
पति और पत्नी दोनों को सामंजस्यपूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहिए। अपने जीवनकाल में और मृत्यु के पश्चात अपनी सुरक्षा के बारे में समय रहते सोचना चाहिए। आज आपाधापी के समय दोनों ही कार्य करते हैं। अच्छा तो यही है कि एक-दूसरे के बैंक अकांऊट, बैंक लाकर, धन-सम्पत्ति, लेनदेन, इन्श्योरेंस पालिसी, शेयर आदि के बारे में दोनों ही को जानकारी होनी चाहिए। कई लड़कियों को उनके माता-पिता धन-सम्पत्ति देते हैं। उसका भी दोनों को पता रहना चाहिए। यदि दोनों को सारी जानकारी हो तो एक साथी के काल कवलित हो जाने पर दूसरे साथी को किसी तरह की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता।
यदि दोनों में ऐसा विश्वास व तालमेल नहीं होता तो एक-दूसरे के अनजान रह जाते हैं। सब बर्बाद हो जाता है। बहुत-सी धन-सम्पत्ति जो बेनामी होती है वह हाथ नहीं आती बल्कि निकल जाती है। इस तरह मेहनत की कमाई व्यर्थ चली जाती है। जिस परिवार को सुरक्षित रखने के लिए दिन-रात हाड़ तोड़ मेहनत की, वह उनके काम नहीं आ पाती। यह बहुत ही दुखद स्थिति होती है। ईश्वर न करे कभी एक्सीडेंट होकर अथवा अस्वस्थ होकर अस्पताल में भर्ती होना पड़े। यदि उन दोनों को बैंक अकाउंट, मेडिक्लेम पॉलिसी की जानकारी होगी तो कठिनाई नहीं होगी अन्यथा वे किस से सहायता की आशा करेंगे?
जहाँ पत्नी नौकरी नहीं करती, वहाँ पति का दायित्व और बढ़ जाता है। हर समझदार पति का यह कर्तव्य है कि वह अपने जीते-जी कुछ ऐसा कार्य करे जिससे उसकी पत्नी व बच्चे उसके जीवनकाल में तो सुख-सुविधाओं का भोग तो करें ही पर उसकी मृत्यु के बाद भी वे सुरक्षित रहें। यथासमय पत्नी व बच्चों की यथोचित सुरक्षा हेतु वसीयत तैयार करवा लेनी चाहिए ताकि इससे उसकी मृत्यु के उपरान्त उसकी विधवा पत्नी और बच्चों को उनका हक मिल सके। उनको दर बदर की ठोकरें न खानी पड़ें। ऐसा देखा गया है कि कई बार विधवा बहु को ससुराल वाले सम्पत्ति के लालच में परेशान करते हैं और घर तक से निकाल देते हैं। लालच में अन्धे होकर वे अपने पोते-पोतियों तक की परवाह नहीं करते। उन्हें धन-सम्पत्ति से बेदखल करके ठोकरें खाने के लिए छोड़ देते हैं।
ऐसी स्थिति में उस स्त्री के पास अपने मायके जाने का एकमात्र विकल्प बचता है। वहाँ भी भाई-भाभी इस महंगाई में अपना भरण-पोषण करने के लिए परेशान रहते हैं। ऐसी परिस्थिति में दो-तीन लोगों का अनावश्यक बोझ वे नहीं उठा पाते या उठाना ही नहीं चाहते। उन लोगों को अपने माता-पिता और बच्चों का खर्च उठाना पड़ता है। घर की सौ जिम्मेदारियॉं निभानी पड़ती हैं। अतः वहाँ पर उन लोगों को ठौर नहीं मिल पाता। उस स्थिति में महिला को समझ नहीं आता कि अब उसे क्या करना चाहिए?
जहाँ लड़की को सम्हालने के लिए उसके माता या पिता अथवा दोनों ही हैं, वहाँ पर बात अलग होती है। आज इक्कीसवीं सदी में बहुत-सी लड़कियाँ शिक्षा ग्रहण करके अपने पैरों पर खड़ी हैं। वे तो कुछ हद तक परिस्थितियों को झेल लेती हैं पर यदि किराए के मकान में रहना पड़ जाए तो फिर समस्याओं का अम्बार लग जाता है। बच्चे जब अपने जीवन में सेटल हो जाते हैं और तब यदि पति की मृत्यु होती है तो भी पत्नी के लिए सब कुछ इतना सरल नहीं होता।
आजकल बहुत से स्वार्थी बच्चे ऐसे हैं जो अपनी असहाय माँ के विषय में नहीं सोचते। यदि माँ के नाम धन-सम्पत्ति हो तो लालच के कारण उसे सम्मान दे दिया जाता है परन्तु यदि माँ के नाम पर कोई वसीयत नहीं की गई हो तो नालायक सब कुछ धोखे से हड़प कर लेते हैं। अपनी ही जननी को धक्के खाने के लिए बेसहारा छोड़ देते हैं। ये अपने माता-पिता के अहसानों को भी भूल जाते हैं। ऐसे बच्चे एहसान फरामोश होते हैं जो अपने माता-पिता के अहसानों को भी भूल जाते हैं।
इसी प्रकार यदि पत्नी की मृत्यु पहले हो जाती है तो पति की दुर्दशा हो जाती है। उसके अपने भाई-बहनों को उसकी देखभाल करने की फुर्सत नहीं होती। बच्चे छोटे हों तो उन्हें बड़ा करने की समस्या होती है। बच्चों की शादी हो जाने के उपरान्त वह उन पर बोझ बनने लगता है। यदि उसके पास अपनी धन-दौलत है तो फिर भी उसकी पूछ हो जाएगी अन्यथा उसका जीवन कष्टप्रद हो जाता है। कुछ बच्चे इतने नालायक होते हैं जो अपने वृद्ध माता या पिता को ओल्ड होम भेजने से परहेज नहीं करते।
पति-पत्नी दोनों ही यदि थोड़ी समझदारी दिखाएँ तो एक के जाने के बाद दूसरा असहाय अनुभव नहीं करता। इसलिए सभी सुधीजनों को उचित समय पर इस परेशानी से बचने का उपाय सोच लेना चाहिए। एक-दूसरे को अपना हमराज बनाना चाहिए। हर जानकारी दोनों को बिना पूर्वाग्रह के होनी चाहिए जिससे कभी किसी भी परेशानी में आर्थिक चोट न सहनी पड़े।
