दिल्ली में 53 साल बाद कृत्रिम वर्षा का परीक्षण, लेकिन बारिश नहीं हुई
Focus News 29 October 2025 0
नयी दिल्ली, 29 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बीच 53 वर्षों के अंतराल के बाद मंगलवार को कृत्रिम वर्षा कराने का परीक्षण किया गया। हालांकि, मौसम विभाग ने दिल्ली में वर्षा के कोई संकेत दर्ज नहीं किए।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि दिल्ली सरकार ने आईआईटी-कानपुर के सहयोग से बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग, मयूर विहार और बादली सहित दिल्ली के कुछ हिस्सों में परीक्षण किए तथा अगले कुछ दिनों में इस तरह के और परीक्षण किए जाने की योजना है।
बाद में शाम को सरकार ने एक रिपोर्ट में कहा कि कृत्रिम वर्षा के परीक्षणों से उन स्थानों पर अति सूक्ष्म कणों में कमी लाने में मदद मिली। राजधानी में इस प्रक्रिया को अंजाम दिया गया, जबकि परिस्थितियां इसके लिए आदर्श नहीं थीं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दो बार बारिश दर्ज की गई। इसके तहत नोएडा में शाम चार बजे 0.1 मिलीमीटर बारिश और ग्रेटर नोएडा में शाम चार बजे 0.2 मिलीमीटर दर्ज हुई। आधिकारिक रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) निगरानी के लिए 20 स्थानों से विशेष रूप से अति सूक्ष्म कण पीएम 2.5 और पीएम 10 को लेकर आंकड़े एकत्र किए गए, जो कृत्रिम वर्षा से सीधे प्रभावित होंगे।
रिपोर्ट में कहा गया है, “कृत्रिम बारिश से पहले मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी में पीएम 2.5 का स्तर क्रमशः 221, 230 और 229 था, जो पहले परीक्षण के बाद घटकर क्रमशः 207, 206 और 203 रह गया। इसी प्रकार, पीएम 10 का स्तर 207, 206 और 209 था, जो घटकर क्रमशः मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी में 177, 163 और 177 रह गया।”
सरकार ने कहा कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और अन्य एजेंसियों द्वारा अनुमानित नमी की मात्रा 10 से 15 प्रतिशत के निम्न स्तर पर बनी रही, जो कृत्रिम बारिश के लिए आदर्श स्थिति नहीं है। हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि यह स्थिति कम नमी वाली परिस्थितियों में कृत्रिम बारिश सामग्री की प्रभाव क्षमता का आकलन करने के लिए उपयुक्त है।
पर्यावरणविदों ने दिल्ली सरकार के कृत्रिम बारिश परीक्षण को एक अल्पकालिक उपाय बताया है। उन्होंने कहा है कि इससे प्रदूषण अस्थायी रूप से कम हो सकता है, लेकिन यह राष्ट्रीय राजधानी की बिगड़ती वायु गुणवत्ता के मूल कारणों का समाधान करने में विफल रहेगा।
विपक्षी दल आम आदमी पार्टी (आप) ने इस कवायद का उपहास उड़ाते हुए इसे भगवान इंद्र (वर्षा के देवता) का श्रेय चुराने की रणनीति बताया, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने प्रदूषण संकट से निपटने में इस कदम की सराहना की।
एक बयान में ‘आप’ की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने कहा कि भाजपा सरकार ने ‘‘बारिश के नाम पर भी धोखाधड़ी की है।’’
आईएमडी के आंकड़ों का हवाला देते हुए भारद्वाज ने कहा, ‘‘भाजपा सरकार कृत्रिम वर्षा कराने का दावा कर रही है, लेकिन दिल्ली में कहीं भी एक बूंद भी नहीं गिरी।’’
