ईश्वर की दूरदृष्टि : सृष्टि की हर रचना में संजोया गया है इंसान का भविष्य

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“जब हम सृष्टि को गहराई से देखते हैं, तो लगता है मानो किसी महान रचनाकार ने भविष्य को जानकर हर चीज़ पहले से ही बड़े संतुलन और सौंदर्य के साथ रच दी हो।”

प्रकृति : एक अनंत खज़ाना

मानव सभ्यता की हर उपलब्धि इस तथ्य की गवाही देती है कि ईश्वर ने पहले से ही हर वह साधन धरती पर रख दिया, जिसकी हमें आवश्यकता थी।

लोहे से लेकर सोने तक,

कोयले से लेकर तेल और गैस तक,

बिजली की चमक से लेकर परमाणु ऊर्जा तक –

सब कुछ पहले से ही धरती में छुपा दिया गया था। मनुष्य ने केवल उन्हें खोजकर उपयोग करना सीखा।

क्या यह संभव है कि यह सब संयोग मात्र  हो? या फिर यह किसी अदृश्य बुद्धि की अद्भुत योजना है जिसने मनुष्य के भविष्य को जानकर सब कुछ पहले से सहेजकर रखा?

तारों और ग्रहों का अद्भुत संतुलन

यदि हम आकाश की ओर देखें तो पाते हैं कि सूर्य, चंद्रमा, ग्रह और नक्षत्रों की दूरी किसी गणितीय समीकरण से कम नहीं।

पृथ्वी सूर्य से इतनी दूरी पर है कि न तो यह जलकर राख होती है और न ही बर्फ में ढक जाती है।

चंद्रमा की दूरी ऐसी है कि वह ज्वार-भाटा को नियंत्रित करके समुद्री जीवन को संतुलित रखता है।

पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, जिससे दिन और रात बनते हैं। दिन श्रम और कर्म के लिए है, तो रात विश्राम और ऊर्जा-संचय के लिए।

क्या यह सब इंसानों के जीवन को संतुलित रखने के लिए ही नहीं बनाया गया?

पेड़-पौधों की अद्भुत बुद्धिमत्ता

प्रकृति के छोटे-छोटे नियम भी इस गहरे रहस्य की ओर संकेत करते हैं कि ईश्वर ने हर संभावना को पहले से सोच-समझकर रचा है।

पतझड़ के मौसम में पेड़ों के पत्ते झड़ते हैं। यह केवल सूखने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि प्रकृति का एक अद्भुत विधान है। पेड़ पुराने पत्ते छोड़कर ऊर्जा बचाते हैं, ताकि आने वाले समय में फिर से नए जीवन को जन्म दे सकें। और जैसे ही गर्मियों का मौसम आता है, पेड़ों पर नई कोपलें और हरे-भरे पत्ते निकल आते हैं। यह केवल पेड़ की सजावट नहीं, बल्कि इंसान के लिए ईश्वर की योजना है। जलती धूप में यही पत्ते छांव बनकर थके हुए मुसाफ़िर को सुकून देते हैं और वातावरण का तापमान संतुलित रखते हैं।

इसी तरह, फलों की बनावट में भी वही दिव्य सोच दिखाई देती है। बड़े-बड़े वृक्षों पर छोटे-छोटे फल बनाए गए, ताकि उनके गिरने से किसी को चोट न पहुँचे। जबकि छोटे पौधों पर विशालकाय फल, जैसे कुम्हड़ा, तरबूज, पपीता आदि उगाए गए, ताकि वे आसानी से तोड़े जा सकें और मनुष्य के जीवन का हिस्सा बनें। यह सब संयोग नहीं, बल्कि प्रकृति के अद्भुत संतुलन और ईश्वर की असीम दूरदृष्टि का प्रमाण है।

फूलों की रंग-बिरंगी पंखुड़ियाँ केवल सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि मधुमक्खियों और तितलियों को आकर्षित करने के लिए बनी हैं, ताकि परागण हो और जीवन चक्र चलता रहे।

विज्ञान के नियम : जीवन का आधार

सृष्टि में हर वैज्ञानिक नियम कहीं न कहीं मानव जीवन को सुरक्षित और संतुलित रखने के लिए बनाया गया है।

