
उत्तर प्रदेश में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले सभी राजनीतिक दल धीरे-धीरे अपनी जोर आजमाइश में जुटे हैं । जहां भाजपा के लोग सरकार की योजना का बखान लोगों के बीच करते हुए फिर सत्ता के तरफ निगाह बनाये है, वहीं सपा भी पीडीए के मायाजाल को फैलाकर वोट बैंक को मजबूत करने पर जुटी है. रही बात कांग्रेस की तो वह तो जानती है कि दिल्ली ही नहीं बल्कि लखनऊ भी बहुत दूर है लेकिन इसी बीच बीते 12 वर्षों से राजनीतिक वनवास काट रही बसपा की रैली ने एक बार फिर सर्दी शुरू होने के ठीक पहले राजनीतिक गालियारे में गर्मी पैदा कर दी है।
एक समय राष्ट्रीय राजनीति मे बहुजन समाज पार्टी की गूंज दूर-दूर तक सुनाई देती थी लेकिन गुजरते वक्त के साथ बसपा राष्ट्रीय राजनीति से जैसे गायब ही हो गई। समय के साथ पार्टी का प्रभाव धीरे-धीरे सिमटता गया। लोकसभा और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में लगातार झटकों ने बसपा को हाशिए पर ला खड़ा किया। बीते 9 अक्टूबर को लखनऊ में हुई मायावती की रैली में उमड़ी भारी भीड़ ने न सिर्फ पार्टी को नई ऊर्जा दी है बल्कि मायावती के आत्मविश्वास को भी फिर से जगा दिया है. यह भीड़ बताती है कि बसपा का जादू अब भी कायम है। अब यह देखना है कि यह भीड़ आगामी चुनावो में बसपा की राजनीतिक धारा को फिर से पुनर्जीवित करेंगी?
जिस तरह लख़नऊ की रैली में लोगों की ऐतिहासिक भीड़ देखने को मिली, इससे फिर से बसपा की उम्मीद जगी है कि बसपा और मायावती पर दलितों का विश्वास कम नहीं हुआ है। दलितों के लिए आज भी मायावती बड़ी नेता हैं। यही कारण है कि लखनऊ रैली में जिस उत्साह से दलित सम्मिलित हुए हैं, उसने मायावती को भी लंबे वक्त बाद किसी राजनीतिक मंच पर खुश होने का मौका दे दिया है। इतनी भीड़ देखकर जहां बसपा में ख़ुशी है, वहीं विपक्षी दलों समाजवादी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस में डर भी बन गया है।
लखनऊ की रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती ने खुद कहा कि ये जो लाखों-लाखों की संख्या में लोग आए हुए हैं, इनको यहां दूसरी पार्टियों की तरह दिहाड़ी पर नहीं लाया गया है बल्कि ये लोग अपने खून पसीने की कमाई के पैसों से ही खुद चलकर आये है। लखनऊ यह रैली बसपा के लिए सिर्फ एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं बल्कि एक संदेश भी था कि दलित समाज का भरोसा मायावती पर कायम है. वोट बैंक बिखरा, पार्टी की राजनीतिक जमीन भी खिसकती गई. बावजूद इसके मायावती की लोकप्रियता में गिरावट नहीं आई है. लखनऊ रैली में दलित समुदाय की भारी भागीदारी ने यह साफ कर दिया कि मायावती अब भी उनके लिए एक बड़ी नेता हैं. लंबे समय बाद किसी मंच पर मायावती को इस तरह आत्मविश्वास से भरे और उत्साहित अंदाज में बोलते देखना बसपा कार्यकर्ताओं के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है। रैली में मायावती ने जहां योगी सरकार का आभार जताया, वहीं समाजवादी पार्टी को दोगली बता कर राजनीतिक गलियारे में चर्चा तेज कर दी है लेकिन अखिलेश यादव ने पलटवार करते हुए इसे सांठगांठ बता दिया। पिछली बार बसपा ने 2016 में बड़ी रैली की थी। उस रैली के बाद दो लोकसभा और दो विधानसभा हुए लेकिन बसपा को कोई फायदा नहीं हुआ। 2022 में मात्र एक सीट से बसपा को संतोष करना पड़ा।
