
एक भारत, अनेक रंग, और इन रंगों की भी अनेक छवियां, छवियों के अंदर बसी हुई एक से बढ़कर एक लोक-छवि । ऐसी ही लोकछवि की जीवंत प्रतिमूर्ति है छठ का पर्व। इस देश में त्योहार केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवनउत्सव हैं। ये प्रकृति से जोड़ते हैं, समाज को एक करते हैं और जीवन में संतुलन लाते हैं। छठ पूजा, न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है बल्कि सामाजिक समरसता, आत्म-संयम और पर्यावरण संरक्षण का भी पर्व है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश से चला यह पर्व अब दुनिया के कई देशों में दुनिया में भारतीय लोकजीवन की पहचान बन रहा है। आज छठ पूजा मुंबई, दिल्ली, दुबई, नेपाल, फिजी, गायना मॉरीशस, लंदन और न्यूयॉर्क तक पहुँच कर प्रवासी भारतीयों के लिए अपनी मिट्टी से जुड़ने का सेतु बन गई है।
वैदिक युग से लोक आस्था तक
छठ पूजा कोई नया नया सृजित लोक पर्व नहीं सूर्य उपासना का अत्यंत प्राचीन त्यौहार है । ऋग्वेद में सूर्य उपासना जीवनदाता, रोगनाशक और ऊर्जा का स्रोत कहा गया है तो महाभारत में द्रौपदी द्वारा सूर्य देव की आराधना का प्रसंग मिलता है, वहीं रामायण में भी उल्लेख है कि माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य पूजा की थी। लोक परंपरा के अनुसार छठी मइया संतान, स्वास्थ्य और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। कह सकते हैं कि छठ का पर्व वैदिक परंपरा, पुराणकथा और लोकआस्था तीनों का अद्भुत संगम है।
प्रतीक पर्व
छठ पूजा की मुख्य आराधना सूर्य उपासना है और सूर्य प्रकाश, ऊर्जा और जीवन के प्रतीक हैं। जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना केवल धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं अपितु आत्म-शुद्धि और कृतज्ञता की भावना है जो इस बात का प्रतीक है कि जीवन में उत्थान, पतन दोनों ही स्थितियों में ईश्वर का आभार व्यक्त करना चाहिए। डूबते सूर्य को अर्घ्य देना त्याग और स्वीकृति का प्रतीक है, तो उगते सूर्य को अर्घ्य देना नवजीवन और आशा का प्रतीक है ।
आध्यात्मिक महत्व
आध्यात्मिक दृष्टि से भी छठपर्व आत्म-अनुशासन और संयम की साधना है। उपवास, मौन, और पवित्रता के माध्यम से व्रती मन, वचन और कर्म की शुद्धि करते हैं। इस तरह छठ का व्रत भीतर से प्रकाशमान करता है।
छठ का यह व्रत लगातार चार दिन तक चलता है
पहला दिन: नहाय-खाय छठ के व्रत में पहले दिन व्रती स्नान के बाद सात्विक भोजन करते हैं। यह शारीरिक और मानसिक शुद्धि की शुरुआत होती है।
दूसरा दिन खरना : दूसरे दिन सूर्यास्त के बाद गुड़-चावल और दूध से बना प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इसके बाद व्रती रातभर उपवास रखते हैं।
तीसरा दिन संध्या अर्घ्य : तीसरे दिन व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। घाटों पर दीपों की पंक्तियाँ, लोकगीत और सामूहिक भक्ति का दृश्य अनुपम होता है।
चौथा दिन उषा अर्घ्य : अंतिम दिन प्रातःकाल उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत का समापन होता नवजागरण और नई ऊर्जा का प्रतीक है। इस तरह चार दिनों में छठ पर्व केवल पूजा नहीं बल्कि संयम, सेवा, और सहनशीलता की जीवनशैली बन जाता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक पक्ष :
छठ पूजा का सबसे सशक्त पक्ष है इसकी सामाजिक समरसता । जाति, धर्म, वर्ग या आर्थिक स्थिति से परे घाट पर सभी व्रती अमीर न गरीब, सब बराबर होते हैं। छठ पर्व सामाजिक समरसता, परिवारिक एकता और स्त्री-शक्ति के आदर का प्रतीक भी है। क्योंकि अधिकांश व्रती महिलाएँ होती हैं, जो परिवार और समाज के कल्याण के लिए तपस्या करती हैं।
लोकगीतों का पर्व:
छठ पर्व का सबसे आकर्षक पक्ष है इसका लोक व सांस्कृतिक रूप । यह लोकगीतों और पारंपरिक रीति-रिवाजों काअद्भुत उत्सव है। छठ का पर्व हमें अपनी लोक संस्कृति की ओर लेकर जाता है और आज भी “केलवा ज पतर पे उगले सूरज देव” जैसे गीत गाँव-गाँव गूंजते हैं। “उगS हो सूरज देव, अरघ दिहीं मइया के…” इस लोकगीत के अतिरिक्त भी “लाल हो गइल अंगना मइया के किरनवा… छठी मइया आइलें अंगना हमार, फलवा-फूलवा के सजीले थार और “पाहिले पहिल छठी मइया, घर में आइल बानी, सुख-शांति, समृद्धि के वरदान देहS मइया रानी। जैसे कितने ही लोकप्रिय गीत छठ पर गाए जाते हैं।
ठेकुआ, नारियल और केला जैसे प्रसाद इसकी लोक-संस्कृति की पहचान हैं। छठ पर्व में प्रयोग होने वाली अधिकांश सामग्री बाँस के सुप, दौरा, फल, सब्ज़ियाँ, मिट्टी के दीप, और प्रसाद स्थानीय स्तर पर तैयार होते हैं। इससे ग्रामीण और कारीगर वर्ग को लाभ होता है। यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करने का छठ का एक अलग पक्ष है।
पर्यावरणीय पक्ष
पर्यावरण की दृष्टि से भी छठ वैज्ञानिक पर्व है। इसमें प्लास्टिक या कृत्रिम वस्तुओं का प्रयोग वर्जित है। पूजा में प्रयुक्त सभी वस्तुएँ जैविक और प्राकृतिक होती हैं।
सूर्य उपासना के माध्यम से यह पर्व जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश — इन पंचतत्वों के प्रति आभार व्यक्त करता है। यह हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य में जीने का संदेश देता है।
आध्यात्मिक संदेश :
छठ पूजा केवल बाहरी पूजा नहीं, यह आंतरिक साधना का पर्व है। व्रती निर्जल रहकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो उनके भीतर की आस्था और धैर्य आते हैं। छठ को सूर्य के प्रकाश में खड़ा व्रती अपने भीतर के अंधकार को दूर करता है छठ का आध्यात्मिक संदेश ‘प्रकाश भीतर भी जलाओ, बाहर भी फैलाओ’ भी ग्रहण कर अपनी आत्मा को ऊर्जावान प्रकाशवान धैर्यवान और उज्ज्वल बनाता है।
सार रूप में कह सकते हैं कि छठ पूजा भारतीय संस्कृति की उस गहराई का प्रतीक है जहाँ धर्म केवल पूजा मात्र नहीं, जीवन विज्ञान है।
डॉ घनश्याम बादल
