जीएचसीएल ने सस्ते चीनी आयात से मुनाफा कम होने के कारण डंपिंग रोधी शुल्क लगाने की मांग की

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नयी दिल्ली, दो अक्टूबर (भाषा) भारत की दूसरी सबसे बड़ी ‘सोडा ऐश’ उत्पादक कंपनी जीएचसीएल लिमिटेड ने सरकार से चीन और अन्य वैश्विक निर्यातकों से सोडा ऐश के आयात पर डंपिंग रोधी शुल्क लगाने का अनुरोध किया है क्योंकि सस्ते निर्यात से स्थानीय उत्पादकों का मुनाफा हो रहा है।

यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब आयात हिस्सेदारी ऐतिहासिक 15 प्रतिशत से करीब दोगुना होकर 25-26 प्रतिशत हो गई है। इससे भारत के सिंथेटिक ‘सोडा ऐश’ उद्योग पर दबाव बढ़ गया है जिसकी चीन, तुर्किये, अमेरिका और केन्या जैसे देशों में उपलब्ध कम लागत वाले प्राकृतिक भंडारों तक पहुंच नहीं है।

वैश्विक ‘सोडा ऐश’ मांग में भारत की हिस्सेदारी केवल छह प्रतिशत है। यह छह प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रही है जो वैश्विक औसत से काफी अधिक है।

जीएचसीएल के प्रबंध निदेशक आर. एस. जालान ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ हमने वैश्विक कंपनियों द्वारा की जा रही इस डंपिंग से सुरक्षा के लिए सरकार से भी संपर्क किया है और हम इस मामले में सरकार से मदद की मांग कर रहे हैं।’’

वैश्विक ‘सोडा ऐश’ उत्पादन क्षमता में चीन के 45 प्रतिशत के प्रभुत्व और हाल ही में आंतरिक मंगोलिया में एक करोड़ टन से अधिक उत्पादन की वृद्धि के कारण वैश्विक बाजार में अधिशेष की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

जीएचसीएल सहित घरेलू कंपनियों की गुहारों के बाद व्यापार उपचार महानिदेशालय (डीजीटीआर) आरोपों की जांच कर रहा है, जिसकी मौखिक सुनवाई इस महीने के अंत में पुनर्निर्धारित की गई है।

भारत ने ‘सोडा ऐश’ पर 20,108 रुपये प्रति टन के न्यूनतम आयात मूल्य (एमआईपी) को 31 दिसंबर तक बढ़ा दिया है, लेकिन जीएचसीएल के प्रबंध निदेशक ने इसे केवल ‘‘ थोड़ा सा लाभ’’ करार दिया क्योंकि एमआईपी से कम आयात लगातार जारी है। 2023 में पहली बार अधिसूचित इन प्रतिबंधों का उद्देश्य गलत मूल्य निर्धारण पर अंकुश लगाना है लेकिन अधिशेष-संचालित डंपिंग के खिलाफ ये कमजोर हैं।

जालान ने बताया कि चीन का ‘सोडा ऐश’ क्षेत्र 2023-24 में 10-18 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा जो वैश्विक वृद्धि दर तीन से चार प्रतिशत से कहीं अधिक है।

उन्होंने कहा, ‘‘ कुछ मात्रा चीन में सीमित हो गई है। हालांकि समय के साथ अगले एक-दो वर्षों में, यह क्षमता वैश्विक बाजार में समा जाएगी।’’

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