महिलाओं में सफाई मेनिया

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यह सच है कि अति किसी भी बात की बुरी होती है चाहे कोई चीज कितनी ही फायदेमंद क्यों न हो, कितनी ही अच्छी क्यों न हो। यही बात सफाई की आदत पर भी लागू होती है। सफाई की चूंकि कोई सीमा नहीं होती इसलिए यह तो निर्धारित करना ही पड़ेगा कि सफाई कितनी और कितनी देर तक करनी चाहिए।
यह तथ्य मानकर चलना चाहिए कि जिंदगी ही अहम है। बाकी सब बातें उससे जुड़ी हुई हैं। उसे सुचारू सुंदरता से व्यवस्थित रूप में बिताने के लिए बाकी सब नियम धर्म कार्य आदि होते हैं लेकिन यह बात कितनी महिलाएं समझ पाती हैं? एक मेनिया के कारण अगर उनके घर में खुले पानी की व्यवस्था है तो वे सुबह से धुलाई में जुट जाती हैं और इस हद तक पानी बरसाती गिराती हैं कि आस-पड़ोस वालों का जीना दूभर कर देती हैं।
आज के उन्नत समय में व्यक्ति को अपनी प्रतिभा को चमकाने के लिए न जाने कितने एवेन्युज खुल गए हैं। ऐसे में चीजों को चमकाते रहने की आदत से बढ़कर बेवकूफी नहीं। पहले आप परिग्रह बढ़ाकर चीज पर चीज इकट्ठी करते जाइए। कहीं से कोई मूर्ति डेकोरेशन पीस, टेबल लैंप (पहले ही कई हैं) और न जाने क्या क्या अट्टम-शट्टम आड़-कबाड़। बस फिर लगे रहिए उन्हीं की सफाई में। पीतल की चीजों को कहीं ब्रासो नींबू आदि से चमकाया जा रहा है तो कहीं प्लास्टिक के फूल सर्फ में डुबोए जा रहे हैं। फर्श पर फिनायल के पोछे लग रहे हैं। कहीं डिटॉल से घर को अस्पताल बनाया जा रहा है।
जो महिलाएं नौकर अफोर्ड कर सकती हैं, वे घोर तनाव लेने लगी हैं नौकरों के पीछे। आजकल नौकर भला टोका टाकी कहां सहने वाले। नतीजन रोज नौकर बदल रहे हैं। आजकल बड़े शहरों में नौकर जो कुछ कर रहे हैं वह किसी से छिपा नहीं है लेकिन नौकर न हो तो सफाई कैसे हो और सफाई के लिए उन्हें घर के बैडरूम में भी घुसाया जाता है जहां से वे आसानी से किसी चीज पर हाथ साफ कर सकते हैं।
यहां यह तात्पर्य नहीं है कि सफाई की आदत होनी ही नहीं चाहिए या यह गलत आदत है लेकिन अपने शरीर, अपने सुख चैन को नजरअंदाज करके नहीं। सफाई हमारे लिए है, हम उसके लिए नहीं। जिंदगी भरपूर जीने के लिए मिलती है। ड्रजरी जिसमें सफाई भी शामिल है, महज एक मामूली सी आवश्यकता है। उसे तूल देना किसी भी प्रकार मुनासिब नहीं।
अगर शरीर अस्वस्थ है या मन किसी दिन आराम करने का है तो छोडि़ए सफाई का जुनून। अपने पर अत्याचार करना ठीक नहीं लेकिन यह याद रहे कि यह कभी कभी ही ठीक है। कहीं यह आदत न बना लंे क्योंकि जिस तरह सफाई मेनिया अवांछित है, उसी प्रकार गंदगी मेनिया भी।
सफाई की आदत एक अच्छी आदत है जो हर महिला में होनी चाहिए। इससे स्वयं प्रसन्नता मिलती है और दूसरों को भी। यह किसी भी प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली महिला की पहली जरूरत, पहली पहचान है लेकिन यही आदत जब मेनिया बन जाती है वह पहचान निगल जाती है क्योंकि तब उस महिला के पास व्यक्तित्व संवारने के लिए वक्त ही नहीं होगा। वह महज एक वैक्युम क्लीनर, एक सफाई करने वाला रोबोट बनकर रह जाएगी।

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