गुरुत्वाकर्षण : यदि यह न होता तो पृथ्वी पर कुछ भी स्थिर नहीं रहता।

ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का चक्र : पेड़-पौधे कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जबकि इंसान इसका उल्टा करता है। यह संतुलन इतना अद्भुत है कि लगता है मानो कोई पहले से ही जीवन के समीकरण को जानता था।

पानी का गुण : 0°C पर जमना और 100°C पर उबलना जीवन को संभव बनाता है। यदि इसका जमने का बिंदु और होता, तो धरती पर जीवन असंभव हो जाता।

ध्वनि का नियम : वायु में कंपन ही संचार का आधार है। यदि यह नियम न होता तो न भाषा होती, न संगीत, न ही सभ्यता का विकास।

क्या यह सब मात्र संयोग है, या फिर किसी दिव्य योजना का हिस्सा?

मनुष्य की अनोखी पहचान

ईश्वर ने हर इंसान को विशिष्ट बनाया है।

हर चेहरे की बनावट अलग है।

हर व्यक्ति का फिंगरप्रिंट अद्वितीय है, ताकि पहचान में कोई भ्रम न हो।

आँखों की पुतलियों का पैटर्न भी अलग है, जिससे ‘आधुनिक बायोमेट्रिक तकनीक’ काम कर पाती है।

सोचिए! आधुनिक तकनीक जिस आधार पर पहचान करती है, वही आधार तो ईश्वर ने पहले से ही मनुष्य को देकर रखा था।

जीवन के चक्र की दिव्य योजना

बच्चा माँ के गर्भ में ठीक उतने ही समय (9 महीने) रहता है जितना उसके संपूर्ण विकास के लिए आवश्यक है।

माँ का दूध जन्म के बाद बच्चे की पहली दवा और आहार है।

मनुष्य को नींद की ज़रूरत इसलिए दी गई कि उसका शरीर खुद-ब-खुद रिपेयर और संतुलित होता रहे।

दुःख और सुख का अनुभव इसलिए है कि इंसान जीवन को गहराई से समझ सके।

हर नियम, हर चक्र, हर प्रक्रिया मानवता को जीवित और संतुलित रखने के लिए बनी है।

“प्रकृति केवल सुंदरता नहीं, बल्कि एक दिव्य विज्ञान है।”

ईश्वर और विज्ञान : पूरक संबंध

विज्ञान यह बताता है कि कोई घटना कैसे होती है, जबकि ईश्वर में आस्था यह बताती है कि वह क्यों होती है।

विज्ञान कहता है कि सूर्य पूर्व से निकलता है क्योंकि पृथ्वी घूमती है।

आस्था कहती है कि सूर्य जीवन का आधार है, इसलिए उसे ‘सूर्यदेव’ कहा गया।

दोनों मिलकर ही सत्य का पूर्ण चित्र प्रस्तुत करते हैं। केवल विज्ञान होगा तो जीवन मशीन बन जाएगा और केवल आस्था होगी तो अंधविश्वास। दोनों के संगम में ही संतुलन है।

सृष्टि : एक दिव्य ग्रंथ

यदि हम इस सृष्टि को देखें तो यह किसी दिव्य ग्रंथ से कम नहीं।

आकाश इसके अध्याय हैं।

पृथ्वी इसकी प्रस्तावना है।

प्रकृति इसकी कविताएँ हैं।

और विज्ञान उसकी भाषा है।

ईश्वर ने भविष्य जानकर सब कुछ पहले से इस धरती में रख दिया। मानव का कार्य है – उसे समझना, अपनाना और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना।

इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि,

विज्ञान, ईश्वर की महान योजना का ही अनावरण है।

हम जितना आगे बढ़ेंगे, उतना ही यह जान पाएंगे कि सृष्टि कितनी अद्भुत और गहरी है।

इन सब उदाहरणों को देखते हुए यही लगता है कि विज्ञान के सारे नियम, प्रकृति के सारे स्वरूप और ब्रह्मांड का पूरा ताना-बाना दरअसल ईश्वर की उसी दिव्य योजना का हिस्सा हैं, जो उन्होंने अपने बच्चों यानी हम इंसानों के लिए रचा है।

और यहीं आकर मन भावुक हो उठता है।

वास्तव में, इस अद्भुत योजना के आगे मानव केवल नतमस्तक होकर कह सकता है –

“धन्यवाद, हे सृष्टिकर्ता! आपने हमें यह अनुपम जीवन और यह सुंदर धरती दी।”

 

उमेश कुमार साहू

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