
मनुष्य सदियों से अदृश्य शक्तियों के रहस्य में उलझा हुआ है। आकाश, धरती और ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने की उसकी जिज्ञासा जितनी गहरी है, उतनी ही गहरी उसकी रुचि भूत-प्रेत और अलौकिक शक्तियों में भी रही है। चाहे वह भारत का ग्रामीण इलाका हो या किसी विकसित देश का आधुनिक नगर, “भूत-प्रेत” का किस्सा हर जगह किसी न किसी रूप में सुनाई देता है। सवाल उठता है कि क्या ये सिर्फ़ लोककथाएँ और अंधविश्वास हैं या वास्तव में हमारे आसपास कुछ अदृश्य शक्तियाँ मौजूद हैं?
भूत-प्रेत की अवधारणा का उद्भव
भूत-प्रेत की अवधारणा मानव सभ्यता जितनी पुरानी है। प्राचीन काल में जब विज्ञान इतना विकसित नहीं हुआ था, तब प्राकृतिक घटनाओं को भी लोग अलौकिक मानते थे। बिजली कड़कना, तूफान आना या किसी की असामयिक मृत्यु। इन सबको लोग आत्माओं के क्रोध का परिणाम मानते थे। भारत के वेदों और पुराणों में भी “प्रेत” और “पिशाच” का उल्लेख मिलता है। माना जाता था कि असमय मृत्यु, अधूरी इच्छाओं या गलत कर्मों के कारण आत्माएँ शांति नहीं पातीं और प्रेत बनकर धरती पर भटकती हैं।
दुनिया भर में भूत-प्रेत की मान्यताएँ
भूतों का विचार केवल भारत तक सीमित नहीं है। चीन में इन्हें “हंग लिंग”, जापान में “यूरी”, यूरोप में “घोस्ट” और अरब देशों में “जिन्न” कहा जाता है। यूरोप के महल और किलों में भूत-प्रेत की कहानियाँ आज भी पर्यटकों को रोमांचित करती हैं। वहीं जापान की फिल्मों और कहानियों में सफेद कपड़े पहने लम्बे बालों वाली “भूतनी” का चित्रण आम है।
भारत में भी अनेक स्थान भूतहा कहे जाते हैं। राजस्थान का “भानगढ़ किला”, दिल्ली का “जमाली-कमाली मस्जिद”, और पश्चिम बंगाल का “डाउ हिल” ऐसी ही जगहों में गिने जाते हैं जहाँ लोगों ने अजीबो-गरीब अनुभव होने का दावा किया है।
भूत-प्रेत और विज्ञान
विज्ञान भूत-प्रेत की अवधारणा को अलग नज़रिये से देखता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भूत दिखने या महसूस होने की घटनाएँ अक्सर मनोवैज्ञानिक और भौतिक कारणों से जुड़ी होती हैं।
अंधेरे में मस्तिष्क अक्सर भ्रम पैदा करता है।
डर की स्थिति में व्यक्ति सामान्य आवाज़ों को भी अलौकिक समझ लेता है।
नींद में आने वाली “स्लीप पैरालिसिस” अवस्था में लोग छाया या आत्मा जैसी आकृति देखने लगते हैं।
कई पुराने भवनों में विद्युत-चुम्बकीय तरंगें भी इंसान के दिमाग पर असर डालती हैं और व्यक्ति को ऐसा लगता है मानो कोई अदृश्य शक्ति मौजूद हो।
इसके बावजूद, विज्ञान आज तक यह पूरी तरह सिद्ध नहीं कर पाया कि आत्मा और परलोक जैसी धारणाएँ केवल कल्पना हैं। यही कारण है कि रहस्य और रोमांच आज भी कायम है।
भूत-प्रेत की कहानियाँ और समाज
भारत के गाँवों में अब भी रात को सुनाई देने वाली अजीब आवाज़ों को लोग “चुड़ैल” या “प्रेत” मानते हैं। किसी पेड़ के नीचे बैठी औरत, या श्मशान के पास दिखने वाला साया लोगों को भयभीत कर देता है। ऐसी मान्यताएँ समाज में कई तरह की लोककथाओं का रूप ले चुकी हैं। दादी-नानी की कहानियों में “डायन”, “पिशाचिनी” और “वेतााल” की कथाएँ बच्चों को डराती भी हैं और रोमांचित भी।
लोककथाओं में भूतों को केवल डरावना ही नहीं, बल्कि कभी-कभी मददगार रूप में भी दिखाया गया है। जैसे कि लोककथाओं में “भूत” अपने प्रियजन को चेतावनी देने या दुश्मन से बचाने भी आते हैं।
भुतहा स्थानों का आकर्षण
आजकल ” भुतहा जगहों” का आकर्षण युवाओं और पर्यटकों के लिए रोमांचक अनुभव बन गया है। भानगढ़ किले को ही लीजिए। सरकारी आदेश से सूर्यास्त के बाद यहाँ प्रवेश वर्जित है। बावजूद इसके, लोग दिन में ही वहाँ घूमने जाते हैं और डरावनी अनुभूतियों की कहानियाँ सुनाते हैं। इसी तरह, विदेशों में “घोस्ट टूरिज़्म” एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है। कई लोग जानबूझकर भुतहा होटलों या घरों में ठहरते हैं ताकि अलौकिक अनुभव कर सकें।
भूत-प्रेत और आधुनिक मनोरंजन
सिनेमा और साहित्य ने भूत-प्रेत की छवि को और गहराई से जनमानस में बैठाया है। हॉलीवुड की “द कॉन्ज्यूरिंग”, “द रिंग”, “इन्सीडियस” जैसी फिल्में विश्वभर में हिट हुईं। वहीं बॉलीवुड की “भूत”, “राज़” और “स्त्री” जैसी फ़िल्में लोगों को डराने के साथ-साथ मनोरंजन भी करती हैं। डर और रोमांच का यह मेल आज भी लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय है।
आस्था बनाम अंधविश्वास
जहाँ एक ओर भूत-प्रेत की कहानियाँ लोगों के जीवन का हिस्सा हैं, वहीं दूसरी ओर यह अंधविश्वास को भी जन्म देती हैं। कई बार किसी बीमारी, मानसिक समस्या या दुर्घटना को “भूत-प्रेत का साया” मानकर लोग झाड़-फूंक और तांत्रिकों के चक्कर में पड़ जाते हैं। इसका खामियाज़ा गरीब और अशिक्षित वर्ग को ज़्यादा भुगतना पड़ता है जबकि असलियत में अधिकांश समस्याएँ मानसिक स्वास्थ्य, तनाव या शारीरिक रोग से जुड़ी होती हैं।
रहस्य अब भी जीवित है
भूत-प्रेत की दुनिया रोमांच और रहस्य से भरी है। विज्ञान ने कई सवालों का उत्तर दिया है लेकिन कई रहस्य अब भी अनसुलझे हैं। शायद यही कारण है कि इंसान की कल्पना और डर दोनों मिलकर इस विषय को जीवित रखते हैं।
भूत-प्रेत पर विश्वास करना या न करना व्यक्ति की अपनी सोच है पर इतना तय है कि इनकी कहानियाँ हमारी संस्कृति, साहित्य और लोकजीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी हैं। हो सकता है, भविष्य का विज्ञान इन रहस्यों से परदा हटा दे लेकिन तब तक भूत-प्रेत का रहस्य लोगों की जिज्ञासा और रोमांच को हमेशा ज़िंदा रखेगा।
उमेश कुमार साहू