लक्ष्मीजी को खुश करते हैं शुभ मांगलिक चिन्ह!

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अनेक मांगलिक चिन्ह हैं जो अनुष्ठानिक अवसरों पर बनाए जाते हैं, लेकिन उनमें कुछ प्रतीक ऐसे हैं जिन्हें शास्त्रों में मंगलकारी कहा गया है।  दीपक इस बात एवं आस्था का प्रतीक है कि हमारा जीवन प्रकाशमय, ज्ञानमय हो । दीपक की दिव्यता से अभिभूत होकर उसे देवत्व प्रदान कर अखंड ज्योति आराधना का आज भी प्रचलन है। भारतीय संस्कृति में प्रायः सभी धर्मों में दीपक को शुभ प्रतीक के रूप में मांगलिक कार्यों में उपयोग किया जाता है। छांदोग्योपनिषद में कहा गया है एक ज्योति है जो पृथ्वी की समस्त वस्तुओं से परे, भूलोक से परे, हर लोक में जगमगा रही है और यही वह दिव्य ज्योति है जो हमारे हृदय में विराजती है। इस प्रकार दीपक की ज्योति में परम पिता परमेश्वर की ज्योति की अनुभूति होती है।
दीपदान का कार्तिक मास में विशेष महत्त्व है, विशेष रूप से धन त्रयोदशी से भैयादूज तक। ये ही दीपोत्सव के पवित्र पंच पर्व हैं। इस दिन हर घर में दीपक जलाकर महालक्ष्मी का स्वागत किया जाता है। दीपक की ज्योति में साक्षात नारायण की ज्योति प्रतिबिंबित होती है, लक्ष्मीजी के हाथ में मौजूद कमल उनके स्वरूप का भी प्रतीक है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की उत्पत्ति कमल से हुई है और वे विष्णु भगवान की नाभि से उत्पन्न कमल पर ही विराजमान हैं। भगवान विष्णु को पद्मनाभ तथा लक्ष्मीजी को पद्माक्षी, पद्मनाभप्रिया कहा जाता है, इसलिए भक्तों को लक्ष्मीजी तथा विष्णु भगवान के करीब पहुंचाने में कमल की महत्ता अत्यधिक मानी जाती है। कमल हाथ में और कमल पर ही विराजमान होने के कारण लक्ष्मी को कमलासना भी कहा गया है। महाविद्या कमला के यंत्र में त्रिकोण एवं वृत्त के ऊपर अष्टदलकमल है। यह अष्टकमल लक्ष्मी को बेहद प्रिय है।  भारतीय संस्कृति में पूजा-उपासना और मांगलिक कार्यों में स्वस्तिक चिन्ह सबसे पहले अंकित किया जाता है। स्वस्ति शब्द का विच्छेद होता है स्अस्ति। इसमें सु उपसर्ग है तथा अस्ति अस धातु के वर्तमान काल के प्रथम काल का एकवचन शब्द है। सु का अर्थ शुभ, अच्छा, सुंदर तथा अस्ति का अर्थ है।
सौभाग्य के प्रतीक स्वस्तिक के बारे में शास्त्रों में कहा गया है। कि स्वस्ति क्षेत्र कायति कथयति इति स्वस्तिकः यानी स्वस्तिक स्वस्ति और कल्याण का सूचक है। ऋग्वेद में स्वस्ति के देवता सृष्टि देव अर्थात सूर्य का उल्लेख विस्तार से किया गया है जो चारों दिशाओं को आलोकित करते हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में स्वस्तिक को चारों दिशाओं के कल्याण का प्रतीक माना गया है। स्वस्तिक महालक्ष्मी का अतिप्रिय प्रतीक है। इसमें पवित्रता, आध्यात्मिकता और सात्विकता का भाव प्रकट होता है।

ॐ किसी भी शुभ कार्य, आराधना, ध्यान और आध्यात्मिक विकास के लिए ॐ का उपयोग युगों से होता आया है। अ+ ऊ+म् तीन अक्षरों से बने ॐ में अ जागृत अवस्था, ऊ स्वप्नावस्था तथा म् निद्रावस्था का प्रतीक माना जाता है। सृष्टि संचालन के तीन तत्व ताप, ध्वनि तथा प्रकाश ॐ से निकलते हैं। यह शब्द ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सृजनात्मक, रक्षात्मक तथा ध्वंसात्मक शक्तियों का प्रतीक है यानी सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं लय तीनों शक्तियों का प्रतीक यह ॐ महामंत्र असीम महिमामय है। ॐ का जप जीवन में जागृति के लिए अद्भुत मंत्र है। इसका जप करने से आत्मिक शांति मिलती है। व्यक्ति अपने भीतर की विराट शक्ति को जागृत करने में ॐ का उपयोग कर मनोवांछित फल पा सकता है। ॐ महालक्ष्मी की अलौकिक शक्ति का प्रतीक है, इसलिए इसे महालक्ष्मी मंत्र के आरंभ में ही जगह प्राप्त है।

चेतन चौहान
 

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