही की आपेक्षा करने वाले अपने लिए कोई समय सीमा स्वीकार नहीं करते। निर्दोष तक को सजा दी जा सकती है, दोषी को बरी किया जा सकता लेकिन जब बात अपने साथी की हो तो जिम्मेवारी उस संसद पर डालते हैं, जिसके बनाये कानून को प्रतिबंधित करते हैं। केन्द्र से प्रांतों तक हर नियुक्ति निष्पक्ष, पारदर्शी चाहने वाले अपनों का चयन खुद करेंगे। आखिर यह कैसा न्याय है?
युवा शक्ति को नशे में डुबो देश के भविष्य को अंधेरों में धकेलने वाले हो या अर्थव्यवस्था को डुबोने वाले साईबर अपराधी, इनाम का झांसा देकर, ई-बैंकिग के माध्यम से धोखाधड़ी करने वाले अंधेरों को बलवान बने देख पीड़ा होती है।
स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता फैलाते टीवी चैनल, लिव-इन रिलेशन, लव-जेहाद, कन्या भ्रूण हत्या सहित अंधेरों के कई और रूप भी हैं क्योंकि मारीच की तरह भेष बदलना इन अंधेरों का स्वभाव है। सब कुछ खुली आँखों से देखने के बाद भी यदि हम सजग नहीं होते तो दोष दीये का नहीं, हमारा ही है जो उजालों का रास्ता रोके खड़े हैं जबकि अंधकार को नष्ट करने की पहली शर्त है अपने अंतस के तमस को सबसे पहले दूर करना। इस बार अपने घर, अपने मंदिर में दीपमाला करने से पहले हमें अपने मन-मंदिर में इन व ऐसे ही अन्य अंधेरों की खबर जरूर लेनी चाहिए वरना केवल रस्म अदायगी ही होगी दीपमाला।
अंधेरों के इस भ्रमजाल से निकाल भारत को परम वैभव से साक्षात्कार कराने वाले विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शताब्दी के उत्सवों के मध्य दीपावली के पंचपर्वो की श्रृंखला सत्ता नहीं- राष्ट्र प्रथम, परसंस्कृति नहीं, अपने पूर्वजों की अनुभव सिद्ध सबके हित की रक्षक भारतीय संस्कृति का दीया प्रकाशित करने का संकल्प प्रत्येक भारतपुत्र को लेना है। आओ हम सब उस सर्वशक्तिमान परम पिता परमात्मा से अपने परिवेश से अपने अंतर्तम तक के सभी अंधेरों से मुक्ति की प्रार्थना करें- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय।
डा. विनोद बब्बर