कोंडली से विधायक कुलदीप कुमार और बुराड़ी से विधायक संजीव झा ने भी अपने निर्वाचन क्षेत्रों में बारिश नहीं होने की पुष्टि की।
भारद्वाज ने कहा, ‘‘लगता है इंद्रदेव भी भाजपा से नाराज हैं।’’ उन्होंने कहा कि मध्य दिल्ली में भी बारिश का नामोनिशान नहीं है।
आईएमडी के आंकड़ों से पता चलता है कि देर शाम तक दिल्ली में कोई बारिश दर्ज नहीं की गई।
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि उनकी सरकार कृत्रिम बारिश परीक्षण का उपयोग कर यह देखने की कोशिश कर रही है कि क्या इससे दिल्ली में प्रदूषण की समस्या का समाधान हो सकता है।
पहला परीक्षण मंगलवार दोपहर दो बजे तक पूरा हो गया और दूसरे परीक्षण के लिए विमान ने शाम लगभग चार बजे मेरठ से उड़ान भरी और एक घंटे में परीक्षण पूरा कर लिया।
पहले परीक्षण के तुरंत बाद सिरसा ने कहा कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-कानपुर का मानना है कि परीक्षण के 15 मिनट से चार घंटे के भीतर बारिश हो सकती है। मंत्री ने कहा, ‘‘हालांकि, बारिश ज्यादा नहीं होगी, क्योंकि आर्द्रता का स्तर केवल 15 से 20 प्रतिशत था।’’
परीक्षण कैसे किया गया इसका विवरण देते हुए सिरसा ने कहा कि इसने आठ झोंकों में रसायनों का छिड़काव किया। प्रत्येक झोंके में छिड़के गए रसायन का वजन दो से 2.5 किलोग्राम था और परीक्षण आधे घंटे तक चला। रसायन का छिड़काव करने का प्रत्येक झोंका दो से ढाई मिनट का था।
अधिकारियों के अनुसार, परीक्षण के दौरान कृत्रिम वर्षा कराने के लिए विमान से सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड यौगिक का छिड़काव किया गया। उन्होंने कहा कि मौसम की स्थिति के आधार पर 15 मिनट से 24 घंटे की अवधि में बारिश होने की संभावना है और रात में बाद में भी बारिश हो सकती है।
दूसरा परीक्षण भी दिन में बाद में बाहरी दिल्ली में किया गया और बादली जैसे इलाकों को कवर किया गया। परीक्षण के दौरान आठ झोंकों में रसायनों का छिड़काव किया गया।
सिरसा ने बताया कि अगले कुछ दिनों में ऐसे नौ से 10 परीक्षणों की योजना बनाई गई है। उन्होंने कहा कि चूंकि, आईएमडी ने सूचित किया है कि हवा की दिशा उत्तर की ओर है, इसलिए उस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को लक्षित किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘प्रदूषण कम करने के लिए सरकार द्वारा उठाया गया यह एक बड़ा कदम है। अगर परीक्षण सफल रहे, तो हम फरवरी तक एक दीर्घकालिक योजना तैयार करेंगे। हमें उम्मीद है कि अगर परीक्षण सफल रहा, तो प्रदूषण कम करने की दिशा में यह भारत में पहला ऐसा वैज्ञानिक कदम होगा।’’
सूत्रों ने बताया कि आईआईटी-कानपुर ने दिल्ली के ऊपर लगभग 25 समुद्री मील लंबाई और चार समुद्री मील चौड़ाई वाले गलियारे में सफलतापूर्वक अभियान को अंजाम दिया। इसमें सबसे लंबा गलियारा खेकड़ा और बुराड़ी के बीच था।
पहले चरण में जमीन से लगभग 4,000 फुट की ऊंचाई पर छह झोंकों में रसायन छोड़े गए और इनकी कुल अवधि करीब साढ़े अठारह मिनट रही। विमान ने दूसरी उड़ान अपराह्न 3:55 बजे भरी और इस दौरान लगभग 5,000 से 6,000 फुट की ऊंचाई से आठ झोंकों में रसायनों का छिड़काव किया गया।
