
नागपुर, दो अक्टूबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कहा कि हिंदू समाज की शक्ति और चरित्र एकता की गारंटी देते हैं। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि हिंदू समाज में ‘‘हम और वे’’ की अवधारणा कभी अस्तित्व में नहीं रही।
उन्होंने ‘स्वदेशी’ (देशीय संसाधनों का उपयोग) और ‘स्वावलंबन’ (आत्मनिर्भरता) का समर्थन करते हुए कहा कि पहलगाम हमले के बाद विभिन्न देशों द्वारा अपनाए गए रुख से भारत के साथ उनकी मित्रता के स्वरूप और प्रगाढ़ता का पता चला।
भागवत ने यहां रेशिमबाग में आरएसएस की वार्षिक विजयादशमी रैली को संबोधित करते हुए श्रीलंका, बांग्लादेश में अशांति और नेपाल में ‘जेन जेड’ प्रदर्शन पर चिंता जताते हुए कहा कि ये ‘‘तथाकथित क्रांतियां’’ अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं करतीं।
यह रैली ऐसे समय में हुई जब आरएसएस अपना शताब्दी वर्ष भी मना रहा है। आरएसएस की स्थापना 1925 में दशहरा के दिन नागपुर में महाराष्ट्र के चिकित्सक केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी।
भागवत ने कहा, ‘‘हिंदू समाज एक जिम्मेदार समाज है। यहां ‘हम’ और ‘वे’ का विचार कभी नहीं रहा। एक विभाजित समाज टिक नहीं सकता और हर व्यक्ति अपने आप में अनोखा है। आक्रमणकारी आए और गए, लेकिन हमारी जीवन-पद्धति कायम रही। हमारी अंतर्निहित सांस्कृतिक एकता ही हमारी शक्ति है।’’
उन्होंने कहा कि हिंदू समाज की शक्ति और चरित्र राष्ट्रीय एकता की गारंटी है।
भागवत ने महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनकी जयंती दो अक्टूबर को मनाई जाती है।
उन्होंने कहा, ‘‘स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी का योगदान अद्वितीय है, जबकि शास्त्री जी का जीवन और समय समर्पण तथा प्रतिबद्धता का प्रतीक है। वे व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र के ऐसे उदाहरण हैं जिनका हमें अनुकरण करना चाहिए।’’
संघ प्रमुख ने कहा कि प्रयागराज में महाकुंभ आस्था और एकता का प्रतीक था। उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का हवाला देते हुए कहा कि आतंकवादियों ने सीमा पार कर जम्मू कश्मीर के पहलगाम में धर्म पूछकर 26 भारतीयों की हत्या कर दी, जिस पर भारत ने कड़ा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि इस हमले से देश में भारी पीड़ा और आक्रोश फैला तथा भारत से इसका करारा जवाब दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘इस हमले से देश का हर व्यक्ति व्यथित हो गया। हमारी सरकार ने पूरी तैयारी की और इसका कड़ा जवाब दिया। इसके बाद नेतृत्व का दृढ़ संकल्प, हमारे सशस्त्र बलों का पराक्रम और समाज की एकता स्पष्ट रूप से दिखाई दी।’’
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि एक देश को मित्रों की जरूरत होती है लेकिन उसे अपने आसपास के माहौल के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए।
भागवत ने कहा, ‘‘हमारे दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं और आगे भी इन्हें बनाए रखेंगे, लेकिन जब बात हमारी सुरक्षा की आती है तो हमें ज़्यादा सावधान, ज़्यादा सतर्क और मजबूत होने की जरूरत है। पहलगाम हमले के बाद विभिन्न देशों के रुख से यह भी पता चला कि उनमें से कौन हमारे मित्र हैं और किस हद तक।’’
उन्होंने कहा कि नक्सलियों जैसे चरमपंथी तत्वों को सरकार की ओर से कार्रवाई का सामना करना पड़ा है, जबकि समाज ने भी उनके ‘‘खोखलेपन’’ को पहचानकर उनसे दूरी बना ली है।
उन्होंने यह भी कहा कि न्याय, विकास, सद्भावना, संवेदनशीलता और मजबूती सुनिश्चित करने वाली योजनाओं की कमी अक्सर चरमपंथी ताकतों के उदय का कारण बनती है।
भागवत ने कहा, ‘‘व्यवस्था की सुस्ती से परेशान लोग ऐसे चरमपंथी तत्वों से समर्थन लेने की कोशिश करते हैं। इसे रोकने के लिए सरकार और समाज को मिलकर ऐसी पहल करनी चाहिए जिससे लोगों का व्यवस्था में विश्वास बढ़े।’’
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका द्वारा अपनाई गई शुल्क (टैरिफ) व्यवस्था का ज़िक्र करते हुए भागवत ने कहा कि इसका असर सभी पर पड़ेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘निर्भरता कोई मजबूरी नहीं होनी चाहिए। दुनिया में एकता तो होनी ही चाहिए, लेकिन स्वदेशी और स्वावलंबन का कोई विकल्प नहीं है। अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक व्यापार और आर्थिक संबंध हमारी इच्छा के अनुसार होने चाहिए, न कि मजबूरी के अनुसार।’’
आरएसएस प्रमुख ने जलवायु परिवर्तन पर भी चिंता जतायी और कहा कि पिछले तीन-चार वर्षों से इसका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘हिमालय हमारी सुरक्षा दीवार है और इसकी रक्षा की जानी चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए विकास नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।’’
भागवत ने यह भी कहा कि श्रीलंका, बांग्लादेश में अशांति और नेपाल में हाल ही में हुआ ‘जेन जेड’ आंदोलन चिंता का विषय है क्योंकि ये देश भारत के पड़ोसी हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘लोकतांत्रिक तरीकों से बदलाव हो सकता है। तथाकथित क्रांतियां अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पातीं। ऐसी परिस्थितियों में बाहरी ताकतों को (अपना एजेंडा आगे बढ़ाने का) मौका मिल जाता है। हमें लगता है कि वे सिर्फ हमारे पड़ोसी ही नहीं बल्कि हमारे अपने हैं। वहां की स्थिति हमारे लिए चिंता का विषय है।’’
भागवत ने कहा कि आरएसएस को राजनीति में शामिल होने के लिए कहा गया था, लेकिन स्वयंसेवकों ने नियमित रूप से केवल एक ही काम किया: ‘‘हर स्थिति में शाखा चलाना।’’
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए।