स्वस्थ जीवन के लिए संजीवनी है प्रसन्नता

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किसी विद्वान ने कहा है कि संसार में वही व्यक्ति सबसे अधिक सुखी है, जो सदैव खुश रहता है। भौतिक स्पर्धा के इस युग में जिंदगी के तनाव, दबावों को कम करने और आनंदित जीवन जीने का गुरू मंत्रा भी यही है कि स्वयं को सदैव प्रसन्न रखो। आमतौर पर शक्ति का एक बहुत बड़ा भाग इस प्रयास में नष्ट हो जाता है कि उससे सब खुश रहें और उससे कोई नाराज न हो किंतु योगी, संत, महात्माओं की सोच के अनुसार व्यक्ति को स्वयं खुश रहना चाहिए।
जब व्यक्ति स्वाभाविक रूप से खुश रहेगा, तभी दूसरे मनुष्य खुशी का अनुभव कर सकेंगे। वही व्यक्ति खुश रह सकता है जो राग-द्वेष से मुक्त हो, किसी से बैर न रखता हो और न ही घृणा नफरत की भावना रखता हो।
मानव मन की दो अवस्थाएं होती हैं प्रफुल्लता और उदासीनता। खिले हुए और मुरझाए हुए फूल में जितना अंतर है उतना ही अंतर प्रफुल्लता और उदासीनता में है। कुछ लोगों की धारणा है कि यदि परिस्थितियां प्रसन्नतादायक हों, तभी प्रसन्न रहा जा सकता है, अन्यथा नहीं पर यह पूरा सच नहीं है। यदि चित को सदैव प्रसन्न रखने को स्वभाव बना लिया जाए तो अनेक समस्याओं से मुक्त रहा जा सकता है।
कई लोगों का स्वभाव रूखा, नीरस एवं उदास होता है। परिस्थिति अनुकूल हों या प्रतिकूल, वे हमेशा उदासी से भरे रहते है। भृकुटि तनी या चढ़ी रहती हैं। वही कुछ व्यक्ति अनुकूल परिस्थितियों में भी रूआंसे रहते हैं। कुछ व्यक्ति मुश्किलों में भी खुश रहते हैं। यह व्यक्ति के स्वभाव की देन है। 

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