सिरसा ने दूसरे परीक्षण के बाद सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘आज दिल्ली में कृत्रिम बारिश का दूसरा परीक्षण किया गया। इसके लिए सेसना विमान ने कानपुर से उड़ान भरी और खेकड़ा, बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग, मयूर विहार, सड़कपुर और भोजपुर से होते हुए मेरठ हवाई अड्डे पर उतरा। इस दौरान प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर आठ झोंकों में बारिश कराने वाले रसायनों का छिड़काव किया गया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अब आईआईटी कानपुर की टीम का मानना है कि अगले कुछ घंटों में किसी भी समय दिल्ली में बारिश हो सकती है।’’
सिरसा ने कहा, ‘‘इन परीक्षणों की सफलता के आधार पर, मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में प्रदूषण नियंत्रण के लिए दिल्ली में कृत्रिम बारिश का व्यापक रूप से उपयोग किया जाएगा।’’
अधिकारियों ने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा कराने के उद्देश्य से किया गया यह परीक्षण, सर्दियों के महीनों के दौरान बिगड़ती वायु गुणवत्ता में सुधार लाने की दिल्ली सरकार की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।
सरकार ने पिछले सप्ताह बुराड़ी के ऊपर एक परीक्षण उड़ान का संचालन किया था।
दिल्ली में करीब 53 साल के अंतराल के बाद एक बार फिर कृत्रिम वर्षा का प्रयोग किया गया। इस बार यह प्रयोग राष्ट्रीय राजधानी के वायु प्रदूषण संकट को कम करने के उद्देश्य से किया गया।
भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का पहला परीक्षण 1957 के मानसून के दौरान किया गया था, जबकि दूसरा प्रयास 1970 के दशक की शुरुआत की सर्दियों में किया गया था।
भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1971 और 1972 में किए गए दूसरे परीक्षण राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला परिसर में किए गए थे, जिसमें मध्य दिल्ली का लगभग 25 किलोमीटर क्षेत्र शामिल था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उस समय भू-आधारित उत्प्रेरकों से निकलने वाले सिल्वर आयोडाइड कणों ने सूक्ष्म नाभिक के रूप में काम किया था, जिनके चारों ओर नमी संघनित होकर वर्षा की बूंदों में परिवर्तित हो गई थी।
दिसंबर 1971 और मार्च 1972 के बीच 22 दिनों को प्रयोग के लिए अनुकूल माना गया था। आईआईटीएम की रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से 11 दिनों में कृत्रिम वर्षा कराई गई, जबकि शेष 11 दिनों को तुलनात्मक अध्ययन के उद्देश्य से नियंत्रण अवधि के रूप में रखा गया था।
पर्यावरणविद् विमलेंदु झा ने कहा, ‘‘कृत्रिम बारिश से प्रदूषण कम हो सकता है, लेकिन यह केवल अस्थायी समाधान है, जो कुछ दिनों के लिए राहत दे सकता है। ऐसा हर बार नहीं किया जा सकता।’’
उन्होंने कहा कि सरकार को जमीनी स्तर पर प्रदूषण से निपटने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
झा ने सवाल किया, ‘‘कृत्रिम बारिश से मिट्टी और जल निकायों पर भी असर पड़ता है, क्योंकि इसके लिए सल्फर और आयोडाइड जैसे रसायनों का छिड़काव किया जाता है। इसके अलावा, यह तरीका शहर-विशिष्ट है, पड़ोसी राज्यों से आने वाले प्रदूषकों का क्या?’’
इस बीच, दिल्ली की वायु गुणवत्ता में मंगलवार को थोड़ा सुधार हुआ और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) शाम चार बजे 294 (‘खराब’ श्रेणी में) दर्ज किया गया, जबकि एक दिन पहले यह 301 (‘बेहद खराब’ श्रेणी में) था।