मायावती अपने संबोधन के दौरान अखिलेश यादव और सपा पर सीधे हमलावर नजर आईं और योगी सरकार की तारीफ भी की। बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि कांशीराम पार्क और अंबेडकर पार्क में आने वाले लोगों से मिले टिकटों का पैसा योगी सरकार ने सपा सरकार की तरह दबाकर नहीं रखा। मेरे आग्रह पर पार्क की मरम्मत पर पूरा खर्च किया गया जबकि सपा सरकार ने पार्क के रखरखाव की बजाय दूसरे मदों पर पैसा खर्च कर दिया था। मायावती ने भीम आर्मी के प्रमुख और नगीना से सांसद चंद्रशेखर पर भी निशाना साधा और कहा कि हमें कमजोर करने के लिए षड्यंत्र रचा जा रहा है। स्वार्थी और बिकाऊ किस्म के लोगों का इस्तेमाल करके कई संगठन बनवा दिए गए हैं। अब तो ये अंदर ही अंदर अपने वोट ट्रांसफर करवा कर इनके एक-दो उम्मीदवारों को जिता भी रहे हैं जिससे दलित वोट बांटे जा सकें।
मायावती ने मंच से अपने भतीजे आकाश आनन्द की तारीफ की और लोगों से आकाश का साथ देने की अपील भी की। मायावती ने सतीश चंद्र मिश्रा और उनके बेटे कपिल मिश्रा की भी तारीफ की। इकलौते विधायक उमाशंकर सिंह, प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल और जमील अख्तर की भी जमकर सराहना की और लोगों को भ्रमित न होने की बात कहते हुए उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने और 5वीं बार सरकार बनाने की भी बात करके कार्यकर्ताओं और समर्थकों में जोश भर दिया और सपा, भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों के षड्यंत्रों से सजग रहने की बात भी कही, इसके बाद सपा और भाजपा के अंदरखाने में भी चर्चा तेज हो गई है और लोग मायावती को सत्ता तक न पहुंचने के लिए हर जुगत में जुट गए है क्योंकि भीड़ को देखकर सभी राजनीतिक पंडित भी हैरान है जो बसपा के प्रति आज भी लोगों का प्रेम और समर्थन दिखाता है।
रैली में मायावती के मंच पर लगी कुर्सियां और उसपर बैठे नेताओं ने सपा की पीडीए वाली राजनीति को समाप्त करने का बड़ा संकेत दे दिया। अभी तक इस तरह के मंच पर मायावती की ही कुर्सी विशेष होती थी लेकिन 9 अक्टूबर 2025 की रैली में मंच पर ब्राह्मण, ठाकुर, पिछड़ा, दलित और मुस्लिम चेहरे को एक साथ कुर्सी मिली जिसे बसपा की सोच में एक बड़ा बदलाव का संकेत माना जा रहा है। यह पहली बार था जब मायावती की किसी रैली में मंच पर दूसरे नेताओं को भी बैठने की जगह दी गई। विदित हो कि बसपा 2012 में यूपी की सत्ता से बाहर हुई थी। इसके बाद से पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता गया। 2022 के चुनाव में सिर्फ एक विधानसभा सीट जीत पाई। वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता नहीं खुला। राजनीतिक जानकार मानते हैं बसपा को इस कार्यक्रम से बड़ी संजीवनी मिल सकती है। हालांकि राजनीति में कब क्या हो जाये कोई कुछ नहीं कह सकता लेकिन बसपा की रैली में उमड़ी भीड़ ने तो राजनीतिक गालियारे में चर्चा तेज कर दी है।